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मेरा मक़सद शिक्षक दिवस पर कोई निबंध लिखना या जिन महान शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है
मेरा मक़सद शिक्षक दिवस पर कोई निबंध लिखना या जिन महान शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है, उनके जीवन की गौरव गाथा प्रस्तुत करना नहीं है। यह तो प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति का कर्त्तव्य बनता है कि भारतीय संस्कृति, दर्शन एवं वैदिक सनातन धर्म से पूरे विश्व को परिचित कराने वाले शिक्षा ऋषि के उदात्त विचारों से अवगत हों।
यहां मैं उनके जन्मदिन पर आदर से उन्हें नमन करते हुआ उनके एक विचार का उल्लेख करूँगा। डॉक्टर राधाकृष्णन ने कहा था कि राष्ट्र के चतुर्दिक उत्थान के लिए शिक्षक को सम्मान, ऊंचा स्थान व पूर्ण सुविधाएं मिलनी चाहियें।
यह करना सरकार से पहले समाज का काम है। हम भूल चुके हैं कि जब प्राचीन भारत में राजा को मार्ग में कोई गुरु (शिक्षक) एवं बालिका दिख जाती थी तब वह अपने वाहन से उतर कर उसके चरण स्पर्श करता था। कुछ दशकों पूर्व तक ग्रामों में शिक्षक के लिए विशेष अवसरों पर 'सीधा' प्रदान करने की और शिक्षक को अपने सिरहाने बैठाने की परम्परा थी।
शिक्षक दिवस पर मैं राजा महेंद्र प्रताप विद्यालय नारसन के संस्थापक चौधरी शेरसिंह वर्मा, आचार्य सीताराम चतुर्वेदी (निजी सचिव महामना मदन मोहन मालवीय), डी.ए.वी. महाविद्यालय के प्राचार्य एवं आगरा विश्वविद्यालय के उपकुलपति शीतल प्रसाद जी, सनातन धर्म महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर विश्वनाथ मिश्र, जाट डिग्री व इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल रणधीर सिंह व एल. टी. साहब (पूर्ण नाम विस्मृत है), ब्राह्मण कॉलेज के प्रिंसिपल गहलोत साहब, अध्यापकगण रामचंद्र सहाय शर्मा जी, बतरा जी, शम्भू नाथ जी, बृजभूषण जी एवं अन्य गुरुओं, डॉक्टर के.सी.गुप्ता, जे.पी. सविता, हरिरत्न वर्मा जी, जगदीश वाजपेयी जी, श्याम कुमार शर्मा, एस.एस.लाल, सुधीर सिंघल, डॉक्टर हरिओम पंवार, आदि तथा उन सभी गुरुजनों को प्रणाम करता हूँ जिनकी मधुर छवि मस्तिष्क में तो अंकित है, किन्तु नाम भूल चुका हूँ । प्रेस तथा पत्रकारिता की शिक्षा देने वाले अपने पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा, जयनारायण 'प्रकाश', द्वारिका प्रसाद, किशोरी लाल, कपिल जी, उस्ताद खलील अहमद आदि की स्मृति में कोटि-कोटि वंदन! खालापार निवासी दिवंगत बैसाखी वाले मास्टर जी, जो दिव्यांग होते हुए भी गरीबो के बच्चों को घर जाकर पढ़ाते थे, को भी मेरा नमन!
प्राइमरी के एक साधारण अध्यापक होने के बावज़ूद ऋषि दयानन्द के आदर्शों एवं भारतीय संस्कृति के प्रचार में जो सेवानिवृत होने के बाद भी एक आदर्श शिक्षक के रूप में लग्न व उत्साह से तत्पर रहते हैं, वैदिक संस्कार चेतना केंद्र के संचालक आचार्य गुरुदत्त आर्य जी का बार-बार नमन! सैकड़ो आर्यजनों का सम्मान अभिनन्दन कर चुके हैं। हजारों सत्यार्थप्रकाश का वितरण कर चुके हैं। हजारों हवन, यज्ञ, अनुष्ठान कर चुके हैं। कल ही गुरुकुल नारंगपुर (मेरठ) की आचार्या रश्मि आर्या व दो ब्रह्मचारियों का सम्मान किया और आर्यजनों ने गुरुकुल को 11 हजार रुपये प्रदान किये। ऐसे ही महान शिक्षक डॉक्टर राधाकृष्णन के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी जय हो!
गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'
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