सम्पादकीय

ब्लॉग: मिखाइल गोर्बाचेव यकीनन बीसवीं सदी के महानायक थे, अपने जीवन में किए कई असंभव काम

Rani Sahu
2 Sep 2022 1:30 PM GMT
ब्लॉग: मिखाइल गोर्बाचेव यकीनन बीसवीं सदी के महानायक थे, अपने जीवन में किए कई असंभव काम
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मिखाइल गोर्बाचेव यकीनन बीसवीं सदी के महानायक थे, अपने जीवन में किए कई असंभव काम
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
मिखाइल गोर्बाचेव के निधन पर पश्चिमी दुनिया ने गहन शोक व्यक्त किया है. व्लादीमीर पुतिन ने भी शोक प्रकट किया है. गोर्बाचेव ने जो कर दिया, वह एक असंभव लगनेवाला कार्य था. उन्होंने सोवियत संघ को कम्युनिस्ट पार्टी के शिकंजे से बाहर निकाला, सारी दुनिया में फैले शीतयुद्ध को विदा कर दिया, सोवियत संघ से 15 देशों को अलग करके आजादी दिलवा दी, दो टुकड़ों में बंटे जर्मनी को एक करवा दिया, वारसा पैक्ट को भंग करवा दिया, परमाणु-शस्त्रों पर नियंत्रण की कोशिश की और रूस के लिए लोकतंत्र के दरवाजे खोलने का भी प्रयत्न किया.
यदि मुझे एक पंक्ति में गोर्बाचेव के योगदान को वर्णित करना हो तो मैं कहूंगा कि उन्होंने 20 वीं सदी के महानायक होने का गौरव प्राप्त किया है.
बीसवीं सदी की अंतरराष्ट्रीय राजनीति, वैश्विक विचारधारा और मानव मुक्ति का जितना असंभव कार्य गोर्बाचेव ने कर दिखाया, उतना किसी भी नेता ने नहीं किया. लियोनिद ब्रेजनेव के जमाने में मैं सोवियत संघ में पीएचडी का अनुसंधान करता था. उस समय के कम्युनिस्ट शासन, बाद में गोर्बाच्येव-काल तथा उसके बाद भी मुझे रूस में रहने के कई मौके मिले हैं. मैंने तीनों तरह के रूसी हालात को नजदीक से देखा है.
कार्ल मार्क्स के सपनों के समाजवादी समाज की अंदरूनी हालत देखकर मैं हतप्रभ रह जाता था. मास्को और लेनिनग्राद में मुक्त-यौन संबंध, गुप्तचरों की जबर्दस्त निगरानी, रोजमर्रा की चीजों को खरीदने के लिए लगनेवाली लंबी कतारें और मेरे-जैसे युवा मेहमान शोध-छात्र के लिए सोने के पतरों से जड़ी कारें देखकर मैं सोच में पड़ जाता था.
गोर्बाचेव ने लेनिन, स्तालिन, ख्रुश्चेव और ब्रेजनेव की बनाई हुई इस कृत्रिम व्यवस्था से रूस को मुक्ति दिला दी. उन्होंने पूर्वी यूरोप के देशों को ही रूसी चंगुल से नहीं छुड़वाया बल्कि अफगानिस्तान को भी रूसी कब्जे से मुक्त करवाया. अपने पांच-छह साल (1985-1991) के नेतृत्व में उन्होंने 'ग्लासनोस्त' और 'पेरेस्त्रोइका' इन दो रूसी शब्दों को विश्वव्यापी बना दिया, उन्हें शांति का नोबल पुरस्कार भी मिला लेकिन रूसी राजनीति में पिछले तीन दशक से वे हाशिए में ही चले गए.
अपने आखिरी दिनों में उन्हें अफसोस था कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है. उनकी माता यूक्रेनी थीं और पिता रूसी. यदि गोर्बाचेव नहीं होते तो आज क्या भारत-अमेरिकी संबंध इतने घनिष्ठ होते? रूसी समाजवादी अर्थव्यवस्था की नकल से नरसिंहराव ने भारत को जो मुक्त किया, उसके पीछे गोर्बाचेव की प्रेरणा कम न थी.
Rani Sahu

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