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
जाप्रियदर्शन। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री कृष्ण कुमार ने अपनी किताब 'शांति का समर' के एक लेख में राजघाट और बिड़ला भवन के बीच के अंतर पर बात की है. उनकी राय में राजघाट गांधी के अंत की स्मृति है, उनका समाधि स्थल, जहां जाकर आप कुछ शांति अनुभव कर सकते हैं, लेकिन वह उस इतिहास से आपकी मुठभेड़ नहीं कराता जिसकी वजह से गांघी जी को मरना पड़ा. उनका कहना है कि गांधी की असली स्मृति राजघाट में नहीं, बिड़ला भवन में बनती है. बिड़ला भवन में ही प्रार्थना स्थल तक जाते हुए महात्मा गांधी को नाथूराम गोडसे ने मार डाला था. आप बिड़ला भवन जाएं तो गांधी के पद बने दिखाई पड़ते हैं, वह जगह दिखाई पड़ती है जहां गांधी को गोली मारी गई और आपके भीतर यह जानने की इच्छा पैदा हो सकती है कि आख़िर गांधी को गोली क्यों मारी गई. राजघाट इतिहास से मुठभेड़ की ऐसी आकुलता आपके भीतर पैदा नहीं करता.