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- गुमनामी: इतिहास के...
सुधीर विद्यार्थी। मोकामा का इतिहास तलाशें, तो उसमें क्रांतिकारी शहीद प्रफुल्ल चाकी कहीं नहीं हैं। हावड़ा-पटना रेलवे लाइन के इस बड़े स्टेशन पर भी कोई ऐसा निशान नहीं, जो एक मई, 1908 के उस इतिहास का साक्ष्य प्रस्तुत कर सके, जिसे चाकी ने अपने रक्त से अंकित कर दिया था। रेल प्रशासन यहां मुख्य दीवार पर चाकी की एक तस्वीर तो लगा ही सकता था। ऐसा नहीं कि मोकामा के कुछेक लोगों ने सत्ताधारियों और सरकारी कार्यप्रणाली पर कुंडली मारे बैठे हुक्मरानों का इस ओर ध्यान आकर्षित नहीं किया, पर वहां चाकी को कौन जाने! मैं यहां कई लोगों से प्रफुल्ल चाकी का नाम पूछता हूं। पर वे मेरे सवाल पर भौंचक्के तथा निरुत्तर हैं। चाकी की बलिदान-कथा का यहां कोई अर्थ नहीं है। गाड़ियों की उद्घोषणाओं के मध्य क्रांति का वह बीत चुका लम्हा किसी की दम तोड़ती आहों की मानिंद मानो खामोशी की चादर ओढ़कर बहुत गुमसुम हो चुका है। चाकी मोकामा के रहने वाले नहीं थे, पर वह अपनी शहादत देने इसी धरती पर आए। क्या इसके लिए मोकामा के लोगों को उनका ऋणी नहीं होना चाहिए कि वह अपने प्राण देकर क्रांतिकारी संग्राम के इतिहास में मोकामा को एक मुकाम सौंप गए?