सम्पादकीय

सोनिया गांधी शुक्रवार को विपक्षी दलों की बैठक में कौन सी नई रणनीति बनाएंगी?

Gulabi
18 Aug 2021 6:06 AM GMT
सोनिया गांधी शुक्रवार को विपक्षी दलों की बैठक में कौन सी नई रणनीति बनाएंगी?
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सोनिया गांधी शुक्रवार

अजय झा।

कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की एक खासियत है कि पार्टी कभी हार नहीं मानती, वह भी खास कर तब से जब से सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाला. बिना चुनाव परिणामों से विचलित हुए पार्टी अपने लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में चलती रहती है. समय के साथ लक्ष्य में थोड़ा परिवर्तन जरूर हो गया. जहां सोनिया गांधी का लक्ष्य पहले स्वयं प्रधानमंत्री बनना था, अब लक्ष्य राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का देश के प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी है. राहुल गांधी को दो बार जनता के सामने प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किया गया. पार्टी दोनों बार, 2014 और 2019 के चुनाव में विफल रही, पर सोनिया गांधी ने हिम्मत नहीं हारी. अब समस्या है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पहले उन्हें विपक्ष का सर्वसम्मत प्रधानमंत्री पद का दावेदार मनोनीत किया जाना अनिवार्य बन गया है.


बदलते समय और परिस्थितियों के साथ लक्ष्य प्राप्ति की योजना में भी थोड़ा बदलाव करना कांग्रेस पार्टी की मजबूरी बन गई है. जहां पूर्व में दो बार राहुल गांधी यूपीए (UPA) की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे, अब कांग्रेस पार्टी ने मान लिया है कि सिर्फ यूपीए के घटक दलों का साथ ही शायद पर्याप्त नहीं होगा, लिहाजा अब उन पार्टियों को भी जो ना तो यूपीए ना ही बीजेपी (BJP) के नेतृत्व वाली एनडीए (NDA) के साथ जुड़ी हैं, उनको भी साथ ले कर चलना होगा. सभी गैर-बीजेपी दलों को एक जुट करने की सोच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की थी. ममता बनर्जी ने इस दिशा में पहल भी की. पर राहुल गांधी के रहते ममता बनर्जी या कोई और प्रधानमंत्री बनने का सपना ना देख पाए, इसलिए कांग्रेस पार्टी की तरफ से विपक्षी एकता की दिशा में प्रयास तेज हो गया.


कांग्रेस पार्टी बागी नेताओं से एक कदम आगे चल रही है?
इस महीने की शुरुआत में राहुल गांधी की तरफ से विपक्ष को नाश्ते पर आमंत्रित किया गया, पर कुछ ही दिन बाद कांग्रेस के बागी गुट के नेता कपिल सिब्बल ने एक रात्रिभोज का आयोजन किया जिसने राहुल गांधी के प्रयासों को फीका कर दिया. जहां राहुल गांधी के साथ नाश्ता करने विपक्षी दलों के प्रतिनिधि आए, सिब्बल के घर उन दलों के सबसे बड़े नेता पधारे. सोनिया गांधी का इससे विचलित हो जाना समझा जा सकता है. लिहाजा अब कांग्रेस पार्टी ने बागी नेताओं से एक कदम आगे जाने के लिए एक और पहल की है.

शुक्रवार यानि 20 जुलाई को सोनिया गांधी ने गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों और अन्य दलों के सर्वोच्च नेताओं को एक मीटिंग के लिए आमंत्रण दिया है. पर अभी तक ममता बनर्जी के सिवा जिन और मुख्यमंत्रियों या बड़े नेताओं ने बैठक में शामिल होने पर हामी भरी है, वह या तो कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं फिर उसके सहयोगी दलों से ही हैं. कांग्रेस पार्टी की सोच है कि अगर राहुल गांधी अपने प्रयास में विफल रहे तो सोनिया गांधी सफल सबित होंगी.

क्या पार्टी में आंतरिक चुनाव कराने का दबाव है?
नाश्ता और डिनर तो हो चुका, उम्मीद थी की शायद सोनिया गांधी विपक्षी नेताओं को लंच पर आमंत्रित करेंगी, पर ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. यह ऑनलाइन मीटिंग होगी जहां सिर्फ खयाली पुलाव पकेगा. इतना तो तय है कि अब कांग्रेस पार्टी ने मान लिया है कि अपने और अपने सहयोगी दलों का समर्थन ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पद से हटाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा और वह अतिरिक्त शक्ति उन दलों से मिलेगी जिन्हें अब तक तीसरे मोर्चे के रूप में देखा जाता था.

नरेन्द्र मोदी से उनके विरोधी खफा हैं, इस में दो राय हो भी नहीं सकती. विपक्ष का काम विरोध करना है ना कि उस व्यक्ति को समर्थन देना जिसने उन्हें पिछले सात वर्षों में या तो बेरोजगार बना दिया है या फिर लाचार कर दिया है. पर सबसे दिलचस्प बात है कि पहले राहुल गांधी, फिर कपिल सिब्बल और अब सोनिया गांधी की पहल, कहीं ना कहीं ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी कलह का हिस्सा है. वर्ना इन हफ़्तों से भी कम समय में कांग्रेस पार्टी द्वारा विपक्षी दलों की तीसरी बैठक समझ से परे है. साफ़ लगने लगा है कि कांग्रेस पार्टी, या फिर यूं कहें कि गांधी परिवार, आतंरिक चुनाव कराने के दबाव के कारण ऐसा कर रही है.

कांग्रेस पार्टी आंखे मूंद कर आगे बढ़ रही है
सिब्बल ने अपनी ही पार्टी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी आगे तो बढ़ रही है पर आंखे मूंद कर. भारत की सबसे पुरानी पार्टी पर आरोप लग रहा है कि उस पर एक परिवार विशेष का आधिपत्य कायम हो गया है और इस डर से कि आतंरिक चुनाव में कहीं उनकी हार ना हो जाए, चुनाव को लगातार टाला जा रहा है. यह एक विडम्बना ही है कि पिछले दो वर्षों से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं, पार्टी को लगातार विधानसभा चुनावों में जनता नकार रही है, पर चुनाव कराने की कोई सुगबुगाहट नहीं है.

इस बीच कई युवा नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और यह सिलसिला लगातार जारी है. जहां कांग्रेस पार्टी दूसरे दलों से राहुल गांधी के दावे को मजबूत करने के लिए सहयोग की अपेक्षा कर रही है और विपक्षी एकता की बात कर रही है, कांग्रेस पार्टी में बागियों को साथ ले कर चलने की जरूरत महसूस नहीं की जा रही है.

राहुल गांधी को कांग्रेस के कुछ लोग ही अपना नेता नहीं मानते
कपिल सिब्बल का कहना है कि 2019 के चुनाव के बाद एक बार भी ना तो सोनिया गांधी से ना ही राहुल गांधी से मुलाकात हुई है. सिब्बल पार्टी के उन जागरुक नेताओं में शामिल हैं जिन्हें पार्टी की लगातार हार से चिंता है. पार्टी के 23 ऐसे नेताओं ने पिछले वर्ष सोनिया गांधी को पत्र लिख कर पार्टी में चुनाव की मांग की थी. उनका मानना था कि जब पार्टी में नीचे से ऊपर तक चुनाव होगा, हर पद पर चुने हुए नेता होंगे तो पार्टी को मजबूती मिलेगी, नए नेता उभर कर सामने आयेंगे और उनके साथ नयी सोच आएगी. चुनाव तो नहीं हुआ, उल्टे इन G-23 नेताओं को पार्टी के अन्दर अलग थलग जरूर कर दिया है.

देखना दिलचस्प होगा कि जब कांग्रेस पार्टी और उसके के बड़े नेता जो गांधी परिवार से आते हैं, अपनी पार्टी को एकजुट नहीं कर पा रहे हैं तो क्या वह पूरे विपक्ष को एकजुट पर पायेंगे? क्या राहुल गांधी को सम्पूर्ण विपक्ष प्रधानमंत्री पद का दावेदार स्वीकार करेगा. जबकि पार्टी के अन्दर ही अब लोग उन्हें अपना नेता मानने से हिचक रहे हैं? अगर यही स्थिति बनी रही तो कांग्रेस पार्टी खोखली और कमजोर होती जायेगी, जिससे मोदी और बीजेपी को ही बल मिलेगा. कहीं ऐसा ना हो कि विपक्षी एकता एक दिवास्वप्न बन कर ही ना रह जाए, जिसके आसार अभी से दिखने लगे हैं.


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