सम्पादकीय

ब्लॉग: रुपये को लुढ़कने से बचाने की चुनौती और भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ रही मुश्किलें

Rani Sahu
4 Oct 2022 6:29 PM GMT
ब्लॉग: रुपये को लुढ़कने से बचाने की चुनौती और भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ रही मुश्किलें
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
हाल ही में अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में इजाफा किए जाने और मौद्रिक नीति को आगे और भी सख्त बनाए जाने के संकेत से 28 सितंबर को डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर लुढ़ककर 81.93 पर पहुंच गया. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रुपये में यह सबसे बड़ी गिरावट है.
स्थिति यह है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए की ऐतिहासिक गिरावट के बाद कई भारतीय कंपनियां इससे बचने के लिए फॉरवर्ड कवर की कवायद में हैं, क्योंकि उन्हें चिंता है कि फेडरल रिजर्व के ताजा संकेत से इसी वर्ष 2022 में ब्याज दर में और इजाफा हो सकता है, जिससे डॉलर और मजबूत होगा.
निश्चित रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अब चीन-ताइवान के बीच तनाव और वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में बड़ी फिसलन के कारण जहां इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ रही हैं, वहीं आर्थिक विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं.
विदेशी मुद्रा भंडार 16 सितंबर को दो साल के निचले स्तर पर घटकर 545.65 अरब डॉलर रह गया है. इतना ही नहीं महंगाई से जूझ रहे आम आदमी की चिंताएं और बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं. उर्वरक एवं कच्चे तेल के आयात बिल में बढ़ोत्तरी होगी. अधिकांश आयातित सामान महंगे हो जाएंगे. यद्यपि रुपए की कमजोरी से आईटी, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे विभिन्न उत्पादों के निर्यात की संभावनाएं बढ़ी हैं लेकिन अधिकांश देशों में मंदी की लहर के कारण निर्यात की चुनौती दिखाई दे रही है.
वस्तुतः डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने का प्रमुख कारण बाजार में रुपए की तुलना में डॉलर की मांग बहुत ज्यादा हो जाना है. वर्ष 2022 की शुरुआत से ही विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) बार-बार बड़ी संख्या में भारतीय बाजारों से पैसा निकालते हुए दिखाई दिए हैं. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के द्वारा अमेरिका में ब्याज दरें बहुत तेजी से बढ़ाई जा रही हैं.
दुनिया के कई विकसित देशों के द्वारा भी ब्याज दरें तेजी से बढ़ाई जा रही हैं. ऐसे में भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने के इच्छुक निवेशक अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों में अपने निवेश को ज्यादा लाभप्रद और सुरक्षित मानते हुए भारत की जगह अमेरिका व विकसित देशों में निवेश को प्राथमिकता भी दे रहे हैं.
नि:संदेह कमजोर होते रुपये की स्थिति से सरकार और रिजर्व बैंक दोनों चिंतित हैं और इस चिंता को दूर करने के लिए कदम भी उठा रहे हैं. रिजर्व बैंक ने रुपये में तेज उतार-चढ़ाव और अस्थिरता को कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाए हैं और आरबीआई द्वारा उठाए गए ऐसे कदमों से रुपये की तेज गिरावट को थामने में मदद मिली है.
आरबीआई ने कहा है कि अब वह रुपये की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देगा. आरबीआई का कहना है कि विदेशी मुद्रा भंडार का उपयुक्त उपयोग रुपये की गिरावट को थामने में किया जाएगा. अब आरबीआई ने विदेशों से विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश की ओर बढ़ाने और रुपये में गिरावट को थामने, सरकारी बांड में विदेशी निवेश के मानदंड को उदार बनाने और कंपनियों के लिए विदेशी उधार सीमा में वृद्धि सहित कई उपायों की घोषणा की है. ऐसे उपायों से एफआईआई पर कुछ अनुकूल असर पड़ा है.
इस समय रुपये की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए और अधिक उपायों की जरूरत है. इस समय डॉलर के खर्च में कमी और डॉलर की आवक बढ़ाने के रणनीतिक उपाय जरूरी हैं. अब रुपये में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को मुट्ठियों में लेना होगा. भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में किए जाने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है.
विगत 11 जुलाई को आरबीआई के द्वारा भारत व अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटाने रुपये में किए जाने संबंधी निर्णय के बाद इस समय डॉलर संकट का सामना कर रहे रूस, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान, एशिया और अफ्रीका के साथ विदेशी व्यापार के लिए डॉलर के बजाय रुपये में भुगतान को बढ़ावा देने की नई संभावनाएं सामने खड़ी हुई दिखाई दे रही हैं.
हाल ही में 7 सितंबर को वित्त मंत्रालय ने सभी हितधारकों के साथ आयोजित बैठक में निर्धारित किया कि बैंकों के द्वारा दो व्यापारिक साझेदार देशों की मुद्राओं की विनिमय दर बाजार आधार पर निर्धारित की जाएगी. निर्यातकों को रुपये में व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन और नए नियमों को जमीनी स्तर पर लागू करने की रणनीति तैयार की गई है. इस रणनीति को वाणिज्य मंत्रालय और रिजर्व बैंक आपसी तालमेल से लागू करेंगे.
इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय कारोबार को आगामी कुछ ही दिनों में एक-दूसरे की मुद्राओं में किए जाने की संभावनाएं हैं. इसी तरह भारत अन्य देशों के साथ भी एक-दूसरे की मुद्राओं में भुगतान की व्यवस्था सुनिश्चित करने की डगर पर आगे बढ़ रहा है. इससे रुपये को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेनदेन के लिए अहम मुद्रा बनाने में मदद मिलेगी. इससे जहां व्यापार घाटा कम होगा वहीं विदेशी मुद्रा भंडार घटने की चिंताएं भी कम होंगी.
Rani Sahu

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