सम्पादकीय

कानून के शासन को चुनौती देते बेलगाम तत्‍व, समान रूप से कठोर कार्रवाई जरूरी

Rani Sahu
23 Aug 2022 5:18 PM GMT
यह समझना कठिन है कि तेलंगाना के भाजपा विधायक राजा सिंह ने वही काम क्यों किया, जिसके लिए पार्टी की प्रवक्ता नुपुर शर्मा को निलंबित किया गया था?
सोर्स - Jagran
यह समझना कठिन है कि तेलंगाना के भाजपा विधायक राजा सिंह ने वही काम क्यों किया, जिसके लिए पार्टी की प्रवक्ता नुपुर शर्मा को निलंबित किया गया था? ऐसा लगता है कि विवादों में रहने के आदी राजा सिंह ने यह जानते हुए भी कोई सबक नहीं सीखा कि नुपुर शर्मा की टिप्पणी को लेकर देश-विदेश में कितना बवाल हुआ था? धार्मिक मामलों में कोई टीका-टिप्पणी करने के पहले हर किसी को और खासकर नेताओं को तो अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए, लेकिन शायद कुछ नेता संवेदनशील मामलों में भी संभल कर बोलने की आवश्यकता ही नहीं समझते।
विवादित बयानों के जरिये चर्चा में आने का अवसर खोजने वाले नेता न केवल अपनी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी करते हैं, बल्कि माहौल खराब करने का भी काम करते हैं। मुश्किल यह है कि ऐसा काम करने वाले बेलगाम होते जा रहे हैं। इनमें विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल हैं और धर्मगुरु भी। यह सिलसिला ज्ञानवापी प्रकरण के बाद से कुछ ज्यादा ही बढ़ा है। इस पर रोक लगाने की जिम्मेदारी सबकी है। इससे भी अधिक आवश्यक यह है कि जो भी एक-दूसरे के धार्मिक प्रतीकों पर अनुचित टिप्पणी करे, उनके खिलाफ समान रूप से कठोर कार्रवाई हो।
क्या इसे न्यायसंगत कहा जा सकता है कि नुपुर शर्मा के खिलाफ तो देश भर में करीब दस एफआइआर दर्ज हो गईं, लेकिन जिन लोगों ने शिवलिंग को लेकर भद्दी टिप्पणियां कीं, उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसी तरह राजा सिंह को तो आनन-फानन गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उन लोगों के खिलाफ कुछ नहीं किया गया, जिन्होंने हिंदू देवी-देवताओं के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं। राजा सिंह की टिप्पणी के विरोध में हैदराबाद में खुले आम सिर तन से जुदा के नारे भी लगाए गए। यह नारा और कुछ नहीं हत्या की सीधी धमकी है। देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे खौफनाक नारे नुपुर शर्मा प्रकरण के बाद से ही लग रहे हैं, लेकिन किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है-और वह भी तब, जब यह नारा लगाने वाले कई लोगों को मौत के घाट उतार चुके हैं।
जब एकतरफा कार्रवाई होती है तो न केवल समाज को गलत संदेश जाता है, बल्कि कानून के शासन की हेठी भी होती है। इसके साथ उन तत्वों को बल भी मिलता है, जो अराजकता का सहारा लेकर सड़कों पर उतर आते हैं। यदि पुलिस प्रशासन बेतुके बयान देने वालों अथवा अराजक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई के मामले में अलग-अलग मापदंड अपनाएगा तो इससे कानून हाथ में लेने वाले तत्वों का दुस्साहस बढ़ेगा ही।
Rani Sahu

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