सम्पादकीय

दिवालिया होने के कगार पर पाकिस्तान, कहीं श्रीलंका जैसा न हो जाए हाल

Rani Sahu
23 Aug 2022 5:14 PM GMT
दिवालिया होने के कगार पर पाकिस्तान, कहीं श्रीलंका जैसा न हो जाए हाल
x
पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है. प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ भी अभी तक कोई परिणाम नहीं दे सके हैं
By राजेश बादल
पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है. प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ भी अभी तक कोई परिणाम नहीं दे सके हैं. इमरान खान को हटाकर उनको लाने का फौजी दांव भी काम नहीं आया है. हालत यहां तक आ पहुंची कि बीते दिनों सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने सीधे ही अमेरिका से अपील कर डाली कि वह पाकिस्तान को बचा ले. दूसरी ओर पाकिस्तान की उदारवादी धारा हिंदुस्तान से बंद पड़े कारोबार को फिर शुरू करने पर जोर देने लगी है. जानकारों का मानना है कि भारत ही इस देश को उबार सकता है अन्यथा जल्द ही श्रीलंका जैसे भयावह हालात हो जाएंगे.
पिछले दिनों जनरल बाजवा ने अमेरिकी विदेश उप मंत्री वेंडी शरमन से भी इस सिलसिले में मदद की गुहार की. उनका कहना था कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से पाकिस्तान को 1.2 अरब डॉलर का ऋण मुहैया कराने में सहायता करे. बदले में पाकिस्तान अपनी विदेश और रक्षा नीति वैसी ही बनाएगा, जैसी अमेरिका चाहेगा. हालांकि अमेरिका अभी भी पाकिस्तान से रूठा हुआ दिखाई देता है.
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान खुल्लमखुल्ला कह चुके हैं कि उनकी सरकार गिराने में अमेरिका का हाथ था. जनरल बाजवा की शरमन से यह बातचीत अत्यंत गोपनीय थी. लेकिन पश्चिमी मीडिया ने इसे सार्वजनिक कर दिया. पाकिस्तानी पत्रकारों ने भी इसे मुद्दा बना लिया. फिर पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को स्पष्टीकरण देना पड़ा.
दरअसल इस बरस मुद्रा कोष से पाकिस्तान को एक धेले की भी सहायता नहीं मिली है और लगभग एक दर्जन शिखर वार्ताएं हो चुकी हैं. मुद्रा कोष को नहीं लगता कि इस मुल्क की मौजूदा नीतियां उसका पैसा लौटने की गारंटी हैं. वह चाहता है कि बिजली और डीजल-पेट्रोल पर अवाम को मिल रही सब्सिडी खत्म कर दी जाए. शाहबाज शरीफ इसका साहस नहीं जुटा पा रहे हैं.
वजह यह है कि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने प्रदेश पंजाब के उपचुनावों में उनकी पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है. वहां इमरान खान के दल को शानदार कामयाबी मिली है. इसलिए शाहबाज जनता पर और आर्थिक बोझ डालने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं.
इन दिनों मुल्क में महंगाई पिछले पांच साल में सबसे ज्यादा है. एक अमेरिकी डॉलर के बदले पाकिस्तान को करीब ढाई सौ रुपए देने पड़ते हैं. पाक समाचारपत्रों की मानें तो देश के पास इन दिनों सिर्फ 9 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा का भंडार है. इसमें सऊदी अरब और चीन के पांच अरब डॉलर हैं. संयुक्त अरब अमीरात के डेढ़ अरब डॉलर हैं और पाकिस्तान के अपने केवल ढाई अरब डॉलर हैं. आप कह सकते हैं कि पाकिस्तान ने अपनी सांसें गिरवी रख दी हैं, क्योंकि तीनों देश 36 घंटे के नोटिस पर यह पैसा वापस ले सकते हैं.
नौबत यहां तक आ पहुंची है कि हिंदुस्तान का यह घातक पड़ोसी अपनी सरकारी तेल और गैस कंपनियां संयुक्त अरब अमीरात को बेच रहा है. कुछ कंपनियां सऊदी अरब और कुछ चीन को दी जाएंगी. ग्वादर बंदरगाह चीन को पहले ही सौंपा जा चुका है. इस बारे में शाहबाज शरीफ सरकार ने एक अध्यादेश भी जारी कर दिया है. मजबूरी यह है कि कोई भी देश अब पाकिस्तान को उधार देने से बचने लगा है.
कई राजमार्ग और हवाई अड्डे तो इमरान खान की सरकार ही गिरवी रख चुकी थी. चीन का ऋण अदा करने के लिए पाकिस्तान गिलगित-बाल्तिस्तान का बड़ा हिस्सा चीन को लीज पर देने की तैयारी कर रहा है, जो शायद ही कभी उसे वापस मिलेगा.
इन सारी परिस्थितियों के मद्देनजर पाकिस्तान का बौद्धिक और उदारवादी तबका इस राय को मानता है कि पाकिस्तान को इस संकट से केवल भारत ही बचा सकता है. इस वर्ग का कहना है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली नहीं होने पर कारोबार बंद रखने का एकतरफा पाकिस्तानी फैसला बेतुका है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने पद संभालते ही ऐलान किया था कि भारत जब तक अपने निर्णय वापस नहीं लेता, तब तक पाकिस्तान अपने दरवाजे भारत के लिए बंद रखेगा. आखिर इससे भारत को क्या नुकसान हुआ? खामियाजा तो पाकिस्तान को भुगतना पड़ा.
भारत और चीन के संबंध भी तनाव भरे हैं, लेकिन वे आपस का व्यापार बंद नहीं करते. उनके बीच 125 अरब डॉलर का सालाना कारोबार होता है. पाकिस्तान ऐसा क्यों नहीं कर सकता? बिलावल भुट्टो को तो हाल ही में उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर से मिलने का एक अवसर आया था. उन्होंने इसे गंवा दिया. शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन के सम्मेलन में बगल की सीट पर बैठे भारतीय विदेश मंत्री से उन्होंने शिष्टाचार अभिवादन भी नहीं निभाया. जयशंकर उनसे अनुभव, उमर और ज्ञान में वरिष्ठ हैं. बिलावल की यह हरकत अनेक प्रतिनिधियों को नागवार गुजरी थी.
हालांकि पाकिस्तानी मीडिया पर यकीन करें तो पता चलता है कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच बैक डोर डिप्लोमेसी का आगाज हो चुका है और शीघ्र ही इसके परिणाम सामने आ सकते हैं. पाकिस्तान के कूटनीतिक और वैदेशिक मामलों के जानकार पत्रकार डॉक्टर कमर चीमा ने एक आलेख में दावा किया है कि दुबई में दोनों देशों के बीच वार्ता होगी. वहां के कट्टरपंथी इसका विरोध करेंगे. मगर ऐसे विरोध का क्या लाभ, जिसमें राष्ट्र का अस्तित्व ही दांव पर लग जाए.
दूसरी ओर भारत के लिए यह हवन करते अपने हाथ जलाने का उदाहरण बन सकता है. जैसे ही पाकिस्तान मजबूत होगा, वह अपनी पुरानी राह पकड़ लेगा. इसलिए इस खतरनाक पड़ोसी के मामले में भारत को बेहद सतर्क रहने की आवश्यकता है.
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story