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- कैसा पैसा
कई घरों में कारें सिर्फ खड़ी रहती हैं। घर के दैनंदिन कामों के लिए कोई दुपहिया वाहन ही इस्तेमाल होता रहता है। मध्यवर्ग के बहुत से लोग कम दाम में कुछ महंगी चीज खरीद लेने को अपनी बड़ी उपलब्धि मानते हैं। वे सोचते हैं कि दूसरे लोग जिस चीज के लिए इतने अधिक पैसे खर्च करते हैं, उसे उन्होंने कितने सस्ते में हासिल कर लिया! बहुत पैसा इकट्ठा करके भी कुछ लोग कभी खर्च नहीं कर पाते और अंतत: उसे अपनी संततियों के उपयोग के लिए छोड़ कर इस संसार से विदा हो जाते हैं।पैसे की तीन ही गतियां संभव हैं: उसे खर्च कर दिया जाए, किसी को दे दिया जाए या फिर उसे यों ही नष्ट होने के लिए कहीं छोड़ दिया जाए। कृपण लोगों को रास्ता दिखाने के लिए ईशावास्योपनिषद में एक सुंदर श्लोक मिलता है: 'ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत। तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृध: कस्यस्विद्धनम्॥' जिसका अर्थ है कि इस दुनिया की सारी चल-अचल संपत्ति ईश्वर का ही प्रकटीकरण है। इसका उपयोग खर्च करके, इसका त्याग करके ही किया जा सकता है। यह मानना कि यह धन मेरा है, अपने आप में एक नासमझी है, अत: इसके प्रति किसी तरह का लोभ रखना ठीक नहीं।मगर पैसे का मामला कुछ इतना विचित्र है कि जो लोग उसे भावुकतावश जीते-जी अपनी संतानों की मदद के लिए दे देते हैं, उनमें से कई को वृद्धावस्था में उन्हीं संतानों की उपेक्षा और अपमान का शिकार होना पड़ता है।
सोर्स-जनसत्ता