सम्पादकीय

जांच में बाधाएं

Admin2
6 Aug 2022 11:58 AM GMT
जांच में बाधाएं
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प्रतीकात्मक तस्वीर     

देश में जांच एजेंसियों को जिस तरह से काम करने से रोका जा रहा है, उसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। संघीय ढांचे के लिए भी यह एक बड़ा सवाल है कि एक प्रदेश की पुलिस या जांचकर्ताओं को दूसरे प्रदेश में जांच करने में आखिर क्यों परेशानी हो रही है? ताजा शिकायत के अनुसार, पश्चिम बंगाल सीआईडी ने दावा किया है कि नई दिल्ली और गुवाहाटी में उसकी दो टीमों को स्थानीय पुलिस ने रोका है। क्या झारखंड के तीन विधायकों से नकद जब्ती के संबंध में पश्चिम बंगाल के जांचकर्ताओं को जांच से वाकई रोका जा रहा है? यह वाकई अफसोसजनक है, जांच एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी का दावा है कि उसके अधिकारियों को बुधवार को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। ये जांच अधिकारी राष्ट्रीय राजधानी में एक आरोपी, तीन गिरफ्तार विधायकों के करीबी सहयोगी की संपत्ति पर छापेमारी कर रहे थे। अगर पश्चिम बंगाल की पुलिस ने किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया है, तो यह गलत है, लेकिन अगर प्रक्रिया का पालन हुआ है, तो उसे जांच से रोकना अनुचित है। किसी भी राज्य में किसी भी पुलिस दल को जांच से रोकने के पीछे के तर्क बहुत स्पष्ट होने चाहिए।

झारखंड के तीन विधायकों को 31 जुलाई को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में 49 लाख रुपये नकद के साथ गिरफ्तार किया गया था। इस मामले के तार पश्चिम बंगाल सीआईडी को असम और दिल्ली से जुड़े नजर आ रहे हैं, तो उसे जांच करने की मंजूरी मिलनी चाहिए। लेकिन जब पश्चिम बंगाल की टीम गुवाहाटी में उतरी, तो उसे परेशानी हुई। दिल्ली में जो बंगाल की टीम पहुंची, उससे शायद एक चूक हुई है। बताया जाता है कि जिस अधिकारी के नाम से जांच की मंजूरी मिली थी, वह अधिकारी जांच की जगह पर मौजूद नहीं था। उसकी जगह पर दूसरे जांचकर्ता जांच कर रहे थे, जिन्हें कथित रूप से जांच से रोक दिया गया। मतलब, यदि किसी राज्य से कोई टीम किसी दूसरे राज्य में जांच के लिए जाती है, तो उसे पूरी तैयारी के साथ जाना चाहिए। हम अच्छी तरह जानते हैं कि किसी सरकारी काम में किस तरह से तकनीकी बहाने बनाए या खड़े किए जाते हैं। जांच के ऐसे मामलों में एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य की पुलिस के साथ ऐसा ही करती दिखती है। क्या ऐसे जांच दल का लक्ष्य कानून की सेवा नहीं है? क्या ऐसे दलों का किसी राजनीतिक दल की सेवा के लिए इस्तेमाल होता है?
जांच रोकने-रुकवाने की यह परिपाटी जल्दी खत्म होनी चाहिए, वरना कानूनों का विशेष महत्व नहीं रह जाएगा और अपराधीकरण पूरे देश का खून चूसने लगेगा। संविधान निर्माताओं ने यह कल्पना की थी कि जांच एजेंसियों व पुलिस को स्वतंत्रता के साथ काम करने दिया जाएगा, लेकिन हर बार ऐसा नहीं दिखता है। ऐसा नहीं है कि जांच के काम में बाधा पैदा करने वालों को भविष्य में कोई परेशानी नहीं होगी। संस्था कोई भी हो, सुधरने में वर्षों लगते हैं, लेकिन बिगड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। ठीक इसी तरह किसी जांच एजेंसी पर विश्वास पैदा होने में वर्षों लगते हैं, पर किसी जांच एजेंसी की छोटी सी लापरवाही भी उसकी साख को बट्टा लगा देती है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि किसी जांच एजेंसी को अगर चंद मिनट के लिए भी रोक दिया जाए, तो मुमकिन है, उसके हाथ से अपराधी हमेशा के लिए निकल जाए। जरूरी है, पुलिस व जांच एजेंसियों की बढ़ रही परेशानी की चिंता उच्च स्तर पर हो, ताकि कहीं भी कोई अपराधी बचने न पाए।
सोर्स-livehindustan


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