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आदत तो आदत होती है। अगर एक बार पड़ गई तो छुड़ाए बिना छूटती नहीं। दाउ की खुल कर हंसने की आदत थी। जब मिलते तो खिलखिला कर खूब हंसते फिर हाल-समाचार पूछते। उनसे फूल की तरह खिलखिला कर हंसने की वजह पूछने पर बोलते, 'यह इंसान को कुदरत की तरफ से मिली मुफ्त की अमानत है।इस जहान में महज इंसान के अलावा दूसरे किसी प्राणी को हंसने की अमानत कुदरत की तरफ से नहीं मिली है। और अगर इंसान हंसना बंद कर दे तो समझना चाहिए कि वह मौत की तरफ आगे बढ़ रहा है। उनका मानना था कि यह कुदरत की अमानत है, फिर इस अमानत का पूरा-पूरा इस्तेमाल क्यों न किया जाए! इंसान को कुदरत ने हंसने का मौलिक अधिकार दिया है।और उसके इस अधिकार को कोई छीन नहीं सकता। उनकी बेहतरीन सेहत का राज भी खुलकर हंसना ही था। तमाम लोगों को उन्होंने कई समस्याओं और तनाव से छुटकारा इस क्रिया से दिलाया था। उनके सिखाने के कारण सुबह और शाम खुलकर लोगों ने हंसना अपनी आदत में शुमार कर लिया था।