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सब जानते हैं कि पुराने चलन आसानी से समाप्त नहीं होते। इन्हें समाप्त करने के लिए कड़े संघर्ष और आंदोलनों की आवश्यकता पड़ती है। पर आंदोलन करती है जनता और रेवड़ी संस्कृति जो विकसित हुई है, वह इसी जनता जनार्दन का मुंह बंद करने की एक प्रभावी योजना रही है। पहले भी एक राज्य में महिला वोटरों को लुभाने के लिए जूसर मिक्सर आदि बांटकर एक राजनेता ने अन्य राज्यों के नेताओं को चकित कर दिया था। दिल्ली में तो पति-पत्नी में बिजली बिल को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ, महिला बिजली मुफ्त वाली सरकार के पक्ष में थी और पुरुष अपने व्यावसायिक बिल से परेशान होकर किसी अन्य दल के पक्ष में था।इन रेवड़ियों का स्वाद जनता को इतना प्रिय लगने लगा है कि वे आवाज उठाना ही नहीं चाहते। लोकतंत्र में जब तक किसी मसले को लेकर सड़क पर प्रदर्शन न हो, तब तक बात कुछ जमती नहीं है, इसलिए हाल-फिलहाल इस समस्या से छुटकारा मिलता दिखाई नहीं पड़ रहा। किसी चमत्कार द्वारा राजनेताओं का जमीर जाग जाए तो बात अलग है।
