सम्पादकीय

प्रवर्तन निदेशालय

Admin2
28 July 2022 10:54 AM GMT
प्रवर्तन निदेशालय
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इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में कोई संगठन है, तो वह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) है। हालांकि, यह चर्चा ज्यादातर उन राजनीतिक लोगों से संबंधित मामलों को लेकर है, जिनकी निदेशालय जांच कर रहा है। निदेशालय मुख्य रूप से धन शोधन निवारण कानून के तहत मनी लांडरिंग के मामलों की जांच करता है, यानी मोटे तौर पर उस काले धन की जांच करता है, जिसका इस्तेमाल तमाम गलत धंधों के अलावा तस्करी या आतंकवाद तक में होता है। इस कानून और इसे लेकर निदेशालय को मिले अधिकारों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि एक तो यह कानून मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है, इसलिए असांविधानिक है। दूसरे, निदेशालय कोई पुलिस बल नहीं है, लेकिन उसके पास छापा मारने, कुर्की और गिरफ्तार करने जैसे वे अधिकार दिए गए हैं, जो पुलिस के पास होते हैं। कुछ अधिकार तो पुलिस से भी ज्यादा हैं। मसलन, पुलिस के सामने दिए गए इकबालिया बयान को अदालत में पेश नहीं किया जा सकता, जबकि निदेशालय के समक्ष दिए गए बयान को पेश किया जा सकता है। याचिका में निदेशालय के इन्हीं अधिकारों पर आपत्ति उठाई गई थी।

वैसे, यह कोई पहला मामला नहीं है, जब 2002 में बने इस कानून को अदालत में चुनौती दी गई हो। 2017 में तो सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर रोक ही लगा दी थी। अगले ही साल संसद में पेश किए गए वित्त विधेयक के जरिये इसमें संशोधन कर इसे फिर लागू कर दिया गया। इस बार वित्त विधेयक के जरिये इसे संशोधित करने का मुद्दा भी याचिका में उठाया गया था। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने धन शोधन कानून और निदेशालय के अधिकारों पर की गई सारी आपत्तियों को खारिज कर दिया, यानी इस कानून के तहत छापा मारने, लोगों को गिरफ्तार करने वगैरह के निदेशालय के अधिकार बरकरार रहेंगे। अदालत ने इस बात को भी सही ठहराया कि ऐसे मामलों में खुद को निर्दोष साबित करने का दायित्व आरोपी का ही होगा। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने फैसले में आतंकवाद से लेकर तमाम समाज विरोधी कामों में धन शोधन की भूमिका का भी जिक्र किया। उसने आरोपी द्वारा गलत सूचना देने पर जुर्माने और सजा के प्रावधान को भी सही ठहराया। पीठ ने यह भी कहा है कि सिर्फ धन शोधन को अंजाम देना ही अपराध नहीं है, बल्कि धन शोधन की पूरी प्रक्रिया में किसी स्तर पर लिप्त होना भी अपराध है। वित्त विधेयक द्वारा इस कानून में संशोधन के मामले को पीठ ने बड़ी पीठ के लिए छोड़ दिया है। वित्त विधेयक के जरिये कानून बनाने का एक मामला आधार से भी जुड़ा है। यह मामला भी बड़ी पीठ के लिए छोड़ा गया था, हालांकि अभी तक इसके लिए बड़ी पीठ के गठन की घोषणा नहीं हुई है।
धन शोधन कानून से जुड़ा एक अन्य तथ्य यह भी है कि पिछले आठ वर्षों में निदेशालय ने इसे लेकर काफी सक्रियता दिखाई है और इसे लेकर पड़ने वाले छापों की संख्या 26 गुना बढ़ी है। लेकिन कटु सच्चाई यही है कि ऐसे मामलों में सजा की दर अब भी बहुत कम है। राज्यसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार, पिछले आठ साल में धन शोधन के लिए 3,010 छापे मारे गए, जबकि सजा सिर्फ 23 लोगों को मिल सकी। इसे और अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है। लेकिन सभी दलों को यह कोशिश करनी होगी कि इसे लेकर राजनीतिक विवाद न खडे़ हों।
सोर्स-HINDUSTAN


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