सम्पादकीय

उम्मीदें अपने खिलाड़ियों से

Admin2
27 July 2022 8:53 AM GMT
उम्मीदें अपने खिलाड़ियों से
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इन दिनों हम सबसे ज्यादा उम्मीदें अपने खिलाड़ियों से बांधते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा नौजवानों वाला देश खेल प्रतिस्पद्र्धाओं में पीछे रह जाए, इसे हम सहज स्वीकार नहीं कर पाते। इसलिए यह उम्मीद बांधी जाती है कि हमारी सरकारें, हमारे खेल संगठन आगे आने वाले खिलाड़ियों को हर मुमकिन मदद देंगे। सरकारें भी कोई कसर न छोड़ने के संकल्प लेती दिखाई देती हैं। लेकिन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को जिस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, वह बताता है कि ये संकल्प जमीन पर पहुंचने से पहले ही किस तरह दम तोड़ देते हैं और खिलाड़ियों के सपने किस तरह नौकरशाही के जाल में फंसकर रह जाते हैं। राष्ट्रमंडल खेल लगभग शुरू ही होने वाले हैं और लवलीना का नाम उन कुछ खिलाड़ियों में है, जिनसे देश स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद कर रहा है। लवलीना ने ट्वीट करके बताया है कि उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्हें अपने निजी कोच से प्रशिक्षण लेने नहीं दिया जा रहा। उनके एक कोच को भारत वापस भेज दिया गया है और दूसरी कोच, जो द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता हैं, उन्हें खेल गांव के अंदर नहीं आने दिया जा रहा, क्योंकि उन्हें अभी तक मान्यता कार्ड ही नहीं मिला। लवलीना के ट्वीट का असर यह जरूर हुआ है कि खेल मंत्रालय तक के कान खड़े हुए हैं और मान्यता कार्ड वगैरह जल्द दिए जाने के आदेश जारी हो गए हैं, वरना बॉक्सिंग एसोसिएशन तो नियमों का हवाला देकर अपनी असमर्थता जता रहा था।

लवलीना ऐसी पहली खिलाड़ी नहीं हैं, जिन्होंने इस तरह की शिकायत की हो। शिकायतें पहले भी आती रही हैं और ऐसी शिकायतें करने वालों में कई बडे़ नाम भी रहे हैं। लेकिन जिस तरह से लवलीना ने इस मामले को ठीक स्पद्र्धा के वक्त देश के सामने उठाया है, उसने खेल प्रशासकों के लिए परेशानी तो खड़ी कर ही दी है। लवलीना वास्तव में इस दौर की एक प्रतिनिधि खिलाड़ी हैं। वह असम के एक बहुत कम चर्चा में रहने वाले जिले गोलाघाट के ऐसे निम्न मध्यवर्गीय परिवार में पली-बढ़ी हैं, जहां अभी तक लोग इतनी बड़ी कामयाबी के सपने भी नहीं देख पाते थे। ऐसी पृष्ठभूमि में रहते हुए उन्होंने ओलंपिक पदक जीतने का जो जज्बा अपने भीतर पैदा किया और उसके लिए जो मेहनत की, उसके लिए पूरा देश हमेशा लवलीना बोरगोहेन का कृतज्ञ रहेगा। सच तो यह है कि पिछले कुछ साल में दुनिया भर में नाम कमाने वाले हमारे ज्यादातर खिलाड़ी ऐसी ही पृष्ठभूमि के हैं। ये खिलाड़ी जब देश के लिए पदक जीतते हैं, तब उन्हें हर तरह की मदद देने की घोषणाएं की जाती हैं। लेकिन असलियत में उनके साथ क्या होता है, यह लवलीना के एक ट्वीट ने जगजाहिर कर दिया है।
शिकायत के लिए लवलीना को ट्िवटर का सहारा लेना पड़ा, यह भी अपने आप में बहुत कुछ कहता है। इसका अर्थ यही है कि हमारे खेल तंत्र में ऐसी पुख्ता व्यवस्था नहीं है, जहां उपलब्धियों वाले और संभावनाशील खिलाड़ियों की सुनवाई हो सके। अपने ट्वीट में लवलीना ने यह भी कहा है कि वह हाथ जोड़कर कह रही हैं, लेकिन कोई उनकी बात सुन ही नहीं रहा। जब तक हम देश में ऐसा खेल तंत्र नहीं बना लेते, जो खिलाड़ियों की बात पूरी हमदर्दी से सुने और उन्हें समाधान दे, तब तक अंतरराष्ट्रीय खेलों में उनके प्रदर्शन पर उंगली उठाने का कोई अर्थ नहीं।
livehindustan


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