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इन दिनों हम सबसे ज्यादा उम्मीदें अपने खिलाड़ियों से बांधते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा नौजवानों वाला देश खेल प्रतिस्पद्र्धाओं में पीछे रह जाए, इसे हम सहज स्वीकार नहीं कर पाते। इसलिए यह उम्मीद बांधी जाती है कि हमारी सरकारें, हमारे खेल संगठन आगे आने वाले खिलाड़ियों को हर मुमकिन मदद देंगे। सरकारें भी कोई कसर न छोड़ने के संकल्प लेती दिखाई देती हैं। लेकिन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को जिस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, वह बताता है कि ये संकल्प जमीन पर पहुंचने से पहले ही किस तरह दम तोड़ देते हैं और खिलाड़ियों के सपने किस तरह नौकरशाही के जाल में फंसकर रह जाते हैं। राष्ट्रमंडल खेल लगभग शुरू ही होने वाले हैं और लवलीना का नाम उन कुछ खिलाड़ियों में है, जिनसे देश स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद कर रहा है। लवलीना ने ट्वीट करके बताया है कि उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्हें अपने निजी कोच से प्रशिक्षण लेने नहीं दिया जा रहा। उनके एक कोच को भारत वापस भेज दिया गया है और दूसरी कोच, जो द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता हैं, उन्हें खेल गांव के अंदर नहीं आने दिया जा रहा, क्योंकि उन्हें अभी तक मान्यता कार्ड ही नहीं मिला। लवलीना के ट्वीट का असर यह जरूर हुआ है कि खेल मंत्रालय तक के कान खड़े हुए हैं और मान्यता कार्ड वगैरह जल्द दिए जाने के आदेश जारी हो गए हैं, वरना बॉक्सिंग एसोसिएशन तो नियमों का हवाला देकर अपनी असमर्थता जता रहा था।
