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अनुभवों के आधार पर अगर यह कहा जाए कि जो सुख हमें आनंद देता है और जो दुख हमें अंतहीन नजर आता है, उनके मूल में अपेक्षा और उपेक्षा के वे झूले हैं, जिन पर हम हर क्षण झूलते रहते हैं। परिस्थितिजन्य अपनी स्थिति से कई बार खुश होते या स्थिति से गमगीन होते हमें नजर ही नहीं आता कि इसके पीछे वह अपेक्षा है, जो हम दूसरों से पाले हुए हैं या फिर उनके द्वारा की जा रही उपेक्षा हमें आहत किए दे रही है। मनुष्य की अपेक्षा होती है कि उसे लोगों का सम्मान मिलता रहे, वह जो चाहता है, वह सब कुछ आसानी से हो जाएकई बार कहीं न कहीं पढ़ने में आता रहा है कि न किसी से कोई अपेक्षा रखो और न किसी के द्वारा की गई उपेक्षा की परवाह करो। मगर भावनाओं की लहरों और तरंगों के आवेश में हर कोई हर बार इन शब्दों की अनदेखी करता है। बड़े-बड़े पंडालों में सत्संग सुनते, ज्ञान देती पुस्तकों में सुकून ढूंढ़ते हम अगर और कुछ न करके सिर्फ अपेक्षा और उपेक्षा के झूले झूलना बंद कर दें या कम कर दें तो हमारी अधिकांश समस्याएं खुद-ब-खुद सुलझ जाएंगी। मगर हम ऐसा करने की कोशिश नहीं करते।
