सम्पादकीय

सर आइजक न्यूटन

Admin2
20 July 2022 6:56 AM GMT
सर आइजक न्यूटन
x

महान वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन को गुजरे हुए 295 बरस हो गए हैं। तकरीबन तीन सदी पहले उन्होंने गुरुत्वाकर्षण और गति के जो नियम हमें दिए थे, पूरी दुनिया में भौतिक विज्ञान की पढ़ाई आज भी उन्हीं से शुरू होती है। फलों के गिरने, पत्तों के झड़ने से लेकर दुनिया के बहुत बडे़ हिम-स्खलन भी इन्हीं नियमों से समझे जा सकते हैं। हमारे आसमान में मंडराते सूरज, चांद, सितारे और ग्रह-उपग्रह तक आज उन्हीं नियमों का पालन करते दिखाई देते हैं। न्यूटन के इन्हीं नियमों से वैज्ञानिक और खगोलशास्त्री हमारे सौरमंडल की हरेक गतिविधि की सटीक गणना कर लेते हैं। मगर जब हम पूरे अंतरिक्ष के विस्तार में जाते हैं, तो कुछ जगह ये नियम गड़बड़ाते हुए दिखाई देते हैं। खासकर उन सितारों, ग्रहों और उपग्रहों के मामले में, जो हमारी आकाश गंगा के बाहरी सिरे पर हैं। उनकी गति अपवाद रूप से कुछ ज्यादा ही तेज दिखाई देती है। वे इतना तेज क्यों भागते हैं, इस सवाल ने खगोल वैज्ञानिकों को लंबे समय तक उलझाए रखा। एक मत यह था कि गुरुत्वाकर्षण वहां तक जाते-जाते कमजोर हो जाता है, इसलिए वहां सितारों की गति बढ़ जाती है। पहेली सुलझाने की इसी कोशिश ने वैज्ञानिकों को एक नई परिकल्पना तक पहंुचा दिया, जो आज भी विज्ञान के लिए सबसे बड़ी पहेली है।

वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहंुचे कि जरूर वहां पर कोई ऐसा अदृश्य पदार्थ है, जिसका दबाव सितारों की गति बदल रहा है। यहीं से शुरू हुई 'डार्क मैटर' की परिकल्पना, यानी एक ऐसा पदार्थ, जिसे न देखा जा सकता है, न महसूस किया जा सकता है, न उसका कोई भार अथवा वजन है, न वह किसी प्रकाश को सोखता है, न वह किसी प्रकाश को उत्सर्जित करता है, किसी भी तरह के विकिरण से भी उसका कोई लेना-देना नहीं है। पांच दशक पहले दी गई इस परिकल्पना में कहा गया कि यह डार्क मैटर ही है, जिसकी वजह से बहुत सारे आकाशीय पिंड न्यूटन के नियमों का उल्लंघन करते हुए दिखाई देते हैं। तब से अब तक यह डार्क मैटर दिखा तो कहीं नहीं, लेकिन भौतिक विज्ञान की गणना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जरूर बन गया। वैज्ञानिक इस नतीजे पर भी पहंुच गए कि इस पूरी सृष्टि में 85 प्रतिशत डार्क मैटर ही है। इस तथ्य को लेकर सारे वैज्ञानिक करीब-करीब एकमत दिखते हैं, लेकिन दूरस्थ सितारों के विचलन की पहेली इससे भी पूरी तरह नहीं सुलझी।
इस पहेली को अलग तरह से सुलझाने की कोशिश की इजरायल के वैज्ञानिक मोर्दहाई मिलग्रोम ने। वह उसी पुरानी राय पर लौटे, जो कहती थी कि गुरुत्वाकर्षण की ताकत कमजोर पड़ने से सितारों की गति बदल जाती है। इसके साथ ही उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का एक ऐसा नियम दिया, जिसके लिए किसी अदृश्य पदार्थ की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने यह बताया है कि कैसे इन स्थितियों में सितारों की चाल का वक्र बदल जाता है, जिससे उनकी गति तेज हो जाती है। अपने सिद्धांत से वह यह व्याख्या करने में भी कामयाब रहे कि किन स्थितियों में कोई सितारा या आकाशीय पिंड किस गति से चलेगा। इस नए सिद्धांत को 'मिलग्रोमियन डायनेमिक्स' का नाम दिया गया है। यह दरअसल आइजक न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का ही एक नया विस्तार है, जो आकाशगंगा के दूरस्थ सितारों और उपग्रहों की गति पर लागू होता है। हमारे आसपास की दुनिया तो आज भी उसी गति विज्ञान से चल रही है, जिसकी व्याख्या न्यूटन ने तीन सदी पहले की थी।
SOURCELIVEHINDUSTAN


Admin2

Admin2

    Next Story