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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : एक नया रिवाज शुरू हो गया है 'न्यू इंडिया' में। यह रिवाज है बेकार चीजों पर खूब ध्यान देना और गंभीर चीजों को पूरी तरह अनदेखा करना। पिछले दिनों हमारा ध्यान टिका रहा यह तय करने में कि नए संसद भवन के शिखर पर जो अशोक स्तंभ लगने जा रहा है, उसके शेर अपने दांत क्यों दिखा रहे हैं।मामला इतना गंभीर माना गया कि इस प्रतीक के शिल्पकारों को टीवी चर्चाओं में बुलाया गया। उनसे सवाल पूछे सांसदों और देश के जाने-माने पत्रकारों ने। सवाल इस तरह के थे: आपने राष्ट्रीय प्रतीक को बदलने का काम क्यों किया? सारनाथ में जो अशोक स्तंभ है उसको क्या आपने देखा नहीं? क्या आपने नहीं देखा कि उसमें जो शेर हैं, उनके चेहरे शांत हैं, दयालुता है उनके चेहरों पर, तो आपके शेरों के चेहरे इतने क्रोधित क्यों हैं?शिल्पकारों ने अपनी सफाई में कहा कि उन्होंने अपनी तरफ से पूरी तरह उस प्राचीन अशोक स्तंभ की नकल की है, लेकिन चूंकि उनके स्तंभ को कहीं ज्यादा बड़ा बनाने का आदेश था, इसलिए शायद शेरों के दांत ज्यादा दिख रहे हैं। मैंने जब इस चर्चा को सुना तो हैरान रह गई। क्या इस पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस होनी भी चाहिए? क्या इससे जुड़ी उस दूसरी बहस की जरूरत भी है कि प्रधानमंत्री ने सिर्फ हिंदू पूजा की, इस प्रतीक का उद्घाटन करते समय?