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न्यूजीलैंड क्रिकेट ने लैंगिक समानता की ओर कदम बढ़ाते हुए निर्णय किया है कि महिला और पुरुष क्रिकेटरों को न्यूजीलैंड का प्रतिनिधित्व करने और उच्च-श्रेणी घरेलू मैचों में खेलने के लिए समान पारिश्रमिक दिया जाएगा। पारिश्रमिक में रिटेनर, मैच फीस, ट्रस्ट आईपी भुगतान, सेवानिवृत्ति निधि योगदान और बीमा शामिल हैं। इस पंचवर्षीय करार में महिला खिलाड़ियों को सभी प्रारूपों और प्रतियोगिताओं में पुरुषों के समान मैच फीस दी जाएगी। यह समझौता महिला क्रिकेट और लैंगिक समानता के लिए ऐतिहासिक है। न्यूजीलैंड पुरुष टीम के कप्तान केन
विलियम्सन ने इसका समर्थन करते हुए कहा, 'मौजूदा खिलाड़ियों के लिए यह वास्तव में महत्वपूर्ण है। हमें सभी स्तरों पर पुरुषों और महिलाओं, दोनों का समर्थन करना है। यह समझौता इसे हासिल करने की दिशा में एक लंबा सफर तय करेगा।'
दूसरी तरफ अगर भारत के संदर्भ में देखा जाए, तो दुनिया का सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई महिला और पुरुष क्रिकेट खिलाड़ियों में आर्थिक भेदभाव को नजरंदाज करता रहा है। अगर बीते साल के महिला और पुरुष क्रिकेट खिलाड़ियों के सालाना अनुबंधों का आकलन करें, तो असमानता की खाई बहुत बड़ी दिखाई देती है। 2021 में ग्रेड ए महिला क्रिकेटरों को 50 लाख रुपये, ग्रेड बी की खिलाड़ियों को 30 लाख रुपये और ग्रेड सी की खिलाड़ियों को 10 लाख रुपये दिए गए। ग्रेड ए प्लस पुरुष खिलाड़ियों को सात करोड़ रुपये, ग्रेड ए खिलाड़ियों को पांच करोड़ रुपये, ग्रेड बी खिलाड़ियों को तीन करोड़ रुपये, तो ग्रेड सी खिलाड़ियों को एक करोड़ रुपये दिए जाते हैं। इस हिसाब से देश की शीर्ष महिला क्रिकेटर यानी कि ग्रेड ए का सालाना अनुबंध, ए प्लस पुरुष क्रिकेटर से 14 गुना कम है।
वहीं महिला क्रिकेट टीम के ग्रेड सी खिलाड़ी की तुलना में शीर्ष पुरुष क्रिकेटर के सालाना अनुबंध में 70 गुना का अंतर है! मिसाल के तौर पर 21 साल तक खेलने वाली मिताली राज की तुलना में चार साल पहले पुरुष टीम में आने वाले ऋषभ पंत की कमाई 50 गुना ज्यादा है। यदि पूरी महिला क्रिकेट टीम के सालाना वेतन को मिला दिया जाए, तो भी वह भारतीय कप्तान विराट कोहली के वेतन के बराबर नहीं होगा। विराट कोहली जो कि ए प्लस ग्रेड में शामिल हैं, सालाना सात करोड़ वेतन प्राप्त करते हैं। जबकि महिला क्रिकेट टीम के सभी 19 खिलाड़ियों का कुल वेतन 5.10 करोड़ रुपये बनता है। इन आंकड़ों से बीसीसीआई का पुरुषवादी रवैया भी स्पष्ट होता है, जो कि न केवल आर्थिक बल्कि लैंगिक असमानता को दर्शाता है।
वनडे और टेस्ट में महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान मिताली राज से एक बार सवाल पूछा गया कि उनका पसंदीदा पुरुष क्रिकेटर कौन है? इस पर मिताली ने कहा था कि आप ऐसे सवाल पुरुषों से क्यों नहीं पूछते कि उनकी पसंदीदा महिला खिलाड़ी कौन है? आपको खेल को बराबर रखना चाहिए।' अब यह जरूरी हो गया है कि महिला प्रतिभाओं को प्रोत्साहन के लिए खेल की दुनिया में भी समान जेंडर बजट पर बात की जाए, क्योंकि धन और संसाधन के अभाव में महिला खिलाड़ियों की प्रतिभाओं का दमन भी लैंगिक भेदभाव है।SOURCE-AMARUJALA
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