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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने जून महीने के खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी कर दिए हैं। मई के मुकाबले जून में महंगाई की दर थोड़ी कम हुई। मई में महंगाई दर 7.04 फीसद थी जो जून में नाममात्र की गिरावट से 7.01 फीसद पर आ गई। आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो महंगाई दर कम तो हुई है। सरकार के लिए यह राहत की बात हो सकती है। लेकिन सवाल है कि जून में महंगाई कम होने का क्या वाकई कोई असर दिखा? क्या आम आदमी को जरा भी लगा कि चीजों के दाम कम होने लगे हैं? बल्कि जिस तेजी से र्इंधन और बिजली के दाम बढ़ रहे हैं, उससे तो लगता नहीं कि महंगाई कम हो रही है।
जून में जो महंगाई दर नीचे आई है, उसका कारण सब्जियों के दामों में खासी गिरावट बताया गया है। दालों के भी दाम कम हुए हैं। जबकि अनाज के दाम साढ़े पांच फीसद और फल तीन फीसद ऊपर ही रहे। महंगाई में यह कमी इसलिए भी दिख रही है कि खुदरा महंगाई दर में साठ फीसद हिस्सा खाने-पीने की चीजों का होता है। लेकिन र्इंधन और बिजली के वर्ग में दाम दस फीसद से ज्यादा बढ़ गए। निश्चित ही इससे आम आदमी की जेब पर बोझ और बढ़ेगा।
अब देखने की बात यह है कि महंगाई दर में कमी का यह रुख जुलाई में बना रहता है या नहीं। हालांकि खुदरा महंगाई दर अभी भी रिजर्व बैंक के निर्धारित दो से छह फीसद के दायरे से ऊपर ही बनी हुई है। वैसे भी रिजर्व बैंक कहता रहा है कि यह पूरा साल महंगाई में ही गुजरेगा और खुदरा महंगाई दर के नीचे आने के अभी आसार हैं नहीं। जो कुछ असर दिखेगा, वह चौथी तिमाही में जाकर ही दिखेगा।
फिर इसी महीने से कई वस्तुओं पर बढ़ा हुआ जीएसटी लागू होने जा रहा है। हाल में जीएसटी परिषद ने पैकेट में आने वाले दूध, दही, छाछ, पनीर, आटा, मुरमुरे, सोयाबीन, मांस-मछली जैसी चीजों को पांच फीसद कर दायरे में ला दिया है। ये सारी चीजें वे हैं जो आम आदमी की रसोई से जुड़ी हैं। जीएसटी की ये दरें चार दिन बाद लागू हो जाएंगी। जाहिर है, अब गरीब को अपनी जेब से पैसा और निकालना पड़ेगा। यानी जुलाई में खुदरा महंगाई को बढ़ने से रोक पाना किसी के हाथ में नहीं होगा।
सरकार खुश हो सकती है कि महंगाई दर नीचे आई। पर सवाल है कि आम आदमी कैसे खुश हो और मान ले कि महंगाई दर की नरमी से उस पर कोई फर्क पड़ेगा? क्या पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए? सामान की ढुलाई कम हुई? खानपान का सामान बेचने वाली कंपनियों ने क्या अपने किसी उत्पाद के दाम घटाए? क्या ऐसा कुछ हुआ जिससे लगे कि लोगों की आय बढ़ेगी? बेरोजगारी की स्थिति अभी भी कम चिंताजनक नहीं है। जिंसों के दाम भले कम होने लगे हों, लेकिन लगता नहीं है कि खाद्य सामान बनाने वाली कंपनियां बहुत जल्दी इसका फायदा उपभोक्ताओं को देंगी।
ज्यादातर कंपनियां कच्चे माल की कमी और उसकी महंगाई का रोना रो रही हैं। ऐसे में चीजें कब और कितनी सस्ती होंगी, कह पाना आसान नहीं है। तीन महीने बाद त्योहारों का मौसम शुरू हो जाएगा। लेकिन तब तक महंगाई अपना क्या रुख दिखाती है, यह देखना होगा। महंगाई दर कम होने का मतलब तभी है, जब आमजन की जेब पर उसका फायदा दिखे, जो कि अभी दिख नहीं रहा।
source-jansatta
Admin2
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