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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : रूस द्वारा यूक्रेन में भूमिगत विस्फोटक बिछा कर एक खतरनाक योजना तैयार की जा रही है। इससे यूक्रेन में रिपोर्टिंग करने वालों की भी जान का खतरा है। यूक्रेन-रूस के युद्ध में भारतीय पत्रकारों, कैमरामैन आदि लगातार रिपोर्टिंग कर रहे हैं। वहां के हालात दिनोंदिन बिगड़ते जा रहे हैं। कभी भी ये देश आपस में परमाणु बम का उपयोग कर सकते है। इसलिए वहां गए पत्रकारों को शीघ्र वापस बुलाया जाए।
युद्ध विनाश का प्रतीक होता है। यूक्रेन पर रूस द्वारा तीन दिशाओं से हमला कर विमानों, हवाई सुरक्षा व्यवस्था, इमारतों को ध्वस्त किया। यूक्रेन भी रूस के विमानों सैनिकों, टैंकों को ध्वस्त करने का दावा कर रहा। युद्ध की स्थिति में यूक्रेन का कोई देश समर्थन नहीं कर रहा है। युद्ध से शेयर बाजार, सेंसेक्स, कच्चे तेल के दाम आदि भी बेहाल हुए, जिसका असर बढ़ते दाम के रूप में अन्य देशों को भुगतना पड़ेगा। युद्ध को रोका जाना ही मानव जाति के लिए उचित होगा। युद्ध से पीड़ित देश विकास में पिछड़ जाएंगे आर्थिक रूप से भी। युद्ध की विनाशलीला को रोके जाने की पहल आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय देशों की संधि बेलगाम होती दिखाई दे रही है। सब युद्ध का तमाशा देख रहे।
संजय वर्मा 'दृष्टि', धार, मप्र
विलासिता पर कर
मंगलवार को आयोजित मंत्री समूह की आभासी बैठक में केसिनो, आनलाइन गेम आदि पर जीएसटी लगाने को लेकर आम सहमति नहीं बन सकी और अब अगले दस अगस्त तक यह फैसला लिया जाएगा। हालांकि व्यापक विचार-विमर्श और विस्तृत मनन तथा चर्चा से बेहतर समाधान निकाले जा सकते हैं, फिर भी विलासिता के इन जाने-माने साधनों पर भारी जीएसटी लगाना समय की मांग है।
समाजशास्त्र का बुनियादी नियम है कि देश में जनता की बुनियादी जरूरत की वस्तुएं सस्ती होनी चाहिए और विलासिता को आवश्यकतानुसार महंगा किया जा सकता है, क्योंकि वे जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं नहीं हैं, उनके बिना भी जीवन जिया जा सकता है। सरकार को विलासिता एवं मनोरंजन के इन साधनों पर भारी कर वसूलना चाहिए, क्योंकि ये सब वस्तुएं जीवन के लिए जरूरी नहीं हैं।
प्रकृति भी इसी बुनियादी नियम पर चलती है। जीवन के लिए आवश्यक हवा, पानी, रोटी आदि मुफ्त या सस्ते दामों में मिलता है, जबकि विलासिता के साधन केवल धनी लोगों को ही उपलब्ध होते पाते हैं। इसलिए आगामी बैठकों पर समय गंवाए बिना सरकार को केसिनो, घुड़दौड़ और आनलाइन गेम आदि पर भारी जीएसटी लगाना चाहिए।
इशरत अली कादरी, खानूगांव, भोपाल
गहरातासंकट
श्रीलंका सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। डीजल-पेट्रोल की कमी की वजह से बच्चों के स्कूल बंद कर दिए गए है। श्रीलंका की आम जनता का गुस्सा सरकार के ऊपर बढ़ता जा रहा था, लेकिन आपातकाल का सहारा लिया लिया गया। लेकिन जब पानी सिर से ऊपर बहने लगा, तब जनता ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया और प्रधानमंत्री के निजी आवास को आग के हवाले कर दिया।
राष्ट्रपति देश के हालात को संभालने के बजाय भूमिगत हो गए। भारत अपना पड़ोसी धर्म निभाते हुए श्रीलंका को हर संभव मदद पहुंचा रहा है। अन्य देशों को भी भारत की तरह श्रीलंका की मदद के लिए आगे आना चाहिए, तभी वहां की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सकती है और देश में अराजकता का दौर समाप्त हो सकता है।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया
source-jansatta
Admin2
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