सम्पादकीय

अमरनाथ यात्रा

Admin2
13 July 2022 10:59 AM GMT
अमरनाथ यात्रा
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बीती आठ जुलाई शाम साढ़े पांच बजे अचानक अमरनाथ जी की पवित्र गुफा के ऊपर व पार्श्व से आए तेज पानी के सैलाब में समीप में नीचे लगे करीब 25 तंबू, लंगर और तीन सामुदायिक रसोइयां बह गईं। इससे पहले ऊचांइयों में भारी बरसात हुई थी। भीषण जल प्रवाह की चपेट में आने से 16 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और कई लापता हो गए। मीडिया ने तत्काल इस जल प्रलय का कारण पवित्र अमरनाथ गुफा में 'क्लाउड बर्स्ट' यानी बादल फटना बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य लोगों ने भी अपने संवेदना संदेशों में इसका कारण आकस्मिक 'क्लाउड बर्स्ट' को ही बताया था।बादल फटने से 100 मिलीमीटर या करीब चार इंच बरसात एक ही घंटे में हो जाती है। एक-दो वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कुछ मिनटों में ही एक इंच बरसात हो जाती है। इस बार अमरनाथ यात्रा 30 जून से शुरू हुई थी और दुर्घटना के समय पवित्र धाम में लगभग पंद्रह हजार यात्री थे। किंतु दुर्घटना के अगले दिन यानी नौ जुलाई को भारतीय मौसम विभाग ने कहा कि हो सकता है कि यह क्लाउड बर्स्ट न हो। मौसम विभाग के अनुसार, बादल विस्फोट की स्थिति में 10 सेंटीमीटर प्रति घंटे की बरसात करीब 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्र में होती है। पवित्र धाम में केवल 31 मिलीमीटर बरसात शाम 4.30 से 6.30 बजे के बीच हुई।

मौसम विभाग के निदेशक ने 'फ्लैश फ्लड' से इनकार नहीं किया, किंतु कहा कि अमरनाथ गुफा के ऊपर पानी पहाड़ों पर तेज बारिश से आया होगा। चूंकि बादल विस्फोट बहुत ही सीमित क्षेत्र में होते हैं, इसलिए इनकी भविष्यवाणी करना मुश्किल होता है। इस परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण बात यह समझनी चाहिए कि यदि हम नदियों या नालों के जल प्रवाह के बाढ़ प्रसार क्षेत्र में बसना शुरू कर देंगे, तो देर-सबेर हम किसी न किसी जल त्रासदी की चपेट में आ ही जाएंगे। इस संदर्भ में पवित्र अमरनाथ गुफा क्षेत्र से आई तस्वीरों में नंगी आंखों से भी दिख रहा था कि तंबू उसी नदी / नाले / जलधारा के पाट में लगे थे, जिनमें कभी सूखी, कभी केवल बारीक धारा या कभी तेज बरसाती पानी आता है।
निस्संदेह हर अतिवृष्टि बादल विस्फोट नहीं होता है। किंतु 'क्लाउड बर्स्ट' को बोलचाल में इतना आम कर दिया गया है कि अतिवृष्टियों के पहले बादलों की भारी गड़गड़ाहट और आकाशीय बिजली की बहुतायत व भारी नुकसान को भी आमजन मीडिया से बातचीत में बादल विस्फोट होना कह देता है। उत्तराखंड के लोग इसे स्थानीय बोलचाल में पणगोला फूटना भी कह देते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में पिछले चार-पांच दशकों में नदी घाटियों में बड़ी बंद परिधि में पानी जमा करने की सैकड़ों बहुउद्देश्यीय परियोजनाएं बनी हैं। बड़े-बड़े मानवकृत जलाशय से पहाड़ों में आसपास के क्षेत्रों में अतिवृष्टि की घटनाएं बढ़ सकती हैं। अतिवृष्टि चाहे किसी भी कारण से हो, भले ही उन्हें बादल विस्फोटों के वर्ग में न रखा जा सकता हो, जैसे अमरनाथ हादसे के संदर्भ में मौसम वैज्ञानिक कह रहे हैं, तब भी पहाड़ी ढालों पर जल प्रवाह विध्वंसक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ता है। खेत बह जाते हैं। खड़ी फसलें बर्बाद हो जाती हैं। खेत पत्थर बजरी से पट जाते हैं। पहाड़ी गांव के कस्बाई बाजार कई-कई फुट मलबे के ढेर से पट जाते हैं। बहते पानी की राह में पड़ने वाले मकान, दुकान, स्कूल, गौशालाएं, पेयजल प्रणालियां, पेयजल के प्राकृतिक स्रोत आदि क्षतिग्रस्त और पूरी तरह ध्वस्त भी हो जाते हैं।
केदारनाथ में मध्य जून, 2013 में आई जल प्रलय की त्रासदी बादल विस्फोटों से ज्यादा एक हिमनद झील से संबंधित थी, किंतु उन्हीं दिनों दो-एक दिन के अंतराल में गढ़वाल व कुमायूं में अतिवृष्टि की घटनाएं भी हुई थीं। चेतावनी शायद अभी बादल फटने की न दी जा सके, क्योंकि ये काफी हद तक स्थानीय घटनाएं होती हैं, किंतु डॉप्लर रडारों के जरिये चेतावनी वाले पक्ष को मजबूत किया जा सकता है।
-लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। सोर्स-amarujala
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