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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : कठोपनिषद की पंक्ति है- आत्मनम् प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत्। हमें अपनी बुराई किसी भी रूप में पसंद नहीं। हम नहीं चाहते कि कोई हमारी कमियां बताए। तारीफ ही तारीफ चाहिए हमें। मगर दूसरों की बुराई करने में बड़ा रस आता है। दूसरों की कमियां खुर्दबीन लेकर ढूंढ़ते फिरते हैं। फिर दूसरे की कमियां गिना कर अपनी श्रेष्ठता साबित करने में एड़ी-चोटी का दम लगा देते हैं।यह कभी नहीं सोचते कि जिस तरह हमें अपनी बुराई सुन कर दुख होता है, बुरा लगता है। अपनी कमियां गिनाने वाले के प्रति क्रोध उपजता है, वैसे ही दूसरे को भी आता होगा, जब हम उसकी बुराई करते हैं, उसकी कमियां गिनाते हैं। अगर यह बोध हो जाए तो कठोपनिषद की इस पंक्ति का मर्म भीतर उतर जाए। आत्मनम् प्रतिकूलानि…। जो आचरण, व्यवहार, जो बात हमें बुरी लगती है, वैसा व्यवहार, वैसा आचरण दूसरों के प्रति भी न करें। परेषाम् न समाचरेत।…
