सम्पादकीय

जीते को पैगाम

Admin2
10 July 2022 10:55 AM GMT
जीते को पैगाम
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : विपक्ष के वंशवाद पर हमला कर भाजपा अपने नेताओं, कार्यकर्ताओं के लिए भी चेतावनी बनाए रखना चाहती है। कांग्रेस, राजद, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस के वंशवाद पर हमला कर पार्टी अपने अंदर सुधारवादी अभियान चलाए रखना चाहती है क्योंकि उसे अपने ढांचे के अंदर भी इसके खतरे साफ-साफ दिख रहे हैं। लंबे समय तक सत्ता के अहंकार से कोई दल बचा नहीं है। इसके बाद जनता के साथ उसके व्यवहार में भी अंतर आ जाता है। भाजपा नेतृत्व इसे लेकर सजग है।हैदराबाद में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में विपक्ष पर हमलावर रहने के साथ पार्टी ने अपने अंदरुनी सुधार का भी संदेश दिया है। जब आपके पास देने के लिए बहुत कुछ होता है तो यह मायने रखता है कि आप उसका प्रबंधन कैसे करते हैं। आठ साल से केंद्रीय सत्ता और कई राज्यों में सत्ताधारी हो चुकी भाजपा के संगठनात्मक ढांचे को यह समझ है कि अब राजनीतिक संसाधन के आबंटन व शक्ति प्रदर्शन को लेकर उसके सतर्क होने का समय आ गया है। बैठक में वंशवाद के मुद्दे पर विपक्ष को हमलावर तरीके से घेरा गया है। पर, इसके जरिए भाजपा ने अपने राजनीतिक ढांचे को भी विरासती राजनीति से दूर रहने का संदेश दिया है। सत्ता का प्रभाव बढ़ने के साथ पार्टी अपने अंदर भी वंशवाद के खतरे को भांप रही है। विपक्ष की तरह हारे को हरिनाम वाली स्थिति में पहुंचने से बचने के लिए जीते को पैगाम देती भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक पर बेबाक बोल।

हमें शक्ति प्रदर्शन नहीं करना है स्नेह प्रदर्शन करना है…विपक्ष की तरह गलती नहीं करनी है उससे सीख लेनी है…अल्पसंख्यकों तक पहुंचना है…केरल को पूर्वोत्तर का उदाहरण दिखाना है कि ईसाई समुदाय के हितों की सुरक्षा कैसे की जाती है।भारतीय जनता पार्टी की तेलंगाना में आयोजित राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक से निकली इन बातों को सहज ही 2024 की उसकी तैयारी के तौर पर देखा जा सकता है। इस अहम बैठक के तेलंगाना में होने के संदेश को भी आसानी से समझा जा सकता है। कर्नाटक के बाद तेलंगाना वह राज्य है जहां से भाजपा दक्षिण में अपने दुर्ग को मजबूत करेगी। बैठक में केंद्रीय नेतृत्व ने अपने सुर में विजेता वाली नम्रता दिखाई।
हालांकि, तेलंगाना बैठक में भाजपा के रुख से यही लगा कि स्नेह प्रदर्शन को उस जनता तक ही सीमित रखेगी जिसके लिए वह उत्तरदायी है। विपक्ष को लेकर तीखे तेवर में कोई कमी नहीं रहने वाली है।केंद्र में आठ साल के शासन के बाद भाजपा नेतृत्व को इस बात का पूरी तरह अहसास है कि अब देश में शांति-सुरक्षा व सौहार्द के लिए वही पूरी तरह जिम्मेदार है। शासन की इस उल्लेखनीय पारी में उसका संस्थागत वर्चस्व स्थापित हो चुका है। तेलंगाना बैठक का संदेश यही है कि भाजपा अब लंबी पारी के लिए तैयार है। तेलंगाना से पार्टी ने अगले चालीस-पचास साल के लिए सत्ता में रहने का दावा किया है तो उसकी तैयारी भी करती दिख रही है।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के इस दावे को अतिश्योक्ति कहने से पहले हम तेलंगाना के इतर राजनीतिक नक्शे पर नजर दौड़ा लें। उत्तर प्रदेश में अब तक मुसलिम और यादव बहुल कही जाने वाली आजमगढ़ और रामपुर की सीट पर भाजपा का कब्जा हो गया। आखिर क्या कारण है कि भाजपा अब कथित मुसलिम बहुल सीट भी आराम से जीत रही है, वह भी मैदान में बिना मुसलिम उम्मीदवारों को उतारे?गैर-यादव ओबीसी वह समीकरण है जिसके सहारे वह उत्तर प्रदेश में रामपुर और आजमगढ़ जैसे मुश्किल गणित को भी सुलझाने में कामयाब रही है। दो सीटों के नतीजे आते ही योगी आदित्यनाथ ने दावा कर दिया कि भाजपा 2024 में उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटें जीत जाएगी।वहीं, महाराष्ट्र में 2024 के पहले भाजपा विपक्ष को तगड़ा झटका देने में कामयाब रही। महाराष्ट्र में विपक्ष की सरकार गिराने के साथ ही वहां भाजपा ने उल्लेखनीय उदाहरण भी पेश किया। भारतीय राजनीति के पारंपरिक राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों को लग रहा था कि भाजपा महाराष्ट्र में अपना मुख्यमंत्री बनवाकर ही मानेगी। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से अंतिम समय में देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री पद के लिए मान गए।
जो व्यक्ति महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री रह चुका है अगर वह उपमुख्यमंत्री पद के लिए बिना किसी सार्वजनिक राजनीतिक हंगामे के मान जाता है तो इसका मतलब यह है कि भाजपा ने अपने राजनीतिक संगठन के अंदर वैसा अनुशासन पैदा कर लिया है जिसके लिए वामपंथी दल जाने जाते थे।केरल विधानसभा चुनाव के बाद केरल की स्वास्थ्य मंत्री रहीं केके शैलजा को नए मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली, जबकि केके शैलजा विजयन मंत्रिमंडल में एक नायक की तरह उभरी थीं। कोविड काल में उनके काम को राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया था। उस समय माकपा के इस फैसले की भारी आलोचना हुई थी लेकिन केके शैलजा का यही कहना था कि पार्टी उन्हें जो भी जिम्मेदारी देगी वह खुशी से पूरा करेंगी, मंत्रिपद पार्टी से बड़ा नहीं हो सकता है।महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन भाजपा के लिए तात्कालिक से ज्यादा 2024 के लिए अहम है। अगर अभी वह मुख्यमंत्री पद पर अहंकार कर लेती तो लोकसभा चुनाव का सपना साकार करने में मुश्किल आती। महाराष्ट्र में जिस तरह मराठा आरक्षण का मुद्दा आने वाले समय में अहम होने वाला है उसे देखते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक मराठा राजनेता की ताजपोशी भी रणनीतिक रूप से सही कदम है।
जब देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री पद के लिए मान गए थे तभी कांग्रेस के नेता सार्वजनिक मंच पर उलझ रहे थे। राहुल गांधी सेना के लिए लाई गई अग्निपथ योजना पर आग उगल रहे थे। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी अखबार में लेख लिख कर अग्निपथ योजना की खूबियां बता रहे थे।
मनीष तिवारी के लेख के खिलाफ जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि यह मनीष तिवारी के निजी विचार हैं। मनीष तिवारी जयराम रमेश के ट्वीट पर जवाब देते हैं कि अखबार के लेख के अंत में लिखा गया है कि यह उनका निजी मत है। जहां भाजपा का पूर्व मुख्यमंत्री पार्टी अनुशासन में चुपचाप उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहा है वहीं कांग्रेस के अनुशासन का यह हाल है कि नेता कह रहे हैं, केंद्रीय योजना की तारीफ उनका निजी मत है।हैदराबाद की बैठक में भाजपा नेतृत्व ने सबसे कड़ा हमला वंशवाद और सत्ता के अहंकार पर किया। इसके साथ एक तीर से दो निशाने लगाए गए। जब कोई पार्टी लगातार मजबूती से राजनीतिक बढ़त ले रही होती है तो उसमें पद के लिए संभावनाएं बनी रहती हैं। सत्ताधारी पार्टी के पास देने के लिए इतना कुछ होता है कि लोगों के पास असंतुष्ट होने की गुंजाइश भी बनी रहती है।आज के समय में विपक्ष की जगह जितनी ज्यादा सिकुड़ रही है सत्ताधारी की हिस्सेदारी उतनी ज्यादा बढ़ रही है। वहीं विपक्ष से जुड़े लोगों का असंतोष लगातार बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक इस असंतोष का इस्तेमाल कर पक्ष ने अपने हाथ मजबूत किए। लेकिन वह इस बात को लेकर सतर्क है कि इस तरह का असंतोष उसके अंदर न फैले, पार्टी के राजनीतिक हित के बरक्स व्यक्तिगत हितधारकों की संख्या कम से कम रहे।
विपक्ष के वंशवाद पर हमला कर भाजपा अपने नेताओं, कार्यकर्ताओं के लिए भी चेतावनी बनाए रखना चाहती है। कांग्रेस, राजद, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस के वंशवाद पर हमला कर पार्टी अपने अंदर सुधारवादी अभियान चलाए रखना चाहती है क्योंकि उसे अपने ढांचे के अंदर भी इसके खतरे साफ-साफ दिख रहे हैं। लंबे समय तक सत्ता के अहंकार से कोई दल बचा नहीं है। इसके बाद जनता के साथ उसके व्यवहार में भी अंतर आ जाता है। भाजपा नेतृत्व इसे लेकर सजग है।केंद्र की मजबूत सत्ता और राज्यों के साथ बढ़ती कटुता भी एक राजनीतिक सत्य रहा है। मजबूत केंद्र विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों को चैन से बैठने नहीं देता व उन्हें अपने अस्तित्व पर खतरा समझने लगता है। राजनीतिक इतिहास के पन्नों पर यह प्रवृत्ति कांग्रेस युग में भी दर्ज है। आज केंद्रीय सत्ता की बंगाल, तमिलनाडु, केरल से लेकर तेलंगाना तक में कटुता दिख चुकी है।हैदराबाद बैठक में भाजपा ने इस कटुता को लेकर भी रणनीति बनाई है। विरोधी दलों की सत्ता के साथ कटुता की दृश्यता को सूक्ष्म प्रबंधन से कम किया जाएगा। इसके लिए भाजपा ने हर जगह पर अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का गठन किया है। केरल में ईसाई तो दूसरी जगह पसमांदा मुसलमानों की स्थिति पर विमर्श खड़ा किया है। हैदराबाद से इनके बीच सामाजिक न्याय पहुंचाने का लक्ष्य दिया गया है। जब आपके पास देने के लिए बहुत कुछ होता है तो आप उसका प्रबंधन कैसे करते हैं आपकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है। शक्ति व अधिकार को लेकर सजगता ही हैदराबाद के पाठ का सार है।
अभी तक की राजनीतिक परिपाटी में जहां चुनाव की तारीख के पहले व सीट बंटवारे का मामला तय नहीं होने तक, मतदान के कुछ दिन पहले नेताओं की जनसभा व रोडशो शुरू होते हैं, वहां सत्ताधारी भाजपा दो साल पहले ही इस तरह की सुधारवादी तैयारी कर रही है। मतलब यही है कि जीत का जज्बा बरकरार है। उम्मीद कर सकते हैं कि 'विपक्षी अनेकता' अपनी चुनौती बढ़ती देख कर पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए परीक्षा की तारीखों के एलान का इंतजार नहीं करेगी।
SOURCE-AMARUJALA


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