सम्पादकीय

चितेरा गुरुदत्त

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10 July 2022 9:53 AM GMT
चितेरा गुरुदत्त
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : उनका वास्तविक नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोणे था। उनका जन्म बंगलुरू में हुआ था, मगर उन्हें बांग्ला संस्कृति से इस कदर लगाव हुआ कि उन्होंने अपना नाम बदल कर गुरुदत्त रख लिया। गुरुदत्त को पचास के दशक में लोकप्रिय सिनेमा के संदर्भ में काव्यात्मक और कलात्मक फिल्मों का व्यावसायिक चलन विकसित करने के लिए भी जाना जाता है। 2010 में, उनका नाम सीएनएन के 'सर्वश्रेष्ठ पच्चीस एशियाई अभिनेताओं' की सूची में शामिल किया गया था।गुरुदत्त का बचपन कोलकाता के भवानीपुर इलाके में बीता, जिसका उन पर बौद्धिक और सांस्कृतिक प्रभाव पड़ा। उनका बचपन वित्तीय कठिनाइयों में गुजरा। जब गुरुदत्त सोलह वर्ष के थे, उन्होंने 1941 में पांच साल के लिए पचहत्तर रुपए वार्षिक छात्रवृत्ति पर अल्मोड़ा जाकर नृत्य, नाटक और संगीत की शिक्षा लेनी शुरू।

1944 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर बंद हो गया, तो गुरुदत्त वापस घर लौट आए। हालांकि आर्थिक कठिनाइयों के कारण वे स्कूली शिक्षा तो नहीं प्राप्त कर सके, पर रविशंकर के बड़े भाई उदय शंकर की संगत में रह कर कला और संगीत के कई गुण अवश्य सीख लिए। यही गुण आगे चल कर कलात्मक फिल्मों के निर्माण में उनके लिए सहायक सिद्ध हुए।उनके चाचा ने उन्हें प्रभात फिल्म कंपनी, पूना में तीन साल के अनुबंध पर फिल्म में काम करने भेज दिया। वहीं सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता वी शांताराम ने कला मंदिर नाम से अपना स्टूडियो खोला था। पूना में सबसे पहले 1944 में 'चांद' नामक फिल्म में उन्हें श्रीकृष्ण की एक छोटी-सी भूमिका मिली। 1945 में अभिनय के साथ ही वे फिल्म निर्देशक विश्राम बेडेकर के सहायक का काम भी देखते थे।1946 में उन्होंने एक अन्य सहायक निर्देशक पीएल संतोषी की फिल्म 'हम एक हैं' के लिए नृत्य निर्देशन का काम किया।
वह अनुबंध 1947 में खत्म हो गया। लगभग दस महीने तक गुरुदत्त बेरोजगारी की हालत में मुंबई के माटुंगा में अपने परिवार के साथ रहते रहे। इसी दौरान, उन्होंने अंग्रेजी में लिखने का अभ्यास किया और इलस्ट्रेटेड वीकली आफ इंडिया नामक एक स्थानीय अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका के लिए लघु कथाएं लिखने लगे।संघर्ष के उन्हीं दिनों में उन्होंने लगभग आत्मकथात्मक शैली में 'प्यासा' फिल्म की पटकथा लिखी। मूल रूप से यह पटकथा 'कशमकश' शीर्षक से लिखी गई थी। गुरुदत्त को प्रभात फिल्म कंपनी ने बतौर एक कोरियोग्राफर काम पर रखा था, लेकिन उन पर जल्द ही एक अभिनेता के रूप में काम करने का दबाव डाला गया।सहायक निर्देशक के रूप में भी उनसे काम लिया गया। प्रभात में काम करते हुए देव आनंद और रहमान से उनकी गहरी दोस्ती हो गई, जो आगे चल कर अच्छे सितारों के रूप में मशहूर हुए। उन दोनों की दोस्ती ने गुरुदत्त को फिल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाने में काफी मदद की। प्रभात के 1947 में विफल हो जाने के बाद गुरुदत्त मुंबई आ गए।
वहां उन्होंने अमिय चक्रवर्ती और ज्ञान मुखर्जी नामक अपने समय के दो मशहूर निर्देशकों के साथ काम किया। अमिय चक्रवर्ती की फिल्म 'गर्ल्स स्कूल' में और ज्ञान मुखर्जी के साथ बांबे टाकीज की फिल्म 'संग्राम' में काम किया। फिर देव आनंद ने उन्हें अपनी नई कंपनी नवकेतन में निर्देशक के रूप में अवसर दिया था, पर दुर्भाग्य से यह फिल्म विफल हो गई।इस प्रकार गुरुदत्त द्वारा निर्देशित पहली फिल्म थी नवकेतन के बैनर तले बनी 'बाजी', जो 1951 में प्रदर्शित हुई। उनकी प्रमुख फिल्में हैं- सुहागन, भरोसा, साहिब बीवी और गुलाम, चौदहवीं का चांद, काला बाजार, कागज के फूल, प्यासा, मिस्टर एंड मिसेज 55, आर-पार, हम एक हैं। उनकी फिल्म 'प्यासा' को टाइम मैगजीन ने विश्व की सौ कालजयी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में स्थान दिया था।
SOURCEJANSATTA


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