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जनता से रिश्ता वेबडेस्क :जापान के प्रधानमंत्री के तौर पर अपने रिकॉर्ड लंबे कार्यकाल में दिवंगत शिंजो आबे संविधान बदलने में कामयाब नहीं हो सके, ताकि अपने देश को द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर पराजित मानसिकता-बोध से बाहर निकाल सकें और राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए अपनी सेना को तैनात कर सकें। न ही वह जापान को बीती सदी के आठवें दशक के उत्तरार्ध और नौवें दशक के पूर्वार्ध में ले जा सके, जब उसकी आर्थिक और तकनीकी श्रेष्ठता चकित करती थी। तब जापान की पहचान आज के चीन जैसी थी और वह दूसरे नंबर की आर्थिक महाशक्ति था।लेकिन शुक्रवार को नारा शहर में चुनावी भाषण के दौरान आबे की हत्या ने याद दिलाया कि विश्वयुद्धोत्तर कालीन जापान में बदलाव लाने वाले वह सबसे प्रभावी नेता थे और जिसने जितना संभव हो, काम किया।
रूस और चीन के साथ पुराने विवाद के समाधान में विफल होने के बाद वह जापान को अमेरिका और उसके प्रशांत क्षेत्र के सहयोगियों के करीब ले गए (दक्षिण कोरिया को छोड़कर)। उन्होंने जापान की पहली राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद गठित की और उन सांविधानिक अवरोधों के बारे में बताया, जिनका वह पुनर्लेखन नहीं कर सके। नतीजतन पहली बार जापान अपने सहयोगियों की 'सामूहिक सुरक्षा' के लिए प्रतिबद्ध था। शिंजो आबे ने सुरक्षा पर जितना जोर दिया, उतना जापान के किसी और नेता ने नहीं दिया। 'जब आबे अपनी कठोर राष्ट्रवादी छवि के साथ जापान की सत्ता में आए, तब हम समझ नहीं पाए कि वह हमें कहां ले जाएंगे। लेकिन आबे के रूप में हमें एक ऐसा व्यावहारिक यथार्थवादी मिला, जो जापान की सीमाओं से अवगत था और यह जानता था कि चीन के उभार को रोकना जापान के लिए संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने एक नई व्यवस्था की रूपरेखा तैयार की', एमआईटी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के निदेशक रिचर्ड सैम्युल्स कहते हैं।
जब रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला, तब आबे सत्ता में नहीं थे। इसके बावजूद जापान की सरकार पर उनका असर दिखा, जब दस सप्ताहों तक ऊहापोह के बाद टोक्यो ने रूसी कोयला और तेल का आयात चरणबद्ध ढंग से खत्म करने का एलान किया। एक कदम और आगे बढ़कर आबे ने यह सुझाव दिया कि अमेरिका के साथ परमाणु समझौता करने का समय आ गया है-ऐसा कहकर आबे ने वह परंपरा तोड़ दी, जिसके तहत जापान में परमाणु हथियार बनाने पर चर्चा करना भी निषिद्ध था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से जापान ने अपने लिए जो संयम लागू किया था, उसे तोड़ने की आबे की कोशिश बताती थी कि जापान को अब नए सहयोगियों की सख्त जरूरत है। चूंकि चीन का खतरा बढ़ता जा रहा था और उत्तर कोरिया मिसाइलों के प्रक्षेपण की आक्रामकता में लगा हुआ था, ऐसे में, आबे को लगा कि उन्हें वाशिंगटन के साथ अपने रिश्ते बेहतर बनाना चाहिए, भले ही इसका मतलब आबे द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को गोल्फ क्लब उपहार में देना ही क्यों न हो।
आबे अपनी आक्रामक नीतियों के कारण नहीं मारे गए हैं, न ही यह जापान में 1930 के उथल-पुथल भरे दौर की वापसी है, जब सरकार से जुड़े लोगों की हत्या कर दी जाती थी। वर्ष 1932 में वहां प्रधानमंत्री श्योशी इनुकाई की हत्या हुई थी। पर विश्वयुद्ध के बाद के जापान में राजनीतिक हत्याएं विरल ही हैं। वर्ष 1960 में एक समाजवादी नेता की तलवार से हत्या कर दी गई थी, तो 2007 में नागासाकी के मेयर को मार दिया गया था, हालांकि उसके पीछे व्यक्तिगत दुश्मनी थी।
आबे ने स्वास्थ्य कारण से दो साल पहले प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया था। हालांकि ताकत और असर में वह चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग या रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बराबर नहीं थे; 1990 के दशक की मंदी ने जापान से महाशक्ति देश का तमगा छीन लिया था। इसके बावजूद आबे का असर बना रहेगा। जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन में वरिष्ठ अधिकारी रहे माइकल जे ग्रीन कहते हैं, 'आबे ने जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था को रूपांतरित कर दिया।' अपनी किताब, लाइन ऑफ एडवांटेज : जापान'स ग्रेट स्ट्रेटेजी इन द एरा ऑफ आबे शिंजो में ग्रीन कहते हैं कि एशिया में निरंतर आक्रामकता का परिचय देते चीन से निपटने में आबे ने ही पश्चिमी देशों की मदद की। आबे को प्रधानमंत्री इसलिए चुना गया था, क्योंकि वह चीन की चुनौतियों से निपटना जानते थे। आक्रामक नीति लागू करने में वह हिचकिचाते नहीं थे। उनका मानना था कि अपने युद्ध अपराधों के लिए जापान बहुत बार माफी मांग चुका है।
वर्ष 2012 में आबे जब फिर प्रधानमंत्री बने, तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के सहयोगी चिंतित थे, क्योंकि आबे आक्रामक छवि के थे। लेकिन धीरे-धीरे ओबामा और आबे में बेहतर रिश्ते बने और दोनों हिरोशिमा में गए, जहां अमेरिका ने पहला एटम बम गिराया था, जबकि दोनों का वहां एक साथ होना राजनीतिक रूप से जोखिम भरा था। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने पर आबे मेलेनिया ट्रंप का जन्मदिन मनाने न सिर्फ फ्लोरिडा गए थे, बल्कि तब उन्होंने सनकी ट्रंप द्वारा जापान से अपने सैनिक वापस बुला लेने की धमकी भी मुस्कराते हुए झेली थी। जैसा कि सैम्युल्स कहते हैं, आबे जानते थे कि जापान और अमेरिका, दोनों ढलान पर हैं, इसलिए एक दूसरे के साथ होना ही उनके हित में है। जापान और अमेरिका के संबंधों के बारे में आबे का कहना था, 'इस रिश्ते को सफल होना ही होगा।'
source-amarujala
Admin2
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