सम्पादकीय

फिनलैंड ने नाटो में शामिल होने की इच्छा जताई

Admin2
5 July 2022 10:00 AM GMT
फिनलैंड ने नाटो में शामिल होने की इच्छा जताई
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यूक्रेन को रूस ने जिस आक्रामक तरीके से निशाना बनाया है, उसके कारण समूचा यूरोप और अमेरिका अपनी सैन्य रणनीति बदलने को मजबूर हो गए हैं। इससे इनके सैन्य संगठन नाटो की चुनौतियां बढ़ गईं हैं और यूरोप की सुरक्षा को लेकर आशंकाएं भी गहरा गई हैं।

यूक्रेन संकट के बीच अब स्वीडन और फिनलैंड ने नाटो में शामिल होने की इच्छा जताई है। अगर ये दोनों देश नाटो में शामिल हो जाते हैं तो यह रूस की बड़ी रणनीतिक हार होगी। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नाटो का और विस्तार नहीं होना देना चाहते। यूक्रेन संकट भी शुरुआत इन्हीं आशंकाओं से हुई थी। ऐसे में फिनलैंड की नाटो में शामिल होने की कोशिश दुनिया को विश्व युद्ध की कगार पर धकेल सकती है। गौरतलब है कि स्कैंडिनेविया एक प्राचीन पठार है। इसमें नार्वे और स्वीडन भी शामिल हैं। इसकी ढाल सामान्यत: पूर्व की ओर है। स्वीडन के पूर्व में फिनलैंड है और फिनलैंड के पूर्व में रूस। फिनलैंड की करीब तेरह सौ किलोमीटर की सीमा रूस से लगी है।

दरअसल, सामूहिक सुरक्षा की मूल मान्यता है कि युद्धों को समाप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि शक्ति को नियंत्रित करके उसे रोका जा सकता है। इसीलिए नाटो और वारसा संधियां बनीं, शीत युद्ध की शुरुआत हुई और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। पूर्वी यूरोप में आने वाले यूक्रेन को रूस ने जिस आक्रामक तरीके से निशाना बनाया है, उसके कारण समूचा यूरोप और अमेरिका अपनी सैन्य रणनीति बदलने को मजबूर हो गए हैं। इससे इनके सैन्य संगठन नाटो की चुनौतियां बढ़ गर्इं हैं और यूरोप की सुरक्षा को लेकर आशंकाएं भी गहरा गई है। यह खतरा गंभीर रूप इसलिए ले चुका है क्योंकि रूस की बैलिस्टिक मिसाइलों, टेक्टिकल न्यूक्लियर मिसाइलों और परमाणु हमले से यूरोप को बचाने का कोई भी सुरक्षा कवच अभी नाटो के पास नहीं है।

नाटो की नजर सोवियत संघ से टूट कर अलग हुए देशों के साथ स्कैंडिनेवियाई प्रायद्वीप, बाल्टिक और उन नार्डिक देशों पर है जो रूस की सीमा को छूते हैं। पुतिन नाटो के इन इरादों को रूस को तोड़ने की कोशिशों के रूप में देखते हैं। यूक्रेन संघर्ष का मूल कारण भी इस देश के नाटो में शामिल होने की कोशिशें रहीं। पुतिन चाहते हैं कि नाटो पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य गतिविधियां रोक दे, जबकि नाटो रूस की इन मांगों को स्वीकार करने के लिए बिलकुल तैयार नहीं है। नाटो ने पूर्वी सीमाओं को मजबूत करने के लिए पोलैंड और रोमानिया में अपनी सेना की तैनाती के साथ उन्हें लड़ाई के लिए तैयार रखा है। रूस पर हमला करने के लिए बाल्टिक देशों में पहले से ही नाटो के लड़ाकू समूह अत्याधुनिक हथियारों के साथ मौजूद हैं।

नाटो ने बाल्टिक देशों और पूर्वी यूरोप में हवाई निगरानी भी बढ़ाई है ताकि सदस्य देशों के वायु क्षेत्र में घुसने की कोशिश करने वाले रूसी विमानों को रोका जा सके। रूस ये कहता रहा है कि नाटो के सुरक्षा दस्ते इन क्षेत्रों से निकल जाएं। फिनलैंड और स्वीडन को लेकर भी रूस ने साफ किया है कि इन इलाकों में यदि नाटो हथियारों की तैनाती करता है तो वह सख्ती से निपटेगा। यदि फिनलैंड और स्वीडन को तीस देशों के सैन्य गठबंधन में शामिल कर लिया जाता है तो नाटो की सेना रूस के बेहद करीब पहुंच जाएगी। नाटो क्षेत्र की पूर्वी सीमा के पास रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है।

गौरतलब है कि नाटो यूरोपीय देशों का एक सैन्य गठबंधन है। इसमें भौगोलिक स्थिति के हिसाब से सामरिक शक्ति बढ़ाने के लिए सदस्य जोड़े जाते रहे हैं। रूस के लिए फिनलैंड और स्वीडन अभी तक सुरक्षित देश थे, लेकिन अब फिनलैंड को रूस पर बिल्कुल भरोसा नहीं है। इसका मूल कारण यूक्रेन पर रूस की सैन्य कार्रवाई है। रूस ने यूक्रेन से रणनीतिक समाधान ढूंढ़ने को कहा और फिर उस पर हमला कर दिया।

इसका प्रभाव रूस के पड़ोसियों पर काफी हद तक पड़ा है। वे रूस को लेकर अब आशंकित नजर आ रहे हैं। फिनलैंड 1917 में रूस से अलग होकर स्वतंत्र देश बना था। उसे लगता है कि रूस यूक्रेन की तरह उसकी संप्रभुता को भी प्रभावित कर सकता है। रूस से फिनलैंड की प्रतिद्वंद्विता पुरानी है और वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रूस के खिलाफ लड़ाई भी लड़ चुका है। यह भी कि स्वीडन और फिनलैंड 1994 से नाटो के आधिकारिक सहयोगी है, हालांकि यह पूर्ण सदस्यता से अलग दर्जा माना जाता है।

दोनों ही देश शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से नाटो के कई अभियानों में हिस्सा ले चुके हैं। यूक्रेन संकट में रूस की आक्रामकता को लेकर नाटो की 'रुको और देखो' की नीति यूरोप के लिए रणनीतिक रूप से बेहद खतरनाक साबित हुई है। नाटो सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है। नार्थ एटलांटिक ट्रिटी आर्गनाइजेशन यानी नाटो 1949 में बना एक सैन्य गठबंधन है, जिसका मूल सिद्धांत यही है कि यदि किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है तो बाकी देश उसकी मदद के लिए आगे आएंगे। फिनलैंड और स्वीडन के नाटो के पूर्ण सदस्य बनते ही नाटो उनकी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हो जाएगा और ऐसे में नाटो और रूस के बीच परमाणु संघर्ष छिड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।

हाल में मेड्रिड शिखर सम्मेलन में नाटो के महासचिव जेंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि नाटो के सदस्य देश प्रतिरोध और रक्षा को लेकर एक बुनियादी बदलाव पर सहमत हुए हैं। इन बुनियादी बदलावों में एक समुद्री सुरक्षा भी है और इसे लेकर रूस के साथ चीन भी बड़ी चुनौती के रूप में नाटो के समक्ष उभरा है। पश्चिमी यूरोप, दक्षिणी यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया तक फैले भूमध्य सागर में नाटो बहुत आक्रामक रहा है। नाटो ने सी गार्जियन नाम से भूमध्य सागर में एक समुद्री सुरक्षा अभियान चला कर वहां अत्याधुनिक जहाज और पनडुब्बियां तैनात कर रखी हैं। एशिया प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा भी अब नाटो और अमेरिका की प्राथमिकताओं में शामिल है और भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया के साथ उनका समुद्र में सामरिक सहयोग बढ़ा है।

वैश्विक तनाव के बीच यह भी बेहद दिलचस्प है कि नाटो और अमेरिका रूस को दबाव में लाने की किसी भी रणनीति पर अभी तक सफल नहीं हुए हैं, जबकि पुतिन खुद की राजनीतिक और अपने देश की सामरिक स्थिति को मजबूत करने में ज्यादा सफल रहे हैं। पुतिन ने वर्ष 2016 में नए राष्ट्रीय सुरक्षा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें नाटो के विस्तार को रूस के लिए खतरा बताया गया था।

रूस हर छह साल बाद अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की समीक्षा करता है। रूस ने 2014 में अपनी सैन्य नीति बदलने की घोषणा की थी, ताकि वह यूक्रेन संकट और पूर्वी यूरोप में नाटो की बढ़ती दखलंदाजी से निपट सके। 2014 में क्रीमिया पर रूस का कब्जा पुतिन की सबसे बड़ी जीत थी और पश्चिम के लिए अपमानजनक झटका था। इसके बाद पुतिन ने अन्य कई अन्य सैन्य मोर्चों पर नाटो और अमेरिका की चिंता बढ़ाई। मध्य पूर्व में रूस का सैन्य हस्तक्षेप इसका बड़ा उदाहरण है। सीरिया में रूस का दखल और राष्ट्रपति असद की सेनाओं के समर्थन से उन्होंने पश्चिम को जाल में फांस लिया और मध्य पूर्व में अमेरिका के नियंत्रण के मंसूबों को समाप्त कर दिया।

रूस को रोकने की कोशिशों के तहत नाटो निरंतर अपना विस्तार कर रहा है। साल 2004 में मध्य और पूर्वी यूरोप में रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लातविया, एस्तोनिया और लिथुआनिया और 2009 में क्रोएशिया और अल्बानिया नाटो शामिल हो गए थे। अब फिनलैंड और स्वीडन जल्द ही नाटो के पूर्ण सदस्य बन सकते हैं। जाहिर है, नाटो और अमेरिका की रूस को रोकने या अंतरराष्ट्रीय राजनीति से उसे बाहर करने की कोशिशें वैश्विक तनाव को और बढ़ा देंगी।

सोर्स-jansatta

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