सम्पादकीय

तोल मोल कर बोल

Admin2
5 July 2022 6:58 AM GMT
तोल मोल कर बोल
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : न कुछ उदयपुर में हुआ, न वहां कोई मरा! न पुलिस ने अपने काम में कोई कोताही की, न मुख्यमंत्री ने अपने कर्तव्य में कोई कमी छोड़ी! वह उदयपुर झूठा उदयपुर रहा जिसे चैनलों ने दिखाया! फिर भी पता नहीं क्यों कुछ लोग चैनलों पर सख्त से सख्त सजा देने की मांग कर रहे हैं!

अपने चैनल आजकल झूठ बहुत बोलते हैं। झूठ की खबर देते हैं। जो बेकसूर होते हैं, उन्हीं को कसूरवार बताते हैं! सच तो यह है कि किसी ने किसी को कोई धमकी नहीं दी है, न किसी से किसी को खतरा है। चैनल बात का बतंगड़ बनाते हैं। अगर कुछ है तो क्रिया की प्रतिक्रिया भर है। बताइए क्रिया की प्रतिक्रिया पर भी किसी का बस है? कई उदारचरितानाम् कई चैनलों पर सही कहते हैं कि न वे ये करते, न ये होता। यह सब क्रिया की प्रतिक्रिया है! बताइए सिर्फ सच को खाने-पीने वाले एक पत्रकार को पुलिस ने कैसे पकड़ लिया, जबकि वह सच के अलावा कुछ खाता-पीता ही नहीं! इसीलिए उसके पक्ष में मीडिया निकल पड़ा।अब आप कहेंगे कि ये न्यायप्रिय जन उस लड़की के पक्ष में क्यों न बोले, जो एक पोस्ट के लिए जेल में डाल दी गई? अरे भाई किस-किस के लिए बोलें? हर एक को अपने बोलने वाले लाने होते हैं, वह भी ले आती! इन दिनों हर खबर क्रिया की प्रतिक्रिया की तरह दिखती है।
और देखो तो! बेचारी उस निरीहा को भी सत्ता सताने में लगी है! झूठे मुकदमे बना रही है! वह तो बेचारी सताए हुओं की चिंता में दुबली हुई है!एक गोदी चैनल चिढ़ कर खबर दे रहा है कि तीन सौ वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखा है कि निरीहा को सत्ता के अन्याय से बचाओ! कितने न्यायप्रिय हैं हमारे न्यायवेत्ता! किसी भी दुखी का दुख नहीं देख सकते!एक गोदी चैनल तो यहां तक कह रहा है कि ये सब 'आंटी जी' के इशारे पर हो रहा है! हाय राम! ये मुए चैनल कुछ भी कहते रहते हैं। किसी पर भी तोहमत लगाते रहते हैं। अरे दया की भी कोई भूमिका है। ये दयालु आगे आए हैं तो क्या गलत है! कहा भी गया है- 'दुर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय..!'
यों भी, इन दिनों दया दुर्लभ चीज है! उदयपुर में किसी को दया न आई तो न आई, लेकिन किसी पर तो आई! क्लास को अपनी क्लास पर आई, लेकिन आई तो! कितना अन्याय हो रहा है कि जो कल तक चैनलों के लिए एक से एक कड़क बयान देते थे, किसी को गद्दार, किसी को लाश बताते थे, फिर उसका अर्र्थ बताते थे, किसी को चुनौती देते थे कि यहां आओ नजर से नजर मिलाओ, तब देखेंगे। फिर हवाईअड्डे से बाहर तो निकल कर देखना..!लेकिन सरकार के जाते ही अपने कड़क सर की सारी चमक जाती दिखी! 'गद्दार' आते हैं और गद्दी छीन कर गद्दी पर बैठ जाते हैं और हमारे कड़क वचनकर्ता कुछ न कर पाते है। हा दैव! कैसा अन्याय! और किस्मत का खेल देखिए कि इधर गद्दारों की सरकार बनी, उधर चैनल बताने लगे कि अपने सर जी को 'ईडी' ने बुला लिया है।
अंदर जाने से पहले वे मीडिया की ओर निडरता का हाथ हिलाते हैं, फिर बोलते हैं कि एक एजंसी ने कुछ जानकारी लेने के लिए बुलाया है। मैं सहयोग करूंगा, मैं बहुत निडर आदमी हूं, मैंने कोई गलत काम नहीं किया है।और फिर शुक्रवार की दोपहर सारे चैनल लाइन लगाकर सुप्रीम कोर्ट के हवाले से खबर देने लगते हैं कि नूपुर को सर्वोच्च अदालत ने आड़े हाथों लिया है… उसे सुरक्षा के लिए खतरा बताया है… हिंसा के लिए नूपुर जिम्मेदार है… उसकी टिप्पणी उसके अहंकारी और अड़ियल स्वभाव को बताती है… प्रवक्ता होना क्षम्य नहीं हो सकता… नूपुर ने लोगों की भावनाओं को भड़काने काम किया… नूपुर को पूरे राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए…!
अदालत ने चैनल के एंकर को भी जिम्मेदार ठहराया कि वे ऐसे न्यायाधीन विषयों को चर्चा का विषय क्यों बनाते हैं? कोर्ट ने दिल्ली की पुलिस पर भी टिप्पणी की कि वह अब तक क्या कर रही है?चैनल अदालत की टिप्पणी को अलग-अलग टुकडों में बताते हैं। नूपुर गई थीं विभिन्न मुकदमों को दिल्ली कोर्ट में स्थानांतरित कराने के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट, लेकिन सुनवाई की जगह मिली फटकार! सबक : जब भी बोल, तोल-मोल कर बोल!source-jansatta


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