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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : 'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना'। यह पंक्ति हम बरसों से सुनते आए हैं, लेकिन वर्तमान में यह पंक्ति धुंधली होती हुई नजर आ रही है। भारतीय दर्शन में धर्म का अर्थ हमेशा से स्वकर्तव्य पालन के संदर्भ में रहा है और इस दृष्टिकोण से भारतीय समाज में नैतिकता और धर्म, दोनों एक दूसरे से पूरक संबंध में जुड़े हुए दिखाई पड़ते हैं।महात्मा गांधी, गुरु नानक और ईसा मसीह जैसे महान आदर्श लोगों के जीवन दर्शन में हम धर्म को नैतिकता और स्वकर्तव्य पालन के रूप में देख सकते हैं। धर्म पर टिकी हुई नैतिकता व्यक्ति के विचारों के स्तर पर नहीं, बल्कि उसके मूल्यों और संस्कारों के स्तर पर कार्य करती है और इससे धार्मिक व्यक्ति की नैतिकता में विचलन का खतरा कम होता है। अगर इस आधार पर देखा जाए तो सांप्रदायिक हिंसा करने वाले लोगों में कोई नैतिकता नहीं होती और अनैतिक व्यक्ति का कोई धर्म नहीं होता। वह व्यक्ति अपनी धर्मांधता के आवेश में मात्र धर्म का चोला ओढ़कर अपने किए गए कृत्य को वैधता प्रदान करने का प्रयास करता है।
