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जनता से रिश्ता : लेखक अर्ल नाइटिंगेल ने कहा है, 'हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं।' यानी हम अपने विचारों की उपज हैं। जैसा सोचेंगे, वैसा ही बन जाएंगे। हमारे मन में प्रतिदिन पांच हजार से साठ हजार विचार आते हैं। ये विचार मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्थितियों के असंख्य निर्माण कर सकते हैं। हमारा दिमाग गणना की गई जानकारी के द्वारपाल के रूप में कार्य करता है। यह निर्धारित करता है कि हम तक पहुंचने वाली कौन-सी जानकारी प्रासंगिक है और उस पर हमारा मानसिक ध्यान किस तरह काम करेगा। वे विचार बहुत आसानी से विश्वास बन सकते हैं, जो हमारी भावनाओं को सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से प्रभावित करते हैं।हमारे द्वारा अनुभव किया जाने वाला हर एक विचार मस्तिष्क में एक रासायनिक प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है, जिससे एक भावना उपजती है। जैसे ही हम इस विचार के साथ जुड़ते हैं, एक नया 'सर्किट' या परिधि बनता है जिसके जरिए शरीर को एक संकेत मिलता है और हम एक निश्चित तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं। जितना अधिक हम इस तरीके को दोहराते हैं, उतना ही यह हमारे दिमाग में रिसता जाता है और एक आदत बन जाती है। यानी हमारे विचार हमारी दृष्टि को आकार देते हैं। हम वही देखते हैं जो हम देखना चुनते हैं।
