सम्पादकीय

विमर्श के अभाव

Admin2
28 Jun 2022 4:59 AM GMT
विमर्श के अभाव
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प्रतीकात्मक तस्वीर 

जनता से रिश्ता : कमोबेश पूरा देश इन दिनों विरोध की लपटों के चपेट में है। केंद्र की ओर से घोषित सैन्य बहाली की नई योजना "अग्निपथ " के खिलाफ उठी चिंगारी देखते ही देखते आग के शोलो में तब्दील हो गई है। विरोध की इस आग में भारतीय रेलवे की करोड़ों की सम्पत्ति अब तक स्वाहा हो चुकी है।अग्निपथ पर खड़े देश को सुलगाने और चोटिल करने की कोशिश अचानक की नहीं है। आगजनी और पत्थरबाजी के सुनियोजित षड्यंत्र की आंच पिछले कुछ दिनों से लगातार लगातार जलाई जा रही थी।लघु अवधि सैन्य सेवा की योजना "अग्निपथ" पर केंद्र सरकार, तीनों सेना के प्रमुख, और सैन्य सेवा की तैयारी कर रहे युवाओं के अलावा सेना के रिटायर्ड वेटरन्स की अपनी अपनी राय है।अग्निपथ योजना लेकर जहां देश के प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में देशवासियों को आश्वस्त करते हुए कहा है की समय आने पर इसका फायदा दिखेगा। वहीं सर्वोच्य सैन्य अधिकारियों ने इसे बहुप्रतीक्षित बताया है, इनके अनुसार सेना सन 1989 से ही इस परिवर्तन को लेकर प्रयत्नशील थी। किंतु उचित समय की प्रतीक्षा में यह लंबित था।

अब जब कोरोना काल के नाते पिछले दो वर्षों से सैन्य बलों मे भर्ती रुकी पड़ी है। ऐसे में इस योजना को लाने का इससे बेहतर अवसर हो ही नहीं सकता। साथ ही सैन्य बलों मे जवानों की नियमित और पूर्ववर्ती भर्ती पर रोक की घोषणा भी सेना कर चुकी है।जहां तक इसके पक्ष में दलीलों की बात करें तो यह युगांतरकारी है। इससे सैन्य बलों की औसत आयु कम होगी। देश को युवा सैनिक मिलेंगे। इनमें से एक चौथाई को आगे स्थाई नियुक्ति भी मिलेगी। वहीं सैन्य बलों में कटौती के कारण भविष्य में भारतीय सेना तकनीकी आधारित युद्ध मे सक्षम होगी। इन अग्निवीरों के लिए अर्धसैनिक एवं पुलिस बलों मे आरक्षण की व्यवस्था बनाई गई है। वहीं देश के व्यवसायी घरानों के साथ ही विभिन्न राजनैतिक दलों के कार्यालयों में भी इनके लिए सेवा के बेहतर अवसर होंगे।
अग्निपथ योजना के तहत अग्निवीर बनने वाले इन युवाओं को सेवा अवधि उपरांत लाखों रुपये मिलेंगे। इसके बावजूद भी देश का युवा आक्रोशित है? विपक्षी दल इसे भुनाने और सुलगाने में लगे हैं। जबकि देश विरोधी तत्व इस बहाने फिर एक बार देश जलाने मे लगा है। दरअसल मोदी सरकार में ये कोई पहली घटना नहीं है।इससे पहले भी किसान आंदोलन, एनआरसी एवं सीएए और एससी एसटी एक्ट दुरुपयोग मामले में ऐसा हो चुका है। अपने आठ वर्षों के कार्यकाल में इन महत्वपूर्ण मसलों पर सोच, साहस एवं पहल के बावजूद सरकार बैकफुट पर रही है। इन सभी मामलों में योजना के निर्माण और उसकी घोषणा अथवा लागूकरण में विमर्श का घोर अभाव रहा है। इन निर्णयों को लेकर लागू करने से पहले देशव्यापी चर्चा या विमर्श का कोई माहौल नहीं खड़ा किया गया।
वहीं इसको लागू किए जाने के साथ देश भर में जिस व्यापक चर्चा संवाद को किया जाना चाहिए ता वो भी होता हुआ नहीं दिखा। सरकार बस फायदे भर गिनाती रही, वहीं नेता मंत्री बयान और ट्वीट कर सबकुछ नियंत्रण में है जैसा संदेश देते रहे। जबकि परिस्थितियां ठीक इसके उलट रही। सहमति संकल्पनाओं के बावजूद भी ये बदलाव वापस लेने परे या फिर लागू नहीं हो पाए। बात अगर हालिया ज्ञानवापी- पैगंबर विवाद की करें तो बिन मांगे ही संघ एवं भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से बयान आने लगे।

सोर्स-amarujala

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