सम्पादकीय

रिजर्व बैंक महंगाई को लेकर चेतावनियां

Admin2
27 Jun 2022 8:58 AM GMT
रिजर्व बैंक महंगाई को लेकर चेतावनियां
x

जनता से रिश्ता : महंगाई को लेकर लंबे समय से हालात चिंताजनक ही बने हुए हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि अगले छह महीनों में महंगाई दर छह फीसद से ऊपर ही बनी रहेगी। जाहिर है, हाल-फिलहाल राहत नहीं मिलने वाली। हालांकि चौथी तिमाही में महंगाई दर में कमी आने की उम्मीद है, पर पुख्ता तौर पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी ही होगी।वैसे रिजर्व बैंक महंगाई को लेकर चेतावनियां पहले भी देता रहा है। इसलिए अब लोग सिर्फ उम्मीदों के सहारे ही हैं। हालत यह हो गई कि मरता क्या न करता! न्यूनतम खर्च के लिए भी लोगों को सौ बार सोचना पड़ रहा है। महंगाई से निपटना सरकार का काम है, जिसमें वह अब तक नाकाम ही रही है। महंगाई के लिए सरकार पहले तो कोरोना महामारी को जिम्मेदार बता कर पल्ला झाड़ती रही और अब वैश्विक कारण गिनाए जा रहे हैं। इससे लगता है कि सरकारें भी यह मान बैठी हैं कि लोग महंगाई की मार में जीने के आदी हो चले हैं, इसलिए चिंता की क्या बात!

इसमें कोई संदेह नहीं कि महामारी की वजह से महंगाई और बेरोजगारी का संकट न सिर्फ बढ़ा है, बल्कि यह गंभीर रूप धारण कर चुका है। यह भी सही है कि ऐसे हालात सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया के ज्यादातर देशों में बने हुए हैं। अमेरिका, ब्रिटेन हो या अन्य यूरोपीय देश, सब जगह लोग महंगाई से त्रस्त हैं। कमोबेश सभी देशों की अर्थव्यवस्था हिली पड़ी हैं। रोजगार का संकट भी गहराता जा रहा है।
जाहिर है, भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता। आम लोगों के लिए तो महंगाई का मतलब यही है कि रोजमर्रा के जरूरी सामान से लेकर खाने-पीने की चीजें और सब्जियां-फल, दूध, खाद्य तेल, र्इंधन आदि के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। फिर एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि लोग जरूरी चीजों में भी कटौती के लिए मजबूर होने लगते हैं। आज यही हालात बन गए हैं। दो साल के भीतर ज्यादातर चीजों के दाम साठ से अस्सी फीसद बढ़ गए हैं। कंपनियां दाम बढ़ाने के पीछे कच्चे माल से लेकर र्इंधन के दाम बढ़ने का तर्क दे रही हैं। उत्पादन लागत बढ़ने से थोक महंगाई भी पिछले सारे रेकार्ड तोड़ चुकी है।
लेकिन महंगाई का असर रोजगार पर भी व्यापक रूप से पड़ता है, जो हम देख ही रहे हैं। महंगाई कारोबारी योजनाओं से लेकर उत्पादन को प्रभावित करती है। ऐसे में उद्योग भी लागत और खर्च घटाने के हरसंभव जतन करते दिखते हैं। कम से कम श्रम बल में काम चलाने की रणनीति रोजगार के अवसरों को प्रभावित करती है। एक मुश्किल यह भी बनी हुई है कि महामारी और इससे उपजे आर्थिक संकट ने लोगों की आय पर भी असर डाला है। नियमित आमद का संकट खड़ा हो गया है। जीवन जीने की लागत जिस तेजी से बढ़ रही है, उसके अनुपात में लोगों की आमदनी घटती जा रही है।
इस वजह से लोग महंगाई का मुकाबला कर पाने में अपने को असहाय पा रहे हैं। कहने को रिजर्व बैंक ने महंगाई पर अंकुश के लिए मौद्रिक उपाय किए हैं, सरकार भी राजकोषीय कदम उठाने की बात कर रही है, लेकिन इन सबका असर दिख नहीं रहा। महंगाई से निपटने के लिए लोगों को रोजगार मुहैया करवाने की जरूरत है, ताकि उनके हाथ में पैसा आना शुरू हो। लेकिन इस मोर्चे पर केंद्र और राज्य सरकारें कामयाब होती दिख नहीं रहीं।

सोर्स-jansatta

Admin2

Admin2

    Next Story