- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भ्रष्टाचार का कठघरा
x
जनता से रिश्ता : दिल्ली के नए उपराज्यपाल ने भ्रष्टाचार के मामले में यहां के कुछ अफसरों के खिलाफ जैसी कार्रवाई की है, उससे एक बार फिर यह जाहिर हुआ है कि राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में कितनी बड़ी खाई हो सकती है। उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार के मातहत काम करने वाले तीन अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इनमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कार्यालय में तैनात एक उप सचिव भी शामिल हैं, जिन पर एक पुराने मामले में कार्रवाई हुई है।
इन अधिकारियों पर ताजा कार्रवाई का आधार यह है कि निलंबित अधिकारियों ने संपत्ति की खरीद-फरोख्त में गड़बड़ी की थी। फिलहाल इन सभी के खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी गई है। जाहिर है, दिल्ली की आम आदमी पार्टी यानी 'आप' की सरकार के लिए यह एक और बड़ा झटका है। यों दिल्ली के उपराज्यपाल ने अपना पद संभालने के बाद यह साफ कर दिया था कि भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता की नीति अपनाई जाएगी और इसके तहत जो भी दोषी होंगे, उनके खिलाफ सख्ती होगी। ताजा कार्रवाई को उनके इसी रुख का नतीजा माना जा सकता है। मगर अब इस मसले पर अगर फिर से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव का नया अध्याय शुरू हो जाए, तो हैरानी नहीं होगी।
गौरतलब है कि दिल्ली सरकार के दो मंत्री पहले ही अलग-अलग मामलों में कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। इनमें स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन धनशोधन मामले में इन दिनों तिहाड़ जेल में हैं। दूसरी ओर, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर असम के मुख्यमंत्री की पत्नी ने मानहानि का मुकदमा दर्ज किया है और इसमें सौ करोड़ रुपए हर्जाना मांगा है। यह स्थिति दिल्ली में पार्टी के नेताओं की है, जहां उसने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने का एलान किया था और सिर्फ इसी वजह से उसके पक्ष में जनसमर्थन उभरा था।
इसके अलावा, हाल ही में पंजाब में 'आप' सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे विजय सिंगला को मंत्रिमंडल से इसलिए बर्खास्त कर दिया गया कि वे अपने महकमे में हर काम और निविदा के बदले एक फीसद कमीशन मांग रहे थे। विचित्र यह है कि पंजाब का स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद सिंगला ने भ्रष्टाचार पर शून्य सहनशीलता का दावा करते हुए कहा था कि किसी भी तरह के भ्रष्ट आचरण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन भ्रष्टाचार के ही आरोपों के बाद उन्हें बर्खास्त और गिरफ्तार भी किया गया।
सवाल है कि आखिर आम आदमी पार्टी के सबसे मुख्य दावे में इतनी जल्दी इतना बड़ा फर्क आने की क्या वजह है! यह छिपा नहीं है कि 'आप' की राजनीतिक बुनियाद ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के दावे पर ही तैयार हुई थी। इस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने आम जनता के बीच यह वादा किया था कि वे देश में एक नई राजनीतिक संस्कृति तैयार करेंगे, जो पूरी तरह भ्रष्टाचार से मुक्त होगी। अरविंद केजरीवाल आज भी अक्सर यह दावा करते हैं कि उनकी पार्टी के शासनकाल में अमूमन सभी जगहों से भ्रष्टाचार खत्म हो गया है।
लेकिन इस दावे के बरक्स हकीकत यह है कि खुद उनके कार्यालय में उच्च स्तर का कोई अधिकारी भी भ्रष्टाचार के आरोपों में कानून के कठघरे में है। भ्रष्टाचार से मुक्त राजनीतिक संस्कृति के दावे को जमीन पर उतारना एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन इसकी शुरुआत पहले अपनी पार्टी और प्रशासन के स्तर पर तय करने की जरूरत है, ताकि लोग इस समस्या को दूर हुआ महसूस कर सकें। अगर भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध का बिगुल फूंकने वाले खुद या उनके मातहत ही भ्रष्ट कारनामों में लिप्त पाए जाने लगें तो आम जनता इसे कैसे देखेगी?
सोर्स-JANSATTA
Admin2
Next Story