सम्पादकीय

अटाला मस्जिद क्यों चर्चा में ?

Admin2
23 Jun 2022 1:00 PM GMT
अटाला मस्जिद क्यों चर्चा में ?
x

representative

जनता से रिश्ता : इन दिनों आगरा का ताजमहल और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद खूब चर्चा में हैं। एक पक्ष दावा कर रहा है कि मुगल काल में हिंदुओं के पूजनीय स्थलों को तोड़कर इनका निर्माण किया गया था। सोशल मीडिया में एक लिस्ट भी तैर रही है, जिनमें 10 मस्जिदों का जिक्र है और दावा किया जा रहा है कि इन मस्जिदों का निर्माण मंदिर तोड़कर किया गया था। इस लिस्ट को कभी शिया वक़्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहे जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ सैयद वसीम रिजवी ने तैयार किया था। लिस्ट में जौनपुर की अटाला मस्जिद का भी नाम है।इतिहासकारों ने क्या लिखा है? अटाला देवी मंदिर को ध्वस्त कर यहां इब्राहिम शाह द्वारा मस्जिद बनाए जाने का उल्लेख "जौनपुर नामा" में मिलता है, जिसके लेखक इतिवेत्ता मौलवी खैरुद्दीन जी हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन, वर्ष 1833 में हुआ था और इसकी भाषा फ़ारसी है। दूसरा साहित्यिक संदर्भ 'तजल्लिये नूर' है जो कि साहित्यकार, इतिवेत्ता मौलवी नूरुद्दीन जैदी द्वारा लिखित है और उसका प्रकाशन वर्ष 1905 है। यह पुस्तक भी फ़ारसी भाषा में लिखी गई है। इस संबंध में तीसरा साक्ष्य 'भूगोल जौनपुर भाग 1' है जो वर्ष 1872 में प्रकाशित हुआ था।

आज से 54 साल पहले सन 1968 में जौनपुर के प्रमुख विद्वान लेखक सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी ने "शर्की राज्य जौनपुर का इतिहास" नामक ग्रंथ लिखा और शर्की राजवंश में जौनपुर की समुन्नत स्थिति का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। जौनपुर के अतीत से रूबरू कराती यह एक महत्वपूर्ण कृति है। संदर्भित पुस्तक में भी अटाला मस्जिद के निर्माण के बारे में भी उन्होनें विस्तृत वर्णन किया गया है। सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी ने लिखा है कि अटाला मस्जिद का निर्माण 1408 ईस्वी में इब्राहिम शाह शर्की ने कराया परन्तु उसकी नींव फ़िरोज शाह तुगलक ने 1363 ईस्वी या उसके उपरांत डाली थी। मगर ख्वाजा जहां, खानजहां और फतह खान के देश का शासन प्रबंध छिन्न-भिन्न हो गया था, चारों ओर विद्रोह शुरू था इन्हीं सब कारणों के चलते फिरोज शाह ने निर्माण कार्य स्थगित कर दिया था। 1390 ईस्वी में फिरोज शाह का देहांत हो गया। बाद में तुगलक राजकुमारों के आपसी संघर्ष के चलते इस मस्जिद का निर्माण नही हो सका और अंततः इस मस्जिद का निर्माण इब्राहिम शाह शर्की द्वारा 1408 ईस्वी में पूरा किया गया।अटाला मस्जिद में नही हैं मीनारें: सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी ने अपनी कृति "शर्की राज्य जौनपुर का इतिहास"में इन्हीं पुस्तकों को आधार बना कर विस्तृत विवेचन का प्रयास किया है। इन संदर्भित पुस्तकों में यह लिखा गया है कि प्राचीन काल मे यह (अटाला मस्जिद) स्थल मूर्तिगृह था जिसे देवल अटाला कहते थे। यद्यपि अपने निष्कर्ष में सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी ने अपने पूर्ववर्ती विद्वानों की अवधारणा को भ्रामक बताने का प्रयास किया है, तथापि बगैर किसी ठोस अन्य संकेतक साक्ष्य के पूर्ववर्ती विद्वानों के अभिमत को खारिज नही किया जा सकता। 'ए डिक्शनरी ऑफ इंडियन हिस्ट्री' में सच्चिदानंद भट्टाचार्य ने प्रख्यात इतिहासकार ए. फ्यूहरर "शर्की आर्किटेक्चर ऑफ जौनपुर" के हवाले से लिखा है कि अटाला मस्जिद को जौनपुर में शर्की राजवंश के इब्राहिम शाह (1402-38ई.) ने 1408 ईस्वी में बनवाया। यह इमारत जौनपुर वास्तुकला का उत्तम नमूना है। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि इसमें मीनारें नहीं हैं जो सामान्यरूप से मस्जिदों में होती हैं।
क्या है लोक मान्यता? वृहत हिंदी कोष के अनुसार अटाला का अर्थ होता है महल। पूर्ववर्ती विद्वानों के उद्धरणों से इस बात को बल मिलता है कि इसी महल में देवी की स्थापना हुई थी जिसे अटाला देवी के नाम से जाना गया। गोस्वामी तुलसी दास जी ने वेदमत के साथ लोकमत को भी उतनी ही महत्ता दी है। यदि जनश्रुति या लोकमत में हम चलें तो जौनपुर जनपद के ही विकासखंड बख्शा में एक गांव है सुजियामऊ। यह गांव जिला मुख्यालय से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर लखनऊ राजमार्ग के समीप स्थित है। बतातें हैं कि 1408 ईस्वी में अटाला देवी मंदिर के विध्वंस किये जाने पर देवी जी की मूर्ति को पुजारी द्वारा छुपते-छुपाते यहां तक लाया गया था। एकांत स्थल, एक भव्य सरोवर और विशाल बाग देखकर, पुजारी द्वारा या साथ में आए पुराने शहर के बासिंदों द्वारा एक पाकड़ के पेड़ के पास मूर्ति को रख दिया गया। जहां कालांतर में विविध धार्मिक अनुष्ठान के साथ अटाला देवी के नाम को छुपाते हुए उस मूर्ति को काली माता के रूप में स्थापना की गई और कालांतर में वहां एक भव्य मंदिर स्थापित किया गया।
जब जौनपुर को कहा गया 'शिराजे-हिंद': जौनपुर में मलिक सरवर से लेकर शर्की बंधुओं ने 1389 से 1479 ईस्वी तक स्वतंत्र राज किया। शर्की काल खंड में जौनपुर को सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत उपलब्धि हासिल हुई। इस राजवंश के आश्रय में बहुत सारे विद्वान थे। जिन पर शर्की वंश की कृपा रही। कीर्तिलता के रचनाकार विद्यापति को भी इसी काल का राज्याश्रित कवि कहा गया है। तत्कालीन समय में अनेक महान ग्रंथों की रचना की गयी। उसी समय में जौनपुर में कला-स्थापत्य में एक नयी मिश्रित शैली का जन्म हुआ जिसे जौनपुर शैली अथवा शर्की शैली कहा गया। जिसे गंगा-यमुनी तहजीब का अनुपम उदाहरण कहा जाता है। कला -स्थापत्य के इस मिश्रित शैली का निदर्शन यहां पर आज भी जामा मस्जिद और अन्य मस्जिदों में दिखता है। इतिहास का यह भी तथ्य है कि शर्की राजवंश के समय जौनपुर शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था। इसी समय कई रागों की रचना हुई जिसमें से राग जौनपुरी की सुगंध चहुंओर फैली। यही समय था जब जौनपुर को 'शिराज़े हिंद' कहा गया।
शिराज का तात्पर्य श्रेष्ठता से होता है। यह शर्की राजवंश के स्वर्णिम पक्ष हैं। परन्तु कतिपय साक्ष्य इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि इसी राजवंश में इब्राहिम शाह शर्की द्वारा अटाला देवी मंदिर का ध्वंस कर अटाला मस्जिद बनाई गई। इतिहासकार डॉ मोतीचंद की पुस्तक 'काशी का इतिहास' में जौनपुर शर्की राजवंश के शासक महमूद शर्की का जिक्र है जिसने 1436 से 1458 तक अपने शासन काल के दौरान बनारस के मंदिरों को ध्वस्त करना शुरू किया था जिसमे काशी विश्वनाथ मंदिर को भी छति पहुंचाये जाने की चर्चा की गई है। प्रख्यात इतिहासकार प्रोफेसर आशीर्वादी लाल ने अपनी चर्चित कृति "दिल्ली सल्तनत" में लिखा है कि जौनपुर की मस्जिदें, जिनको मंदिर तोड़कर बनाया गया है, उनमें मीनार नहीं हैं। शर्की निर्माण कला का एक ज्वलंत प्रमाण अटाला देवी मस्जिद है।मौलवी नूरुद्दीन जैदी ने क्या लिखा है? अपनी चर्चित कृति 'तजल्लिये नूर' में मौलवी नूरुद्दीन जैदी द्वारा यह लिखा गया है कि जौनपुर किले के निर्माण के समय ही फिरोज शाह की नज़र अटाला मंदिर पर पड़ी और उसे ध्वस्त करने का आदेश दिया जो पूर्णतया इब्राहिम शाह शर्की के काल में ध्वस्त हुई। प्रख्यात इतिवेत्ता कल्हण ने अपने महान ग्रंथ 'राजतरंगिणी' में लिखा है कि इतिवृत्त के लेखक को राग-द्वेष से परे होकर इतिहास लेखन करना चाहिए। इसी भाव से को धारण करने वाले प्रख्यात विद्वान मौलवी खैरुद्दीन जी ने अपनी कृति जौनपुर नामा 1833 तथा इतिवेत्ता मौलवी नूरुद्दीन जैदी ने तजल्लिये नूर 1905 में लिखित अपनी कृतियों में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि अटाला मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद निर्माण किया गया।
शर्की राज्य जौनपुर का इतिहास, लेखक- सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी,वर्ष 1968, पृष्ठ 367-370 में वर्णित है कि- प्राचीन काल में यह मूर्ति गृह था। इसके प्रत्येक पत्थर पर मूर्ति बनी थी। यही कारण है कि इसको देवल अटाला कहते हैं। कुछ लोगों का कथन है कि इस देवल को जफराबाद के राजा जयचंद ने संवत 1416 विक्रमी में निर्माण किया था और अटल देवी नामक मूर्ति इसी में रखी थी। इसी कारण से इस देवल का नाम अटाला हुआ । (जौनपुर नामा, मौलवी खैरूद्दीन, 1835 ईस्वी, फारसी द्वितीय संस्करण, पृष्ठ संख्या 42)
कहा यह भी जाता है कि इसका नाम अटल देवी था, जिसको राजा विजय चंद ने 1159 ईस्वी में निर्माण किया था। जब फिरोज शाह किले का निर्माण करा रहा था तो एक दिन उसने अटल देवी के मंदिर को देखा और उसे तोड़ने का आदेश दिया। उसी समय सहस्त्रों मजदूर तोड़फोड़ में लग गए। जब यह समाचार निकटवर्ती स्थानों के हिंदू निवासियों को ज्ञात हुआ तो वह अधिक संख्या में एकत्रित हो गए और ढेलों की वर्षा आरंभ कर दी। तोड़-फोड़ करने वाले विवश होकर जफराबाद, फिरोजशाह के पास गए और पूर्ण घटना कह सुनाई।बादशाह की ओर से एक बड़ी सेना उनके दमन हेतु आई जिसने सशस्त्र व्यक्तियों को कत्ल कर दिया। इस पर भी लोग नहीं माने, अंत में बादशाह ने कत्ल बंद करने का आदेश दिया और एक लिखित प्रतिज्ञा पत्र भी हिंदुओं को दिया, जिसमें लिखा कि जहां तक मंदिर टूट चुका है उस पर मस्जिद बनेगी और जो शेष है मंदिर ही बना रहेगा। इस पर सब हिंदू मान गए। बादशाह ने ख्वाजा कमाल जहां को मस्जिद के निर्माण का कार्य सौंप दिया, मगर इब्राहिम शाह शर्की के शासनकाल में सिर्फ मंदिर ध्वस्त करके इस मस्जिद का निर्माण किया गया जो 1408 ईस्वी में पूर्णतया निर्मित हुई। (तजल्लिये नूर, मौलवी नूरुद्दीन जैदी,मई 1905 ईस्वी )
महाभारत में वर्णित है कि-
इतिहासप्रदीपेन मोहावरणघातिना ।
लोकगर्भगृहं कृत्स्नं यथावत् सम्प्रकाशितम् ॥
(इतिहास एक जाज्वल्यमान दीपक है। यह मोहका अन्धकार मिटाकर लोगोंके अन्तःकरण-रूप सम्पूर्ण अन्तरंग गृह को भलीभाँति ज्ञानालोकसे प्रकाशित कर देता है ॥)
(डॉ. मनोज मिश्र, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उ.प्र.) में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)
सोर्स-jansatta


Admin2

Admin2

    Next Story