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- राजनीति में 'स्वहित'
जनता से रिश्ता : पिछले दिनों भारतीय प्रशासकीय सेवा के वरिष्ठ मित्र से पूछा कि 'राजनीति में आते ही कोई शख्स इतनी अकूत संपदा का स्वामी कैसे हो जाता है?' इस विषय पर बातचीत के दौरान उन्होंने बड़ा सटीक उत्तर दिया, और वह उत्तर था- 'आज लोग राजनीति में आते ही इसीलिए हैं…।' सच में आज किसी अंग्रेजी हुकूमत को भगाने के लिए राजनीति तो होती नहीं है।हां, सत्ता पर काबिज होने की उठापटक जरूर चलती रहती है और जिसकी गोटी बैठ जाती है, वह अगले ही दिन कुर्सी के प्रताप से जाने–अनजाने अकूत धन-संपदा का स्वामी बनकर अपने को उस योग्य समझ बैठता है जिस योग्य वह कभी था ही नहीं। आजादी काल में ऐसा नहीं था। सभी का एकमात्र उद्देश्य विदेशी आक्रांताओं को देश से खदेड़ना और देश के लोगों को स्वतंत्रता की हवा में सांस लेने देने का अवसर देना था।इसलिए आजादी काल के सभी राष्ट्रपुरुष बेदाग रहे और हम भारतवर्ष के लोग हर उस वीर पराक्रमी सेनानियों के प्रति श्रद्धा से आज भी नतमस्तक रहते हैं। क्या लोभ था सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का, जिन्होंने भरी जवानी में फांसी के फंदे को चूम लिया। लाला लाजपत राय को क्या लोभ था जिनका सिर लाहौर में अंग्रेजों ने डंडों से फोड़ दिया जिससे उनकी मौत हो गई? ऐसे हजारों क्रांतिकारियों और नेताओं के बलिदानों से इतिहास भरा पड़ा है। वे निर्लोभी थे, उनकी सोच आज के नेताओं की सोच से ऊपर थी, वे धन के लिए राजनीति में नहीं आते थे, उनका उद्देश्य समाजसेवा और जनसेवा था, वे राष्ट्रपुरुष थे।
सोर्स-jansatta