- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- ऐसी वाणी रोकिए
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : कभी कहा गया था कि हास्य जनतंत्र को बढ़ाता है। आज दुखद स्थिति यह है कि खराब हास्य जनतंत्र की जड़ को हिला रहा है। सोशल मीडिया पर आम आदमी आम समझ के साथ 'विशेषज्ञ' होने की खुशफहमी पालता है, चिंता की बात यह नहीं है। चिंता की बात यह है कि डिग्रीधारी विद्वान भी अकादमिक आदर्शों को भूल कर आम आदमी जैसा व्यवहार करने लगते हैं। जिस देश के राष्ट्रीय कैलेंडर में दशहरे और ईद की सरकारी छुट्टी मिलती है, जहां एक बड़े तबके की शिक्षा का आधार मदरसे और सनातनी विचारधारा के स्कूल हैं वहां टीवी पर धार्मिक प्रतीकों पर अतार्किक और असंसदीय भाषा की बहस नागरिकों का बड़ा नुकसान कर रही है। धर्म और आधुनिकता पर बहस खास परिप्रेक्ष्य में हो सकती है सोशल मीडिया के किसी एक पंक्ति, उकसाऊ पोस्ट या चीखते-चिल्लाते एंकरों, प्रवक्ताओं के जरिए नहीं। वैचारिक व अकादमिक आदर्शों के अकाल पर बेबाक बोल।