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- पूर्वाग्रहों से मुक्त

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : जीवन बहती नदी की तरह होता है। जीवन में उतार-चढ़ाव यकायक वैसे ही आते हैं जैसे प्रकृति में जलजले, आंधी-तूफान, सूखा-बाढ़, सर्दी-गर्मी-बरसात। मनुष्य को नहीं पता होता कि भविष्य में क्या घटने वाला है। फिर भी वह मन का गुलाम होकर एक पैर पर जीवन भर नृत्य करता-सा लगता है। जीवन क्या है? इस विषय पर हर दौर में चिंतन होता रहा है।फिर भी मनुष्य अपनी ही तरह से जीता है, उठता, गिरता और जीवन भर गिर-गिर कर उठता रहता है। कह सकते हैं कि मनुष्य जिंदगी भर सीखता हुआ जीवन को सुखी, आनंदमय बनाने के लिए प्रयत्न करता रहता है। पर, क्या वह ऐसा कर पाता है? यह सवाल हर आदमी के सामने होता है और हर कोई अपनी ही तरह से उलझता, सुलझता रहता है। हकीकत में कुछ ही होते हैं जो सही मायने में सार्थक जीवन गुजार पाते हैं। मन का गुलाम होकर पहेली को सुलझाने में ही मनुष्य जीवन बिता देता है।दरअसल, मनुष्य शब्द में ही मन निहित है। मन नितांत चंचल है। मनुष्य का दुश्मन कहीं बाहर नहीं, अपने अंदर ही हुआ करता है। बाहरी दुश्मन जो दिखाई देते हैं, उनसे लड़ कर जीता भी जा सकता है और हमें लगता है कि हम जीत गए हैं, पर पल-पल मन हमें नचाता है और हम जीवन भर नाचते रहते हैं, एक गुलाम की तरह। वे जो हमें विजेता की तरह नजर आते हैं, वे भी गुलाम ही ठहरते हैं, अपने मन के या पूर्वाग्रहों के।
