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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : बंटवारे की यह अग्नि दो देशों के विभाजन तक ही सीमित नहीं रही। दोनों देशों के विभाजन के पश्चात वहां कई समस्याओं का जन्म हुआ। देश में आंतरिक स्तर पर भी बंटवारे जैसी स्थितियां कई बार आईं। जिनके मूल में थी, सत्ताधारी वर्ग व नौकरशाही व्यवस्था की भ्रष्ट नीति। देश में भ्रष्टाचार इतने व्यापक पैमाने पर फैल चुका था, जिसके भरण-पोषण के लिए देश व राज्यों के विकास को भी दाव पर लगा दिया गया। जिन राज्यों में भ्रष्टाचार हद से ज्यादा बढ़ गया, उस राज्य का विकास अवरुद्ध हो गया। परिणामस्वरूप उनमें से कुछ राज्यों में अलगाववाद की धारणा को बल मिला। कुछ राज्यों को तो अंतत: हो हिस्सों में बांटना ही पड़ा। यह भ्रष्टाचार के ही दुष्प्रभाव थे जिसके फलस्वरूप राज्यों का विभाजन, असमान विकास, राजनीतिक उपेक्षा, अन्याय, और अविश्वास के कारण नक्सलवाद जैसी समस्याओं का विकास होता चला गया। देश का कोई भू-भाग यदि इस बात की शिकायत करता है कि समृद्ध प्राकृतिक विरासत, अपार खनिज संपदा होने के बावजूद वहां विकास नही हुआ है, सुविधाओं का अभाव है या फिर लोग दाने-दाने को मोहताज हैं तो इसके लिए कोई और नहीं बल्कि हमारी भ्रष्ट व्यवस्था की भ्रष्ट नीतियां ही दोषी हैं।आजादी के बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया, हमारे देश का बौद्धिक वर्ग भी दो गुटों में बंटता चला गया। एक वर्ग में वह लोग थे जो खुद को प्रगतिशील मानते थे तथा दूसरे वह जो प्रगतिशील नहीं है। कुछ लोगों ने सांस्कृतिक और धर्मवादियों को भी गैर प्रगतिशील ही माना है। दोनों प्रकार के लेखक और बुद्धिजीवी आपस में अनेक विषयों पर वाद विवाद करते हैं और देश की हर समस्या पर उनका नजरिया अपनी विचारधारा के अनुसार तय होता है। देश में बेरोजगारी,भुखमरी तथा अन्य संकटों पर पर ढेर सारी कहानियां लिखी जाती हैं पर उनके पैदा करने वाले कारणों पर कोई नहीं लिखता। अर्थशास्त्र के अंतर्गत भारत की मुख्य समस्याओं में 'धन का असमान वितरण और कुप्रबंध भी पढ़ाया जाता है। लार्ड मैकाले ने ऐसी शिक्षा पद्धति का निर्माण किया जिसमें स्वयं की चिंतन क्षमता तो किसी मेें विकसित हो ही नहीं सकती और उसमें शिक्षित बुद्धिजीवी अपने कल्पित मसीहाओं की राह पर चलते हुए नारे लगाते और 'वादÓगढ़ते जाते हैं।
