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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : किशोरावस्था 'समस्या काल' के रूप में मनोवैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री किशोरावस्था को 'विकट अवस्था' या 'समस्या की अवस्था' कहते हैं। यह पूरी तरह अनिश्चित है और अस्थिरता का काल है। अस्थिरता के इस काल में व्यक्ति बचपन की आदतों को छोड़कर परिपक्व व्यवहार की ओर अग्रसर होता है। इसी प्रकार वह बाल्यावस्था की अभिवृत्तियों में परिवर्तन करने लगता है। तीव्र शारीरिक वृद्धि के कारण इस काल में किशोर-किशोरियों के मानसिक जीवन में भयंकर उथल-पुथल होती है। किशोर बालक-बालिकाओं की अधिकांश समस्याएँ उनकी निजी समस्याएँ होती हैं, जिनका सम्बन्ध किसी-न-किसी रूप में उनके प्रेम और कामेच्छा से होता है। किशोर अपने माता-पिता तथा विपरीत यौन के सदस्यों के साथ सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने में बड़ी कठिनाई का अनुभव करता है। जहाँ तक बड़ों से उसका सम्बन्ध होता है, बेचारा किशोर यह नहीं समझ पाता कि उनके सामने वह किस प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करे।किशोरावस्था में तीव्र सांवेगिकता पैदा होती है। उसके प्रत्येक संवेग तीव्रतर रूप से प्रकट होते है। क्रोध की स्थिति में अधिक क्रोध प्रकट करना, विषमलिंगियों के प्रति अधिक आकृष्ट होना या सामाजिक स्वीकृति का भय आदि सब कुछ तीव्र रूप से में दिखाई पड़ता है। कुहलन के अनुसार—"वह स्वयं के प्रति अनिश्चित और अपनी स्थितियों के प्रति असुरक्षा का अनुभव करता है।" स्टेनले हॉल के शब्दों में— किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, तूफान या विरोध की अवस्था है। "
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