सम्पादकीय

चैनलों का शांतिपाठ

Admin2
17 Jun 2022 4:53 PM GMT
चैनलों का शांतिपाठ
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : अचानक सब चैनल एकदम शिष्ट, शालीन और ऊबाऊपन की हद तक शांत हो गए! एंकर, वक्ता-प्रवक्ता, रिपोर्टर सब शिष्टता की प्रतिमूर्ति हो गए! एक-दूसरे को गरियाने वाले सिरे से गायब हो गए! फिर नौ जून को दिल्ली पुलिस ने इकतीस नफरतवादियों पर एफआइआर क्या की, बड़े-बड़े नफरतिए ठंडे हो गए! इसी क्रम में जब एक बड़े मुसलिम नेता पर एफआइआर हुई, तो उनके प्रवक्ता ने एक चैनल पर सिर्फ इतना कहा कि 'हम एफआइआर की निंदा करते हैं, धन्यवाद' और फ्रेम से निकल गए।इसे देख एक एंकर बुक्का फाड़ कर हंसी और कहने लगी : कहां चले साहब, एक एफआइआर ने दम निकाल दिया। बाकी वक्ता-प्रवक्ता भी हंसते रहे कि यह क्या हुआ? इससे पहले 'भड़काऊ' भाषण देने वाले नेताजी हर चंद कहते दिखते कि नूपुर को गिरफ्तार करो और जब इकतीस पर पुलिस ने एफआइआर कर दी तो सबकी सिट्टी-पिट्टी गुम होती नजर आई!

एक एंकर ने तो एक 'हेटीले' प्रवक्ता को डपट भी दिया कि ज्यादा बकवास न करें, वरना एफआइआर हो जाएगी। इसके बाद श्रीमान ठंडे नजर आए!हमने तो इसी स्तंभ में बार-बार कहा कि इस सबका अंत क्या, और लीजिए अंत हो गया।काश! यह 'झटका' कुछ पहले हो गया होता तो वह सब न होता जो हुआ! फिर भी कुछ प्रवक्ता 'नफरत' का इतिहास बताते रहे: एक कहता कि यह सब 2014 से शुरू हुआ, तो दूसरा कहता कि '84 में बड़ा पेड़ गिरने से धरती हिलती है' वह क्या था?बहरहाल, एफआइआर के बाद सारी खबरों और बहसों के तेवर बदलते नजर आए। कई एंकर गिनाते रहे कि इकतीस में किस-किस 'हेटवादी' के नाम हैं! गजब कि इनमें एक 'सेक्युलर' पत्रकार का भी नाम रहा! लेकिन इस सूची में वह नाम नहीं दिखा, जिसने उस चर्चित बहस में 'शिवलिंग' के प्रति अपमानजनक बातें कहीं थी, जिनसे उत्तेजित होकर नूपुर ने वह कहा जो उन्हें नहीं कहना चाहिए था और जिसकी वजह से उन पर मुकदमे हुए। एक को सजा तो दूसरे को क्यों नहीं? यह सवाल अनुत्तरित ही रहा!नूपुर की विवादित टिप्पणी पर एक चैनल पर एक वक्ता की राय थी कि नूपुर ने उत्तेजित कर दिए जाने पर वह कहा, जो लिखा है, लेकिन बहसों में इस पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया। इसी बीच मामला वैश्विक हुआ! अरब देश टूट पड़े। शाम तक हमारे चैनल कतर, कुवैत, बहरीन सउदी अरब समेत सत्तावन इस्लामी देशों के समूह ने नूपुर की टिप्पणी को पैगंबर साहब का अपमान करने वाला बताया और सख्त कार्रवाई की मांग की।
इसका असर हुआ। भाजपा ने नूपुर को पार्टी से निलंबित किया और मीडिया प्रभारी नवीन जिंदल को पार्टी की सदस्यता से निकाल कर विवाद पर पानी डाला! 'हेटवादियों' ने इसे भी भाजपा का 'ड्रामा' कहा, लेकिन इसका असर यह हुआ कि जिनकी जुबान पर कभी 'देश' शब्द नहीं आता था, वे अचानक 'देशभक्त' बन कर सरकार को धिक्कारते दिखे कि भाजपा ने मेरे देश की बेइज्जती कराई है, फिर कहते कि नूपुर को गिरफ्तार करो। कानपुर दंगे के लिए वही जिम्मेदार है। वह अगर वैसा न कहती तो यह न होता!फिर वे देवता बन कर कहने लगते कि किसी धर्म का अपमान नहीं करना चाहिए और फिर कोई कहने लगता कि हमारे यहां तो इसकी एक ही सजा 'सर तन से जुदा सर तन से जुदा'!एक बहस में सिर्फ एक मुसलिम विद्वान ने स्पष्ट किया कि 'ईश निंदा' की कथित व्याख्या इस्लाम के हिसाब से सही नहीं है, लेकिन उनकी कौन सुनता?सुना गया तो बूंदी के मुफ्ती साहब को सुना गया, जिनके नफरती भाषण को कई चैनलों ने बार-बार बजाया, जिसमें वे कहते दिखते थे कि जो गाली देगा, उसकी जुबान काट ली जाएगी, जो आंख उठा कर देखेगा उसकी आंख निकाल जी जाएगी, जो हाथ उठाएगा उसके हाथ काट दिए जाएंगे और उनके समर्थक उनके हर वाक्य पर 'बेशक बेशक' कहते रहते!
इस सबके बावजूद नूपुर को नीदरलैंड के एक सांसद का भी समर्थन प्राप्त हुआ और इस तरह नूपुर एक ग्लोबल नाम बना! एफआइआर के बबहुत से खबर चैनल 'एक्सपोज' हुए। कल तक जो चैनल 'हेट' बेचते थे अब ह्यहेटह्ण से ह्यहेटह्ण करते दिखे और संतई वाली लाइनें लगाते दिखे: ह्यजहरीला बोलोगे तो एफआइआर', 'हेट हिपोक्रेसी', 'नो प्लेस फार हेट', 'क्रैक डाउन आन हेट]!स्वागतव्य है चैनलों का यह शांतिपाठ, लेकिन क्या सिर्फ इतना काफी है?

सोर्स-jansatta

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