सम्पादकीय

डिजिटल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी

Admin2
15 Jun 2022 10:54 AM GMT
डिजिटल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी
x

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :बानगी 2

इलाज के लिए जब महानायक लीलावती अस्पताल में थे, तो सोशल मीडिया प्लेटफाॅॅर्म पर भ्रम फैलाते हुए उनके बारे में आपत्तिजनक पोस्ट। 29 जुलाई को अमिताभ बच्चन इससे इतने आहत कि उनकी पीड़ा यूं - यदि मैंने अपने फॉलोअर्स को लिख दिया कि ठोक दो, तो कहीं के नहीं रहोगे।ये दोनों बानगी अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर उठ रहे सवालों के बीच अहम हैं। केरल सरकार ने पुलिस अधिनियम में संशोधन कर 118ए जोड़कर बच्चों और महिलाओं पर आपत्तिजनक पोस्ट पर 5 साल तक की जेल और 10 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया। हालांकि, भारी विरोध के चलते महज 72 घंटे के भीतर ही केरल सरकार ने इस संशोधन पर फिलहाल अमल न करने की बात कही।इस संशोधन के खिलाफ वहां की भाजपा हाईकोर्ट चली गई। यह महज संयोग कि केरल सरकार के विरोध में जब वहां की भाजपा कानूनी दरवाजे पर दस्तक दे रही थी, तब उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में सोशल मीडिया पर नकेल के लिए की गई। कई गिरफ्तारियों पर सवाल उठ चुके थे। इतना ही नहीं अब तो केंद्र सरकार ने भी डिजिटल मीडिया प्लेटफाॅॅर्म की चौकीदारी शुरू कर दी है।अब डिजिटल मीडिया पर भी केंद्र सरकार की निगरानी हो चुकी है।
संकट व तकनीक के दौर में सोशल व डिजिटल मीडिया अहम
आज के इस संकट और तकनीक के दौर में सोशल मीडिया की अहमियत काफी बढ़ गई है। ऑनलाइन पेमेंट हो या खरीदारी, संक्रमण काल में बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई हो या वर्क फ्रॉम होम नेट ने सभी को कनेक्ट कर रखा है। ऐसे में हर हाथ में संकट से उबरने के साथ-साथ तकनीक के लिए मोबाइल का इस्तेमाल बड़ा औजार साबित हुआ है। इस औजार पर महज पांच सौ-हजार रुपये के पैकेज से घर की दहलीज लांघे बगैर दुनिया मुट्ठी में यानी नेट- टु-कनेक्ट।
इसी कनेक्टिविटी के दौरान मोबाइल पर औसतन हर मिनट एक टन की आवाज यानी व्हाट्सएप संदेश, फेसबुक नोटिफिकेशन। यदि गौर करें तो इस नोटिफिकेशन में सौ में औसतन 90-95 फिजूल के संदेश।
गांधी, गोडसे, सावरकर, हिंदी-ऊर्दू, हिंदू-मुसलमान या धर्मविशेष के खिलाफ कटुता वाले कई संदेश। अपने-अपने मतलब के लिहाज से इन्हीं संदेशों का सीजफायर (फारवर्ड करने का चलन)। यही रवैया सोशल मीडिया को असामाजिक बनाता है। फेसबुक, व्हाट्सएप ग्रुप, ट्विटर पर धड़ल्ले से कटुता वाले ई कचरा फैलाए जाते हैं। इनसे वैमनस्यता बढ़ती है। और यहीं से शुरू होती है सरकारी चिंता।
डिजिटल मीडिया की सरकारी चौकीदारी
अब डिजिटल मीडिया पर भी केंद्र सरकार की निगरानी हो चुकी है। ऑनलाइन न्यूज, फिल्में और वेब सीरीज अब सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन हैं। सूचना और प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्रालय की अब महज तकनीक पर नहीं बल्कि सामग्री (कंटेंट) पर भी नजर रहेगी।
केंद्र ने सूचना और प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्रालय में राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (एनसीसीसी) निदेशक को ऑनलाइन कंटेंट ब्लॉक करने का निर्देश जारी करने का अधिकार दिया है। आईटी एक्ट की धारा 69 और 69 ए के प्रावधानों के तहत किसी ऐसी जानकारी को रोकने का निर्देश दिया जा सकता है जो देश की रक्षा, अखंडता, संप्रभुता को प्रभावित करती हो।
क्या कहता है कानून?
यूं तो सुप्रीम कोर्ट में 2015 में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 66 ए को असांविधानिक करार दिया गया जिसमें किसी की भी गिरफ्तारी का मनमानी अधिकार नहीं। केरल के संदर्भ में यदि देखें तो 118 ए से पहले 118 डी को निरस्त किया जा चुका है। लेकिन पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा था कि हाल के दिनों में जिस चीज का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है, वह है अभिव्यक्ति की आजादी।
सुप्रीम कोर्ट ने तो केंद्र सरकार से यहां तक कहा कि सोशल मीडिया को लेकर दिशा-निर्देश की सख्त जरूरत है, ताकि भ्रामक जानकारी देने वालों की पहचान हो सके, उन पर कार्रवाई हो सके। अदालत ने चिंता जताई कि हालात यह हैं कि यह हमारी निजता तक सुरक्षित नहीं, अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल नफरत का बीज बोने के लिए नहीं होना चाहिए।
ऐसे में अब यदि सरकारें भी चिंतित हो रही हैं तो चिंता वाजिब है, चाहे वह केरल की लाल सलाम सरकार हो या भाजपा शासित भगवा सरकारें या केंद्र की सरकार। क्या हमें महज सरकार के भरोसे ही रहना चाहिए।
सोशल मीडिया पर औसतन सौ में पांच जरूरी और जानकारीपरक पोस्ट होते, वहीं 90 फीसदी या तो फेक या संक्रमित।
सोशल मीडिया पर औसतन सौ में पांच जरूरी और जानकारीपरक पोस्ट होते, वहीं 90 फीसदी या तो फेक या संक्रमित। - फोटो : सोशल मीडिया
अभिव्यक्ति की इस आजादी के मायने
आज हर व्यक्ति कम से कम दो-चार व्हाट्स एप ग्रुप से कनेक्ट है। फेसबुक से जुड़ाव भी। अब तो फेसबुक ने भी माना है कि इस तिमाही में औसतन दस हजार में 10-11 पोस्ट नफरत फैलाने वाले रहे। फेसबुक अपनी ओर से ऐसे पोस्ट पर नकेल की व्यवस्था करता है। पोस्ट हटाता है या बार-बार ऐसे पोस्ट करने वालों को ब्लॉक करता है। लेकिन यह कार्वाई मामूली। फेसबुक को कई बार संसदीय समिति का सामना करना पड़ा।
अभी ट्वीटर ने भी लद्दाख एलएसी को लेकर गलती की। व्हाट्सएप ग्रुप पर तो अनजाने में भी लोग किसी विवादास्पद पोस्ट को इस हद तक आगे खिसका-बढ़ा देते हैं कि सामाजिक तानाबाना बिगड़ जाता है। ऐसे में यदि सरकारी निगरानी की पहल की जा रही है तो इस पर इतना चिल्ल-पौं क्यों।सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जिस तरह की सामग्री परोसी जा रही है, क्या उनमें से अधिकांश विचलित नहीं करते। फिर जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल होता, वह तो और भी निंदनीय व चिंताजनक।सोशल मीडिया पर औसतन सौ में पांच जरूरी और जानकारीपरक पोस्ट होते, वहीं 90 फीसदी या तो फेक या संक्रमित। यह फर्जी खबरें जंगल में आग की तरह फैलती हैं। इनका संक्रमण समाज को कोरोना से भी ज्यादा संक्रमित कर जाता है।
आंकड़ों के आईने में
संसद के पिछले सत्र में दी गई जानकारी के मुताबिक, देश में झूठ और नफरत फैलाने वाले 7819 वेबसाइट लिंक और सोशल मीडिया अकाउंट पर कार्रवाई की गई। इनमें 2017 में 1385, 2018 में 2799 और 2019 में 3635 वेबसाइट, वेबपेज और सोशल मीडिया अकाउंट्स बंद किए गए। नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक, 2017 में 257 फेक न्यूज के मामले दर्ज किए गए।मध्य प्रदेश में सर्वाधिक 138 तो यूपी में 32 और केरल में 18 तो जम्मू-कश्मीर में 4 मामले शामिल हैं। जिस जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर पाबंदी आम थी, वहां अब ऑप्टिकल फाइवर के जाल से संचार के तंत्र विकसित किए जा रहे हैं। यह सामरिक लिहाज के साथ-साथ कश्मीर के विकास के लिए भी अहम है।
एक आंकड़े के मुताबिक, देश में व्हाट्सएप के 16 करोड़ और फेसबुक के 15 करोड़ यूजर्स हैं। भारत में करीब 74 करोड़ लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में सोशल व डिजिटल मीडिया को लेकर चिंता वाजिब है।
लक्ष्मण रेखा जरूरी
प्रसिद्ध पत्रकार राजेंद्र माथुर की एक कार्यशाला में पाठ। एशियन पेंट के गिट्टू द ग्रेट की तरह सभी की मूंछ बनाना ही पत्रकारिता नहीं। अमर उजाला के नवोन्मेषक अतुल माहेश्वरी ने भी जिम्मेदार पत्रकारिता पर जोर देकर नई पीढ़ी को दिशा दी। अब जब सोशल मीडिया की बात हो रही है, तो जाहिर है कि यह भी एक तरह की मीडिया ही है, जो पेशेवर पत्रकारों के अलावा आमजनों से जुड़ाव वाली है।
इस मीडिया में व्हाया-मीडिया जो बयार बह पड़ती है, उसे नियंत्रित करने की जिम्मेदारी हम आमजनों की भी है। हम यूजर्स को भी अपने लिए लक्ष्मण रेखा खींचनी होगी। हमें जिम्मेदार होना होगा। अब तो कई निजी संस्थानों ने भी अपने कर्मचारियों के सोशल मीडिया पर सक्रियता को लेकर मानक तय कर दिए हैं।
सरकारी कर्मचारी और सेना के लिए तो व्यवस्था भी है और बार-बार उन्हें आगाह भी किया जाता है। क्या कभी फिजूल के नफरत भरे पोस्ट को इग्नोर कर हम अपनी जिम्मेदारी निभा सकेंगे।
सोर्स-amarujala
Admin2

Admin2

    Next Story