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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : भारत का वैश्विक रैंकिंग के साथ प्रेम-घृणा का रिश्ता है। जब ऐसी रैंकिंग भारत के अनुकूल होती है, तब हममें से कई लोग वाजिब ही उत्साहित होते हैं, लेकिन जब ऐसी कोई रैंकिंग हमारी खराब छवि दिखाती है या हमारे अनुकूल नहीं होती, तब हम गुस्से में उस पर हमलावर हो जाते हैं। कुछ लोग तो ऐसी रैंकिंग को भारत की छवि धूमिल करने की साजिश भी मानने लगते हैं। वैश्विक सूचकांकों पर हमारी चरम प्रतिक्रियाएं अक्सर आत्मनिरीक्षण और अन्य देशों के संदर्भ में विभिन्न क्षेत्रों में हमारे प्रदर्शन के आकलन में बाधक बनती हैं।व्यक्तिगत रूप से मुझे नहीं लगता कि वैश्विक रैंकिंग के जरिये भारत के कद को छोटा करने की साजिश की जाती है, क्योंकि दुनिया भर के सभी देशों का हर क्षेत्र में मूल्यांकन करने वाली कोई एक एजेंसी नहीं है। न ही कोई एक पद्धति या मानक धारणा है। अलग-अलग एजेंसियां वैश्विक रैंकिंग का काम करती हैं। किसी भी वैश्विक सर्वेक्षण में किसी देश के बारे में विशिष्ट निष्कर्ष पर आने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली की वैध चर्चा और आलोचना हो सकती है, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि किसी विशेष सर्वेक्षण में प्रत्येक देश का आकलन करने के लिए एक ही पद्धति का उपयोग किया जाता है।