सम्पादकीय

अफस्पा से मुक्ति

Rani Sahu
1 April 2022 7:05 PM GMT
अफस्पा से मुक्ति
x
भारत सरकार ने पूर्वोत्तर के असम, मणिपुर और नगालैंड के कई इलाकों को अफस्पा से मुक्त करने का निर्णय लिया है

भारत सरकार ने पूर्वोत्तर के असम, मणिपुर और नगालैंड के कई इलाकों को अफस्पा से मुक्त करने का निर्णय लिया है। सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून को 'राक्षसी' करार दिया जाता रहा है। पूर्वोत्तर के नागरिक समाज की यह निरंतर मांग रही है कि यदि पूर्वोत्तर राज्यों में लोकतंत्र बुनियादी तौर पर लागू करना है तो अफस्पा को खत्म किया जाए। यदि पूर्वोत्तर की शेष भारत के साथ एकता, अखंडता स्थापित करनी है तो अफस्पा को रद्द किया जाए। दरअसल यह कानून घोर उग्रवाद और जेहादी आतंकवाद के मद्देनजर बनाया गया और पूर्वोत्तर समेत देश के कुछ और हिस्सों में भी लागू किया गया। इस कानून के तहत सशस्त्र सेनाओं और बलों को विशेषाधिकार हैं कि संदेह की स्थिति में कहीं भी छापा मारकर तलाशी ली जा सकती है। किसी को भी गिरफ्तार किया जा सकता है अथवा गोली मार कर जि़ंदगी को शांत किया जा सकता है। कानून का दुरुपयोग भी किया जाता रहा है और यह पूरी तरह 'अमानवीय' कानून है। कानून के दायरे में कई अनहोनी और अनापेक्षित घटनाएं भी हुई हैं, जिनमें मासूम नागरिकों की हत्याएं हुई हैं। सैनिकों पर भी उग्रवादी गुटों ने पलटवार किए हैं, जिनमें हमारे जांबाज भी 'शहीद' हुए हैं। बेशक पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद बेहद कम हुआ है। कथित उग्रवादी चेहरे राजनीति के जरिए सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हो रहे हैं।

उसी का असर है कि फिलहाल असम, मणिपुर, नगालैंड के इलाकों में अफस्पा खत्म करने का निर्णय भारत सरकार ने लिया है। बेशक असम में इस फैसले को लागू करना अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन मणिपुर और नगालैंड में सरकार की असली अग्नि परीक्षा होगी। गृह मंत्रालय ने तय किया है कि असम के 23 जिलों को पूरी तरह और एक जिले को आंशिक तौर पर 'अशांत क्षेत्र' के लेबल से मुक्त किया जाएगा। मणिपुर के 6 जिलों के 15 पुलिस स्टेशन क्षेत्र इस श्रेणी में रखे गए हैं। नगालैंड के 7 जिलों के 15 पुलिस स्टेशन इलाके अब मुक्त होंगे। इन इलाकों में अब 'राक्षसी' कानून प्रभावी नहीं होगा। सरकार के निर्णय के साथ ही इन इलाकों में अफस्पा नहीं होगा। असम में व्यापक स्तर पर अफस्पा से मुक्ति मिली है, लेकिन मणिपुर और नगालैंड में कम इलाके इस निर्णय की परिधि में हैं, लिहाजा साफ है कि उन राज्यों में ज्यादातर इलाके अब भी अफस्पा के साए में रहेंगे। बहरहाल भारत सरकार ऐसा निर्णय तभी ले पाई, जब पूर्वोत्तर राज्यों में करीब 7000 उग्रवादियों ने हालिया सालों में आत्मसमर्पण किया था। पूरे पूर्वोत्तर में आज भाजपा या उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं, लिहाजा पूर्वोत्तर को उग्रवाद से मुक्त करना भी संभव हो पा रहा है। मोदी सरकार के ही दौरान 2020 का बोडो समझौता हुआ, 2021 में कार्बी आंगलोंग करार किया जा सका। क्षेत्रीय उग्रवाद के बुनियादी कारणों को संबोधित किया गया।
अभी हाल ही में गृह मंत्री ने मध्यस्थता की और असम-मेघालय के बीच सीमा विवाद सुलझाया गया। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने समझौते के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। ऐसे ही प्रयासों से उग्रवाद समाप्त होता है और विकास के रास्ते खुलते हैं। केंद्र सरकार में पूर्वोत्तर विकास पर एक स्वतंत्र मंत्रालय है। उसका बजट है। मोदी सरकार को ऐसे ही प्रयास जम्मू-कश्मीर में भी करने चाहिए। दरअसल अफस्पा कानून उपनिवेशवादी संस्कृति की देन है। आधुनिक और लोकतांत्रिक भारत में ऐसे कानूनों का औचित्य ही क्या है? अफस्पा पूर्वोत्तर के सिर्फ तीन राज्यों में ही नहीं, बल्कि सभी सातों राज्यों से पूरी तरह समाप्त किया जाना चाहिए। त्रिपुरा, मेघालय, मिज़ोरम आदि राज्यों के संदर्भ में भी अध्ययन किए जाने चाहिए कि वहां कानून व्यवस्था कैसी है। उग्रवाद के विस्तार और उनकी सक्रियता कितनी है। क्या आज भी अफस्पा की ज़रूरत उन राज्यों में है? इसी के आधार पर अफस्पा की समूल समाप्ति की जानी चाहिए। मानवाधिकारवादी आरोप लगाते रहे हैं कि इन विशेष अधिकारों के बल पर सशस्त्र बल अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते रहे हैं। कई बार निर्दोष लोगों पर पुलिस कार्रवाई के आरोप भी लगे। अब समय आ चुका है जब इस कानून को वापस लिया जाना चाहिए तथा मानव अधिकारों को अहमियत दी जानी चाहिए।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story