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- शिक्षा से ही मिलेगी...
स्त्री के व्यक्तित्व में कोमलता और सहानुभूति का गुण पुरुष से अधिक ही रहा है। युगों-युगांतर से उसके सम्मान को शब्दजालों में ही उलझाकर रखा गया। उसे देवी, जगत जननी, न जानें किन-किन अलंकरणों से अलंकृत किया गया। किंतु सम्मान! न तो उसे उच्च घरानों में प्राप्त हुआ, निम्न, अति निम्न एवं मध्यवर्गीय परिवारों में तो वह दोहरे और तीहरे शोषण को झेलने की अभ्यस्त ही बनी रही। क्या कारण है कि उसे भोग-विलास की ही वस्तु बनाकर रखा गया? वर्चस्ववादी एवं शारीरिक रूप से सुदृढ़ पुरुष ने उसे केवल भोगने एवं बच्चे पैदा करने का यंत्र ही समझा। उसे कभी भी वह सम्मान नहीं दिया गया जिसकी वह वास्तव में अधिकारिणी थी। यद्यपि कुछ काल खंडों में वह सशक्त होने का प्रयास करती हुई प्रतीत होती है। किंतु उसकी सशक्तता को पुरुष ही नहीं, उसकी अपनी जाति की नारी भी पनपने नहीं देती। भारत असंख्य वर्षों तक गुलाम रहा, किंतु स्त्री तो मानव सभ्यता के पनपते ही गुलामी की जंजीरों में जकड़नी शुरू हो गई।