सम्पादकीय

खाद्य तेल, खाद के संकट

Rani Sahu
28 Feb 2022 6:58 PM GMT
खाद्य तेल, खाद के संकट
x
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सिर्फ पेट्रो पदार्थ ही महंगे नहीं होंगे

रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सिर्फ पेट्रो पदार्थ ही महंगे नहीं होंगे, बल्कि उस आपूर्ति के संकट भी गहरे हो सकते हैं, जिनका सीधा संबंध हमारे खान-पान और खेती से है। खाद्य तेल और कुछ खास उर्वरकों के लिए हम आयात के ही भरोसे हैं। सूरजमुखी, पाम ऑयल, सोयाबीन तेल के लिए हम विदेशों पर आश्रित हैं। भारत में करीब 230 लाख टन खाद्य तेल की जरूरत है, जबकि घरेलू उत्पादन करीब 90 लाख टन ही है। यह पहले से ही विदित है कि रूस गेहूं का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। यूक्रेन का ऑस्टे्रलिया के बाद तीसरा स्थान है। मक्का को लेकर अमरीका और अर्जेन्टीना के बाद यूक्रेन का स्थान है। फिलहाल गेहूं और मक्के का संकट भारत के सामने नहीं है, लेकिन बुनियादी चिंता खाद्य तेल और उर्वरक, खाद के संकट को लेकर है।

देश ने दिसंबर, 2021 तक 14.02 अरब डॉलर का वनस्पति तेल आयात किया है। रूसी युद्ध और यूक्रेन समेत अन्य महत्त्वपूर्ण देशों के साथ टकराव के हालात के मद्देनजर खाद्य तेल आयात का बिल करीब 18 अरब डॉलर या उससे भी अधिक उछल सकता है। मौजूदा वित्त वर्ष में इसका सीधा असर हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, क्योंकि हमने ऐसी परिस्थितियों के अनुमान नहीं लगाए थे और उसके मुताबिक बजट में प्रावधान भी नहीं किए थे। बहरहाल बजट में तो व्यवस्था की जा सकती है, क्योंकि संसद का बजट सत्र अभी जारी है और मनी बिल भी अभी पारित किया जाना है। मार्च में अवकाश के बाद संसद की बैठकें भी शुरू होंगी। बुनियादी संकट खाद्य तेल और उसकी लगातार आपूर्ति का है। भारत सूरजमुखी तेल की जरूरतों और खपत का करीब 98 फीसदी हिस्सा आयात करता है। उसका भी करीब 93 फीसदी आयात यूक्रेन और रूस से किया जाता है। सोयाबीन का तेल अर्जेन्टीना और ब्राजील से आयात किया जाता रहा है। पाम ऑयल इंडोनेशिया और मलेशिया से मंगवाया जाता है। रूस-यूक्रेन के यौद्धिक टकराव के मद्देनजर इन खाद्य तेलों की अनवरत आपूर्ति, काला सागर के जरिए, भारत की बंदरगाहों तक, कैसे होगी, यह एक अहम सवाल है। यह भी स्पष्ट होता है कि देश अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए एक-दूसरे पर कितने आश्रित हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने खाद्य तेल में भारत की कमजोरी और अक्षमता को उसी तरह उजागर किया है, जिस तरह 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान हमने पेट्रोलियम संकट झेला था। दोनों ही क्षेत्रों में भारत अभी आत्मनिर्भरता से बहुत दूर है। खाद्य, वनस्पति तेल के अलावा, कृषि भी हमारे लिए चिंता और सरोकार का सबब है। कनाडा के बाद रूस और उसका पड़ोसी देश बेलारूस पोटाश के सबसे बड़े उत्पादक देश हैं।
यदि रूस से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति कम होगी, तो अमोनिया और यूरिया की आपूर्ति भी प्रभावित होगी, लिहाजा उनकी कीमतें बढ़ेंगी। ये उर्वरक खेती के लिए खाद का काम करते रहे हैं। युद्ध के पहले चार दिनों में रूस के करीब 5 लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो चुके हैं। रूस की उड़ानों पर कई देशों की पाबंदियां हैं। समंदर के रास्ते पर भी सेनाओं की निगरानी और तैनाती है। यदि युद्ध-विराम भी हो जाता है, तब भी हालात एकदम सहज नहीं होंगे। अमरीका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन रूस को 'स्विफ्ट' सिस्टम से भी बाहर करने पर विमर्श कर रहे हैं। यह प्रणाली दुनिया के 200 से भी ज्यादा देशों के 11,000 से अधिक बैंक और वित्तीय संस्थान इस्तेमाल करते हैं। यह देशों के बीच इंटरबैंक लेन-देन की प्रणाली है। यदि ऐसा होता है, तो रूस समेत अन्य देशों से भी लेन-देन प्रभावित होगी। कारोबार डॉलर, यूरो, पाउंड में नहीं किया जा सकेगा। भारत भी रूस के साथ रुपए में लेन-देन करने पर विचार कर रहा है। जाहिर है कि रूस की 'रुबल' मुद्रा पर उलटा असर पड़ेगा। कारोबार और आपूर्तियां कैसे संभव होंगी? भारत अपने रक्षा उपकरणों और हथियारों का 63 फीसदी से ज्यादा आयात रूस से ही करता रहा है। बहरहाल अभी पूरी दुनिया के लिए यह युद्ध एक बड़ी बाधा है, भयानक संकट भी बन सकता है, लिहाजा यह युद्ध ही समाप्त किया जाना चाहिए।

क्रेडिट बाय दिव्यहिमाचल

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story