सम्पादकीय

भारत-रूस संबंध: मास्को का महत्व

Neha Dani
22 Nov 2021 1:43 AM GMT
भारत-रूस संबंध: मास्को का महत्व
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लेकिन महत्वपूर्ण हिस्से का सार है।

आम तौर पर अमेरिका के साथ अपने संबंधों से खुश होने के विपरीत भारत रूस के साथ अपेक्षाकृत अपनी कम महत्वपूर्ण कूटनीति को मजबूत करने के लिए तैयार है। भारत और रूस के पुराने भाईचारे वाले संबंधों में लौटने को लेकर किसी को कोई भ्रम नहीं होना चाहिए।

क्षेत्रीय और वैश्विक कूटनीति, रक्षा सहयोग, सुरक्षा मुद्दों पर एक साथ काम करने, आतंकवाद का मुकाबला और ऊर्जा जैसे कई क्षेत्र हैं, जिसके लिए तत्काल काम करने की जरूरत है। इस लिहाज से अगला पखवाड़ा महत्वपूर्ण है, जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन छह दिसंबर को नई दिल्ली में होंगे। अमूमन हर दिसंबर में दिल्ली या मास्को में दोनों देशों के शिखर नेताओं की मुलाकात होती ही है। कोविड के कारण सिर्फ पिछला साल इसका अपवाद था। रूस में महामारी तेजी के साथ लौट आई है और लगता है कि पुतिन भारत में सिर्फ कुछ घंटे बिताकर ही वापस लौट जाएंगे।
यह महत्वपूर्ण है कि उन्होंने अभी तक इस सम्मेलन को रद्द या स्थगित करने की बात नहीं कही है, जैसा कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन करने के लिए मजबूर हुए थे। हर भारतीय प्रधानमंत्री के साथ पुतिन के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं और मोदी के साथ चंद घंटे ही पर्याप्त हैं। इसका मतलब यह है कि अधिकांश काम शिखर सम्मेलन से पहले ही पूरे हो जाएंगे। दोनों पक्ष अभी वे मुद्दे तय कर रहे हैं, जिन पर शायद केवल चर्चा की जाएगी, ताकि पुतिन की यात्रा के दौरान उन पर सहमति बनाई जा सके।
महत्वपूर्ण बात है कि शिखर सम्मेलन से पहले ही भारत को एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की रूस से आपूर्ति शुरू हो चुकी है। यह लंबी दूरी तक दुश्मन के लड़ाकू विमानों और क्रूज मिसाइलों को निशाना बनाने की हमारी सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा देगा। भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों की अनदेखी करते हुए 2018 में 5.43 अरब डॉलर की पांच एस-400 मिसाइल के लिए अनुबंध किया था। अमेरिका इस पर भारत के खिलाफ काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शंस ऐक्ट (सीएएटीएसए) लागू करना चाहता था। लेकिन ऐसा लगता है कि भारत ने जो बाइडन प्रशासन के साथ, जिसने भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति उल्लेखनीय समझदारी दिखाई है, यह मुद्दा सुलझा लिया है। अपने घनिष्ठ रणनीतिक संबंधों को देखते हुए अमेरिका इन प्रणालियों की खरीद से भारत को रोक भी नहीं सकता था। तब तो और नहीं, जब चीन के पास पहले से यह है, जिसे उसने तिब्बत में तैनात किया है और जिससे भारत को खतरा है।
शिखर सम्मेलन से पहले पांच दिसंबर को भारत और रूस के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच (2+2) वार्ता होगी। इससे पहले भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ ऐसी बातचीत की है, जिन्होंने क्वाड बनाया है। इसकी तत्काल आवश्यकता खासकर भारतीय सीमा पर चीन के रुख को लेकर पैदा हुई है। रूस के साथ ऐसी वार्ता भारत-रूस के स्थायी संबंधों के कारण महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि मास्को ने हाल ही में क्षेत्रीय मुद्दों, खासकर अफगानिस्तान पर दिल्ली के बजाय बीजिंग के साथ गठबंधन किया है। रूस ने हाल ही में भारत और पाकिस्तान द्वारा आयोजित सुरक्षा वार्ता में भी भाग लिया था। चीन अपने सहयोगी पाकिस्तान को महत्व देने के लिए भारत सरकार द्वारा आयोजित बैठक से दूर रहा।
लेकिन इस क्षेत्र में वास्तव में कोई भी अफगानिस्तान और अफगानिस्तान-पाकिस्तान के अनियंत्रित कबायली क्षेत्र (जो आतंकी गुटों की शरणस्थली रहा है) से पैदा होने वाले खतरे की अनदेखी नहीं कर सकता। तालिबान को खुद इस्लामिक स्टेट-खुरासन से खतरा है। यह खतरा इतना गंभीर है कि इसके चलते पांच मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दिल्ली में बैठक करने आए।
भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार 8.1 अरब डॉलर तक पहुंचा है, जो क्षमता से निस्संदेह काफी कम है। लेकिन रूस 'मेक इन इंडिया' के तहत रक्षा क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा भागीदार है। चार प्रोजेक्ट 1135.6 फ्रिगेट का निर्माण और सह-उत्पादन; 100 प्रतिशत स्वदेशीकरण के माध्यम से दुनिया की सबसे उन्नत असॉल्ट राइफल-एके-203 का भारत में निर्माण; एसयू-30 एमकेआई और मिग-29 एस लड़ाकू विमानों की अतिरिक्त आपूर्ति; मैंगो गोला बारूद और वीएसएचओआरएडी प्रणाली की अतिरिक्त आपूर्ति एजेंडे में है।
पिछले तीन वर्षों में दोनों देशों ने तेल, प्राकृतिक गैस, ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल्स के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया है। इन सबको मजबूत करने की आवश्यकता होगी। आर्थिक सहायता अब मास्को से दिल्ली की तरफ एकतरफा नहीं है। पहली बार, भारत ने विशेष रूप से सुदूर पूर्व में उसके विकास में घरेलू व्यापार भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए रूस को एक अरब डॉलर की सॉफ्ट क्रेडिट लाइन की घोषणा की। भारत रूस को अलग-थलग नहीं देखता-यह यूरेशिया है। भू-राजनीति के अलावा, भू-अर्थशास्त्र भी काम कर रहा है। दोनों देश ईरान से होकर उत्तर-दक्षिण गलियारे के पूरक के लिए चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारे को बढ़ावा दे रहे हैं। वे आर्कटिक क्षेत्र सहित उत्तरी समुद्री मार्ग पर भी काम कर रहे हैं, जिसमें भारत और रूस विशेष परामर्श कर रहे हैं।
रूस में भारत के दूत वी. बी. वेंकटेश वर्मा कहते हैं, 'यदि हम विशाल यूरेशियन महाद्वीप के विभिन्न भागों में तीन बड़े भू-राजनीतिक रुझानों को देखें, तो भारत की भागीदारी रूस के हितों के और भारत के अपने हितों के अनुरूप है। हमने जुड़ाव के नए रास्ते खोले हैं, जिनके प्रभाव को महीनों या वर्षों में नहीं, बल्कि दशकों में मापा जाएगा। हमारी रणनीतिक साझेदारी को मापने के लिए यही सही कालानुक्रमिक इकाई है।' वह जोर देकर कहते हैं कि भारत-रूस संबंध अमेरिका, चीन या किसी और के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित नहीं करते हैं।
हाल के वर्षों में चीन के साथ भारत के संबंध बहुत खराब हुए हैं। ऐसे में भारत के लिए मास्को का महत्व समझ में आता है। पिछले साल नई दिल्ली और बीजिंग के बीच उसने मध्यस्थता की शांत कोशिश की थी, जब दोनों देशों ने अपनी-अपनी शर्तों पर लद्दाख गतिरोध का समाधान चाहा था। यह भारत-रूस संबंधों के कम चर्चित, लेकिन महत्वपूर्ण हिस्से का सार है।
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