सम्पादकीय

अगर आप पति से ज्‍यादा कमाती हैं, ज्‍यादा सफल हैं तो आपके साथ घरेलू हिंसा होने की संभावना ज्‍यादा है : स्‍टडी

Rani Sahu
13 Oct 2021 8:51 AM GMT
अगर आप पति से ज्‍यादा कमाती हैं, ज्‍यादा सफल हैं तो आपके साथ घरेलू हिंसा होने की संभावना ज्‍यादा है : स्‍टडी
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ज्‍यादा सफल हैं तो आपके साथ घरेलू हिंसा होने की संभावना ज्‍यादा है

मनीषा पांडेय इस स्‍टोरी की हेडलाइन महज भावनात्‍मक नहीं है. अगर हम कहें कि आजादख्‍याल, आत्‍मनिर्भर, बोलने वाली और गलत बात का पलटकर जवाब देने वाली स्त्रियों के साथ हिंसा की संभावना ज्‍यादा होती है तो यह बात सहज ही समझ में आने वाली है. लेकिन फिर भी कोई पलटकर ये पूछ सकता है, "ऐसा आपको लगता है या ये साबित करने के लिए कोई सर्वे, कोई आंकड़ा, कोई डेटा है आपके पास?"

इसलिए बात अपनी भावनाओं या सहज तर्कबोध से नहीं, बल्कि इस स्‍टडी से शुरू करते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम और इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी का यह एक साझा अध्‍ययन है, नॉटिंघम से पुनर्जीत रॉयचौधुरी और आईआईटी हैदराबाद से गौरव धमीजा ने मिलकर किया है. यह स्‍टडी जिस पेपर में विस्‍तार से छपी है, उसकी हेडलाइन है- "डोंट क्रॉस द लाइन: बाउंडिंग द कैजुअल इफेक्‍ट ऑफ हायपरगेमी वॉयलेशन ऑन डोमेस्टिक वॉयलेंस इन इंडिया."
यह अध्‍ययन कहता है कि भारत में जो स्त्रियां ज्‍यादा सबल और आत्‍मनिर्भर हैं, जो पति के मुकाबले कॅरियर में ज्‍यादा बेहतर कर रही हैं, जो अपने पति से ज्‍यादा कमा रही हैं या जो बहुत घरेलू, चुप्‍पी, सहनशील और दब्‍बू किस्‍म की नहीं हैं, उनके साथ घरेलू हिंसा की घटनाएं ज्‍यादा होती हैं. पितृसत्‍ता में औरत से किसी भी मामले में कमतर या कमजोर पड़ते ही ताकत के उस पितृसत्‍तात्‍मक समीकरण को बनाए रखने के लिए मर्द का सबसे बड़ा हथियार होता है- हिंसा. तर्क में कमजोर पड़ गए तो हाथ उठा दिया.
पुनर्जीत रॉयचौधुरी और गौरव धमीजा ने इस स्‍टडी में एनसीआरबी, नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे और कुछ और गैर सरकारी संगठनों के पिछले कई सालों के सामाजिक अध्‍ययनों को एक जगह रखकर उसका अध्‍ययन करने की कोशिश की है. यह अध्‍ययन कहता है कि अगर कोई स्‍त्री हाइपरगैमी की परंपरागत सोच और पैटर्न के उलट जाकर शादी करती है तो उसके साथ हिंसा की संभावना अन्‍य स्त्रियों के मुकाबले 14 फीसदी बढ़ जाती है. हाइपरगैमी का अर्थ है ऐसा विवाह, जिसमें पति की सामाजिक, आर्थिक हैसियत स्‍त्री के मुकाबले ऊंची हो.
हालांकि औरतों को इस बात के लिए हमेशा ताना दिया जाता है कि वो चाहे खुद कितने भी ऊंचे मुकाम पर न पहुंच जाएं, वो चाहती हैं कि उनका पति उनसे बेहतर स्थिति में ही हो. ऐसे ताने भी पुरुषों की तरफ से ही ज्‍यादा सुनने को मिलते हैं. लेकिन ये कहते हुए वे भूल जाते हैं कि एक मर्द के लिए खुद को किसी भी मामले में स्‍त्री से कमतर देखना नाकाबिले बर्दाश्‍त होता है. पितृसत्‍ता ने उन्‍हें सदियों से यही सिखाया है कि वे श्रेष्‍ठ हैं. अगर यह श्रेष्‍ठता पैसे और सामाजिक हैसियत से पूरी न होती हो तो हिंसा के जरिए उस पावर बैलेंस को स्‍थापित करने की कोशिश होती है.
पिछले चार दशकों में भारत में ऐसे मर्दों की संख्‍या में तेजी से कमी आई है, जो अपनी पत्नियों के मुकाबले ज्‍यादा शिक्षित और ज्‍यादा ऊंची डिग्रियों वाले होते थे. पिछले चार दशकों में भारत स्‍त्री शिक्षा के मामले में काफी तरक्‍की की है और ऐसी महिलाओं की संख्‍या बहुत तेजी से बढ़ी है, जिनके पास ऊंची प्रोफेशनल डिग्रियां हैं. चार दशक पहले अपनी पत्‍नी से ज्‍यादा पढ़े-लिखे और ज्‍यादा काबिल मर्दों की संख्‍या 90 फीसदी थी जो पिछले चार दशकों में घटकर 60 फीसदी हो गई है. इसी तरह पति से ज्‍यादा पढ़ी-लिखी, शिक्षित और डिग्रीधारी महिलाओं का प्रतिशत 10 फीसदी से बढ़कर 30 फीसदी हो गया है.
यूं तो कौन सी स्‍त्री हिंसा का शिकार नहीं हैं. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का आंकड़ा कहता है कि पूरी दुनिया में हर तीसरी औरत हिंसा की शिकार है. हर चौथे मिनट दुनिया के किसी न किसी हिस्‍से में कोई औरत पिट रही होती है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट ये कहती है कि हमारे देश में घरेलू हिंसा की शिकार 86 फीसदी औरतें कभी हिंसा की रिपोर्ट नहीं करतीं, न पुलिस के पास जाती हैं और न ही कोई मदद मांगती हैं. हिंसा की रिपोर्ट करने और मदद मांगने वाली औरतों का प्रतिशत सिर्फ 14 है और उनमें से भी सिर्फ 7 फीसदी औरतें ऐसी होती हैं, जो पुलिस और न्यायालय तक पहुंच पाती हैं.
पिछले साल लॉकडाउन के दौरान पूरी दुनिया में घरेलू हिंसा की घटनाओं में 38 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया. यूएन वुमेन का डेटा कहता है कि पूरी दुनिया में लॉकडाउन के दौरान हेल्‍पलाइन नंबर पर आने वाले फोन काल्‍स में 25 फीसदी की बढ़ोत्‍तरी हो गई थी.
डोमेस्टिक वॉयलेंस पर काम कर रहे अमेरिका का एक गैर-सरकारी संगठन का सर्वे भी यह कहता है कि औरतों की आर्थिक आत्‍मनिर्भरता और घर के महत्‍वपूर्ण निर्णयों में उनका हस्‍तक्षेप बढ़ने के साथ ही उनके साथ होने वाली हिंसा का ग्राफ भी बढ़ा है. न्‍यूजीलैंड में दो साल पहले घरेलू हिंसा को लेकर एक सर्वे किया. इस सर्वे में भी ये बात निकलकर सामने आई कि हाउस वाइव्‍स या घरेलू स्त्रियों के मुकाबले उन स्त्रियों के साथ हिंसा की घटनाएं ज्‍यादा हो रही थीं, जो नौकरीपेशा और आर्थिक रूप से आत्‍मनिर्भर थीं.
यह अध्‍ययन भी सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है. तंजानिया, यूके और ऑस्‍ट्रेलिया के आंकड़े भी ऐसे ही भयावह सच की ओर इशारा कर रहे हैं. स्‍टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी का एक अध्‍ययन कहता है कि पिछले 5 दशक में औरतों के साथ होने वाली हिंसा का ग्राफ लगातार बढ़ा है. साथ ही उनकी शिक्षा, नौकरी और अर्थव्‍यवस्‍था में उनकी हिस्‍सेदारी का ग्राफ भी लगातार बढ़ता गया है. स्‍टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की स्‍टडी इन दोनों तथ्‍यों को समानांतर रखते हुए ये बताती है कि कैसे घरेलू और आज्ञाकारी स्‍त्री की भूमिका से बाहर आकर निर्णायक भूमिका अख्तियार करने के साथ-साथ स्त्रियों के प्रति हिंसा का ग्राफ बढ़ता जाता है.
शिक्षा और नौकरी से लेकर हर वह क्षेत्र, जिसमें अब तक मर्दों का एकछत्र साम्राज्‍य था, वहां स्त्रियों की हिस्‍सेदारी उन्‍हें अपने कार्यक्षेत्र में दखल लगती है. ये भी उनके साथ बढ़ती हिंसा का बहुत बड़ा कारण है.


Rani Sahu

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