जरा हटके

क्या इस प्रकार से मंगल ग्रह को बनाया जाएगा हूबहू पृथ्वी जैसा?

Gulabi
8 April 2021 3:30 PM GMT
क्या इस प्रकार से मंगल ग्रह को बनाया जाएगा हूबहू पृथ्वी जैसा?
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यह दशक ब्रह्मांड की खोजबीन के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण होने वाला है

यह दशक ब्रह्मांड की खोजबीन के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। विश्व की तमाम स्पेस एजेंसियां रोमांच भरे मिशन्स अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में हैं। इनका लक्ष्य स्पेस एक्सपलोरेशन को व्यवसायिक रूप देना, स्पेस माइनिंग और तीसरा जो सबसे महत्वपूर्ण है, मंगल ग्रह पर इंसानों को उतारकर उसे पृथ्वी की शक्ल देना है।

मंगल सदा से हमारी उत्सुकता का विषय रहा है। 2012 में जो रोवर नासा ने मंगल की सतह पर उतारा था उसका नाम भी क्यूरोसिटी यानी उत्सुकता ही था। वहीं बीते फरवरी में नासा ने पर्सिवियरेंस रोवर को मार्स की सतह पर उतारा था। इसके साथ एक ड्रोन हेलीकोप्टर भी है। नासा का यह मिसन मंगल ग्रह पर अतीत में जीवन होने की संभावनाओं को तलाशेगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि करोड़ों साल पहले मंगल ग्रह पर पानी था। इस कारण हो सकता है कि वहां पर सूक्ष्म स्तर पर जीवन की संभावना भी रही होगी।
माना जाता है कि करोड़ों साल पहले नौएचियन समय काल में यहां पर जीवन था। पृथ्वी की तरह यहां पर बड़े पैमाने पर समुद्र और नदियां बहा करती थी। ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि हो ना हो वहां पर जरूर सूक्ष्म जीवों के लिए एक हेबिटेबल वातावरण था। पर मंगल ग्रह की इलेक्ट्रोमैग्निटिक फील्ड समय के साथ धीरे-धीरे कमजोर होती गई। इस कारण अंतरिक्ष की जानलेवा किरणें सीधे उसके वातावरण को विच्छेद करने लगीं, जिसके चलते मंगल का वातावरण कमजोर हो गया। कमजोर वातावरण के चलते धीरे-धीरे वहां पर कार्बन डाइऑक्साइड का प्रभाव बढ़ने लगा। इस वजह से मंगल ग्रह गर्म हो गया। यहां पर जितना पानी था वह या तो अंतरिक्ष में उड़ गया यह ग्रह के दोनों ध्रुवों पर बर्फ बन कर जम गया।
अब जब की हम मंगल ग्रह के बारे में बहुत कुछ जानने लगे हैं तो कई वैज्ञानिकों के बीच एक सवाल उठा है कि क्या मंगल ग्रह को भी पृथ्वी की तरह टेराफॉर्म किया जा सकता है? अर्थात क्या मंगल ग्रह को पृथ्वी की तरह बदला जा सकता है? यह प्रश्न सर्वप्रथम सदी के मशहूर वैज्ञानिक कार्लसेगन ने उठाया था। उनका मानना था हां ऐसा हो सकता है। उनके मुताबिक हमें इस ग्रह को पृथ्वी जैसा बनाने के लिए इसके दोनों ध्रूवों पर थर्मों न्यूक्लियर हमला करना होगा। इससे बर्फ की चादरें पिघल जाएंगी और ध्रूर्वों से कार्बनडाई ऑक्साईड और पानी निकलने लगेगा। इसके चलते ग्रह पर ग्रीन हाऊस गैसों का प्रभाव शुरू होगा। इससे पूरे ग्रह का तापमान बढ़ेगा और सतह रहने लायक होने लगेगी। इस दिशा में काम करने के लिए कई सारे वैज्ञानिक लगे हुए हैं। मशहूर बिलेनियर एलन मस्क इस ओर बिलियन डॉलर्स का निवेश कर रहे हैं।

मंगल ग्रह को पृथ्वी का रूप देने में वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चुनौती उसके मैग्नेटिक फील्ड को वापस लाने की होगी। मंगल ग्रह का वातावरण तभी रुक सकता है जब उसकी मैग्नेटिक फील्ड मजबूत हो। इस दिशा में वैज्ञानिक सभी संभावनाओं को तलाश कर रहे हैं। इसको अंजाम देने के लिए वैज्ञानिकों को आज के मुकाबले कई गुना ज्यादा उत्तम तकनीक और संसाधनों की आवश्यकता पड़ेगी। जो कि हाल-फिलहाल संभव नहीं हो सकता है। इसमें दशकों का समय लगेगा। पर हो ना हो इस हाईपोथेटिकल सिद्धांत को हम एक दिन जमीन पर जरूर उतारेंगे और मंगल को Earth 2.0 की शक्ल देंगे। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मंगल और पृथ्वी के पास लगभग लगभग समान लैंडमास है। पृथ्वी पर एक दिन को पूरा करने में 24 घंटे का समय लगता है। वहीं मंगल को 24 घंटे 37 मिनट का। पृथ्वी का टिल्ट आफ एक्सिस 23.45 डिगरी है। वहीं मंगल का 25 डिगरी। मंगल ग्रह पर एक दिन को सोल कहा जाता है।
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