अपने लेक्चर के लिए एक भी छात्र के नहीं आने से निराश बिहार के एक प्रोफेसर ने अपने तरीके से विरोध करने का फैसला किया. बिहार में एक कॉलेज लेक्चरर जो अपने छात्रों की कम गैरहाजिरी से परेशान हो गया और फिर ऐसा फैसला लिया जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा होगा. उसने अपनी सैलरी वापस लौटाते हुए कहा कि यदि सिखाने वाला ही कोई नहीं है, तो तनख्वाह कैसी? भले ही सरकार ने अभी तक उनके विरोध के भुगतान को स्वीकार नहीं किया है या उनके तर्क को स्वीकार नहीं किया है, लेकिन उन्होंने अपना दो साल और नौ महीने का वेतन यानी कुल 23.8 लाख रुपये वापस कर दिया है.
बिहार के प्रोफेसर ने लौटाई अपनी सैलरी
मुजफ्फरपुर के नीतीशवार कॉलेज (Nitishwar College in Muzaffarpur) में हिंदी के सहायक प्रोफेसर लल्लन कुमार का कहना है कि जब तक संबद्ध विश्वविद्यालय उन्हें दूसरे कॉलेज में स्थानांतरित नहीं करता, उन्हें 'एकेडमिक डेथ' का डर है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने लगातार शिकायत भी की थी. उन्होंने मीडिया से कहा, 'जब मैंने ज्वाइन किया था, तो मुझे उस कॉलेज में पोस्ट नहीं किया गया था जहां मैं पोस्ट ग्रेजुएट कक्षाएं पढ़ा सकता था. चयन प्रक्रिया में निचले रैंक वाले को वो पोस्टिंग मिलीं. यहां, छात्र कभी नहीं दिखाई देते हैं.'
कॉलेज में पढ़ने नहीं आते थे छात्र तो गुस्सा गए प्रोफेसर
लल्लन कुमार ने यह भी दावा किया कि उनका नाम तबादलों की सूची से बार-बार काटा गया था. कॉलेज के प्राचार्य मनोज कुमार ने कहा कि 0% उपस्थिति का दावा निराधार है. वह कहते हैं, 'कोरोनावायरस महामारी के कारण दो साल से कक्षाएं बाधित थीं.' लल्लन कुमार के दावों का खंडन करते हुए उन्होंने कहा, 'अगर वह ट्रांसफर चाहते हैं तो उन्हें सीधे मुझे बताना चाहिए था.'
कॉलेज के प्राचार्य और कुलपति ने कही ऐसी बात
विश्वविद्यालय का दावा है कि उसने इस शिकायत का संज्ञान लिया है कि कॉलेज में कक्षाएं नहीं लगती हैं. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति आरके ठाकुर ने कहा, 'हम इसकी जांच करेंगे. प्रोफेसर लल्लन कुमार अपनी तबादला मांग से नाराज हैं. उन्होंने हमें एक चेक दिया है, लेकिन हमने इसे स्वीकार नहीं किया है.' लल्लन कुमार ने पीएचडी की है और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं.