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हरियाली तीज और हरतालिका तीज में क्या है अंतर, जाने, दोनों का है विशेष महत्व

Manish Sahu
22 July 2023 9:46 AM GMT
हरियाली तीज और हरतालिका तीज में क्या है अंतर, जाने, दोनों का है विशेष महत्व
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धर्म अध्यात्म: श्रावण मास में हरियाली अमावस्या की शुक्ल पक्ष की तीज को हरियाली तीज कहा जाता है. इसके बाद भादो यानी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तीज के दिन हरतालिका तीज का त्योहार मनाया जाता है. हरियाली तीज और हरतालिका तीज दोनों ही व्रत माता पार्वती से जुड़े हुए हैं. इस दौरान महिलाएं माता पार्वती का व्रत रखकर पूजन अर्चन करती हैं. इस वर्ष 19 अगस्त 2023 को हरियाली तीज पड़ रही है. वहीं, हरतालिका तीज का व्रत 18 सितंबर 2023 को रखा जाएगा. भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार हितेंद्र कुमार शर्मा बता रहे हैं हरतालिका तीज और हरियाली तीज में अंतर.
हरियाली त्योहार आमतौर पर नाग पंचमी के 2 दिन पहले यानी श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है. यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन के उपलक्ष में मनाया जाता है. पौराणिक कथा है कि इस दिन देवी ने भगवान शिव की तपस्या में 107 जन्म बिताने के बाद उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया था.
हरतालिका तीज और हरियाली तीज में अंतर
-हरियाली तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तीज को आती है, जबकि भाद्रपद शुक्ल तीज को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है. हरियाली तीज के दिन महिलाएं सामान्य व्रत रखती हैं. जबकि हरतालिका तीज के दिन सुहागन स्त्रियां कड़ा व्रत करती हैं जिसके नियम भी कड़े होते हैं.
-पौराणिक हिंदू मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती के व्रत की शुरुआत हरियाली से शुरू होकर हरितालिका तीज को समाप्त होती है. हरियाली तीज के दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है.
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-हरियाली तीज के दिन आपने अनेकों स्थानों पर मेले लगे हुए देखे होंगे जिस दिन धूमधाम के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की सवारी निकाली जाती है. जबकि हरतालिका तीज में ऐसा कुछ भी नहीं होता है.
-हरियाली तीज भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की याद में मनाया जाता है. जबकि सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए हरतालिका तीज का कठिन व्रत करती है.
-माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए वन में घोर तप किया था, और वहां बालू के शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया. जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें वरदान दिया और बाद में राजा हिमालय ने भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कराया था. माता पार्वती ने जब यह व्रत किया था, तब भाद्रपद की तिथि का हस्त नक्षत्र था.
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