जरा हटके

मुंबई का वड़ापाव, जानते हैं कब हुई थी इस डिश की शुरुआत

Manish Sahu
31 Aug 2023 1:08 PM GMT
मुंबई का वड़ापाव, जानते हैं कब हुई थी इस डिश की शुरुआत
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जरा हटके: मुंबई की लोकल ट्रेन, मुंबई का डिब्बेवाला कुछ वैसा ही है मुंबई का वड़ापाव. लेकिन, मुंबई में रहने वाले भी बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस वड़ा पाव की शुरुआत कब हुई और किसने की. इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है. यूं तो वड़ापाव का काम एक मजबूरी की देन है, लेकिन आज यह मुंबई की पहचान बन चुका है.
दरअसल, वड़ापाव की शुरुआत 1978 में अशोक वैद्य नामक एक शख्स ने की थी. दादर स्टेशन के बाहर उनका फूड स्टॉल हुआ करता था. उस समय उन्होंने आलू भाजी और चपाती खाने वालों के सामने एक नई डिश परोसी. उन्होंने आलू भाजी बनाई और उसे बेसन में लपेट कर उसका वड़ा तैयार किया. चपाती की जगह पाव परोसा.
कम पैसे में पेट भर खाना
यह वड़ापाव खाकर लोगों को मजा भी आया और उनका पेट भर गया. खास बात यह कि यह सस्ते में भरपेट भोजन का एक शानदार विकल्प बन गया. फिर वड़ापाव प्रसिद्ध होने लगा. 80 के दशक में कई लोगों ने वड़ापाव को आजीविका के साधन के रूप में देखा. क्योंकि, उस दौर में बंबई की मिलें बंद हो रही थीं और बेरोजगारी बढ़ रही थी.
और तब हुआ वड़ापाव की शुरुआत
अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी में अशोक वैद्य ने कई लोगों को दौड़ते हुए देखा था. उस दौर में समय और धन की कमी के कारण, लोगों को पेट भर खाना नहीं मिल पाता था. इसलिए अशोक ने कम पैसे में पेट भरने वाला खाना बनाने का फैसला किया और वड़ापाव का आविष्कार किया.
अशोक कहते हैं, मेरे दो भाई विकलांग हैं. मैंने बॉम्बे आईटीआई से इंजीनियरिंग की है. बताया, घर में गरीबी थी. पिता एक मिल मजदूर थे. मिल बंद होने के कारण कोई नौकरी नहीं थी, इसलिए भूख लगने पर खाना नहीं मिल पाता था. उस समय बिजनेस के क्षेत्र में कुछ करने के लिए बहुत सोचने के बाद मैंने 1978 में वड़ापाव का बिजनेस शुरू किया. वड़ापाव जो शुरुआत में ताड़ के तेल में बनाया जाता था, बाद में लोगों को पसंद आने पर इसे गोडे के तेल में भी बनाया जाने लगा. उस समय परिवार ने विरोध किया, लेकिन लोगों को पौष्टिक वड़ापाव मिल सके, वह रुके नहीं.
मुंबई वाले कभी नहीं भूलेंगे वड़ापाव
बताया, आज इस वड़ापाव को बनाने में तीन तरह की चटनी का इस्तेमाल किया जाता है. हरी मसालेदार चटनी, मीठी चटनी और सबसे खास 44 तरह के घाटी मसाले, जो शौकीनों के लिए इस वड़ा पाव के स्वाद को और भी मज़ेदार बना देते हैं. इस वड़ा पाव की शुरुआत 1978 में 25 पैसे से हुई थी और आज इसकी कीमत 30 रुपये तक पहुंच गई है. वड़ापाव न केवल आम नागरिकों में बल्कि अभिनेता-अभिनेत्रियों, राजनेताओं, राजनीतिक कार्यकर्ताओं, खिलाड़ियों में भी लोकप्रिय है. यह वड़ा पाव अमीर से लेकर गरीब तक, बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को पसंद होता है. इसलिए, अशोक वैद्य को उम्मीद है कि मुंबईकर इस वड़ापाव को कभी नहीं भूलेंगे.
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